पटना
बिहार में पिछले तीन दिनों से एक ही बात पर चर्चा हो रही है कि नीतीश कुमार शराबबंदी कानून वापस लेंगे? गुरुवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने विधायकों से भी पूछा कि शराबबंदी कानून को वापस ले लिया जाए? सीएम नीतीश के सवाल पर जेडीयू विधायकों ने एक सुर में कहा कि नहीं। इसके बाद नीतीश कुमार ने कहा कि अब इस पर अन्य दलों के विधायकों से सलाह लेंगे और पूछेंगे कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू रखा जाए या वापस ले लिया जाए। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद एक ही सवाल उठ रहा है कि क्या सीएम नीतीश ने एक सियासी चक्रव्यूह का निर्माण कर दिया है, जिसको भेदना आसान नहीं है। बीजेपी हो या आरजेडी, अगर कोई भी इसे भेदने की कोशिश करेगा, वह सियासी तौर पर फंस सकता है।
दरअसल, सारण जहरीली शराबकांड के बाद बिहार में सियासत तेज है। विपक्ष सड़क से लेकर सदन तक हंगामा कर रहा है। हालांकि अभी तक किसी पार्टी ने खुलकर ये नहीं कहा है कि शराबबंदी कानून को वापस लिया जाए। कल तक जो विपक्ष में थे, वो भले ही शराबबंदी काननू पर सवाल उठाते थे, लेकिन सत्ता में आते ही सीएम नीतीश की हां में हां मिला रहे हैं। अब शराबबंदी कानून पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। हालांकि कुछ नेता शराबबंदी कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने बिहार सरकार से पूर्ण प्रतिबंध वापस करने की मांग की है। वहीं, जन सुराज यात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने भी शराबबंदी कानून को रद्द करने की मांग की। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पहले से ही इस कानून के समर्थक नहीं रहे हैं। विपक्षी पार्टी बीजेपी तो पहले से ही इस कानून को असफल बताते रहती है। हालांकि वापस लेने को लेकर खुलकर कुछ नहीं बोलती।
राष्ट्रव्यापी आलोचना झेल रहे नीतीश ने चला बड़ा दांव
इधर, छपरा शराबकांड के बाद तो नीतीश कुमार राष्ट्रव्यापी आलोचना झेल रहे हैं। पक्ष हो या विपक्ष, दबे जुबान सरकार पर हमलावर हैं। हालांकि शराबबंदी कानून को वापस लेने की मांग खुलकर अभी तक किसी ने नहीं की है। सड़क से लेकर सदन तक हो हंगामा जरूर कर रहे हैं। मृतकों के परिजनों के मुआवजा देने की मांग जरूर कर रहे हैं, लेकिन किसी भी पार्टी के नेता ने ये नहीं कह रहा है कि शराबबंदी कानून को वापस लिया जाए। शायद यही कारण था कि नीतीश कुमार ने सबसे पहले अपने ही विधायकों का मन टटोला और पूछ दिया कि शराबबंदी कानून को वापस ले लिया जाए।
दरअसल, गुरुवार को देर शाम जेडीयू विधानमंडल दल की बैठक हुई। बैठक में जेडीयू के विधायक और विधान परिषद के सदस्य शामिल हुए। बैठक में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। हालांकि बैठक में सबसे अहम मुद्दा शराब ही रहा। विपक्ष का तेवर देख नीतीश कुमार ने सबसे पहले अपने ही विधायकों का मन टटोला। और जानना चाहा कि क्या शराबबंदी कानून को खत्म कर दिया जाए। नीतीश कुमार के सवाल पर जेडीयू विधायकों ने एक सुर में कहा कि नहीं। शराबबंदी कानून को आगे भी बरकरार रखा जाए।
सभी दलों से लेंगे सलाह
जेडीयू विधायकों की राय जानने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि अब सभी दलों का राय भी जानन जरूरी है। सिर्फ सड़क से लेकर सदन तक हंगामा करने से नहीं होगा। उनको जवाब देना ही होगा कि कानून बरकरार रखा जाए या खत्म किया जाए। सीएम नीतीश ने कहा कि सभी दलों से सदन में ही पूछेंगे कि उनका राय क्या है।
बीजेपी और तेजस्वी फंस गए?
नीतीश कुमार के इस कदम से तो ऐसा ही लगता है कि नीतीश कुमार के सियासी चाल में बीजेपी और तेजस्वी फंस गए हैं। भले ही परोक्ष रूप से दोनों इस कानून का विरोध कर रहे हैं, लेकिन खुलकर कोई नहीं कहने वाला है कि कानून को वापस लिया जाए। बिहार विधान परिषद में सम्राट चौधरी ने जिस तरह का बयान दिया है, उससे यही कयास लगाया जा सकता है। विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि हम कानून का विरोध नहीं कर रहे हैं। तेजस्वी यादव पहले से ही कह रहे हैं कि जो पियेगा, वह मरेगा ही। ऐसे में आरजेडी शराबबंदी कानून का विरोध करेगी, सवाल ही नहीं उठता।
वापस लिया जाए शराबबंदी कानून
दूसरी ओर चुनावी रणनीतिकार और बिहार में जन सुराज पदयात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने इस कानून को वापस लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि कानून को किसी समीक्षा की जरूरत नहीं है, उसे तुंरत वापस लिया जाना चाहिए। समय आ गया है कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, उनके साथ चार साल सत्ता में रही बीजेपी और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की आरेजडी सहित सभी राजनीतिक दल पाखंड छोड़ें और वोट की चिंता किए बिना फैसला करें।