काठमांडू,
ध्रुवीय इलाकों के बाद पूरी दुनिया में सिर्फ हिमालय ही है, जहां पर सबसे ज्यादा पानी बर्फ के रूप में जमा है. इसलिए इसे थर्ड पोल कहते हैं. एशिया का वाटर टावर भी कहते हैं. लेकिन दुनिया की छत कहा जाने वाला हिमालय अब जल सकंट से जूझ रहा है. हिमालय पर लगातार पानी कम होता जा रहा है.
मॉनसूनी बारिश कम हो रही है. बर्फबारी भी कम हो रही है. पहाड़ पर जमी बर्फ पिघल कर जमीन में रिस रही है. जैसे यह कोई विशाल स्पन्ज हो. जो कुछ बचा है वो गर्मियों में खत्म हो जाता है. माउंट एवरेस्ट के पास खुंबू में इम्जा ग्लेशियर है. जो पहले बड़ा ग्लेशियर था. अब वह सिर्फ 2 किलोमीटर लंबी झील बनकर रह गया है. यह सिर्फ 30 सालों में हुआ है. ग्लोबल हीटिंग की वजह से हिमालय का जल चक्र बदल रहा है.
जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय लगातार गर्म हो रहा है. दुनिया के औसत से कई गुना ज्यादा. जिसकी वजह से वहां का मौसम बदल रहा है. बारिश का तय समय खराब हो गया है. अब बारिश टोरेंशियल हो गई है. भूजल गिरता जा रहा है. ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं. हिमालय और तिब्बत से निकलने वाली नदियों में अब पानी कम हो रहा है. इन नदियों से एशिया के कई देशों के करीब 100 करोड़ लोगों को पीने का पानी मिलता है.
अगले कुछ दशकों में इन नदियों से गर्मियों में कम पानी मिलेगा. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो इस सदी के अंत तक हिमालय से दो-तिहाई ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे. अभी माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप के पास जो नदी बहती है उसका जलस्तर कम होता जा रहा है. खुंबू आइसफाल कुछ दिन में वाटरफाल में बदल जाएगा.
माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाले खिम लाल गौतम कहते हैं कि मैंने आखिरी बार 2020 में एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी. मुझे तभी अंतर दिख रहा था. एवरेस्ट बेस कैंप पर मौजूद मोरैन और पर्माफ्रॉस्ट बहुत तेजी से पिघल रहा है. ग्लेशियर खत्म हो रहा है. हर बार जब मैं बेस कैंप जाता हूं, वहां पर कम बर्फ दिखती है. पिछले छह सालों में बेस कैंप का तापमान छह डिग्री बढ़ गया है. जहां बर्फ थी, अब वहां पर नदी बह रही है.
पूरे हिमालय की बात करें तो माउंट माचापुचरे (Mt. Machapuchre) जो पहले बर्फ से ढंका रहता था, अब वह पत्थर में बदल चुका है. सारी बर्फ पिघल चुकी है. यह सिर्फ साल 2008 से लेकर 2020 के बीच हुआ है. पश्चिमी नेपाल में मौजूद माउंट साइपाल (Mt. Saipal) लगभग अपना सारा बर्फ खो चुका है. पर्वतारोही, वैज्ञानिक और स्थानीय लोग इससे काफी ज्यादा परेशान हैं.
2006 में अमा डबलाम पर कुछ पर्वतारोही माउंटेनियरिंग के लिए गए थे. तभी अमा डबलाम के ऊपरी हिस्से बर्फ का एक बड़ा टुकड़ा टूट कर तेजी से नीचे गिरा था. इसमें छह पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी. अमा डबलाम का मतलब होता है मां का हार (Mother’s Necklace). अपने पर्वतों की चिंता करने वाले स्थानीय नेपाली कहते हैं कि हम अपने पर्वतों से बर्फ नहीं खो रहे, हम अपनी पहचान खो रहे हैं.
ऐसी ही हालत पाकिस्तान के काराकोरम, तिब्बत के पठार, भूटान और भारत के हिमालयी इलाको में है. इस बात को कई बार वैज्ञानिक प्रमाणित कर चुके हैं. काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के रिमोट सेंसिंग एक्सपर्ट शेर मोहम्मद कहते हैं कि पहले काराकोरम के ग्लेशियर हिमालय से ज्यादा स्थिर थे. लेकिन अब तो ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पिघलना शुरू हो चुके हैं.
शेर मोहम्मद कहते हैं कि काराकोरम में भी ग्लेशियल झीलों (Glacier Lakes) की संख्या तेजी से बढ़ रही है. गर्मी इतनी बढ़ रही है कि नेपाल का सबसे लंबा ग्लेशियर Ngozumpa अब स्विस चीज जैसी दिखने लगी है. यह माउंट चो ओयू (Mt. Cho Oyu) के नीचे है. इसमें कई जगहों पर पानी से भरे गड्ढे और तालाब है. चारों तरफ कचरा फैला है. इम्जा ग्लेशियर था. उसपर पहले लोग चढ़ते थे. अब रबर बोट का सहारा लेकर उसे पार करना पड़ता है.
नेपाल म ग्लेशियर झीलें हैं. ये 1998 की तुलना में तीन गुना ज्यादा तेजी से सिकुड़ रहे हैं. कुछ में ग्लेशियर पिघलने की वजह से पानी भरता जा रहा है. ऐसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट की आशंका बढ़ती जा रही है. इनकी वजह से बड़ा हादसा हो सकता है. जैसे जून 2021 में मेलामची नदी में अचानक से पहाड़ से पानी आ गया था, जिसकी वजह से 30 लोग मारे गे थे. कई घर डूब गए थे. काठमांडू का सबसे बड़ा पेयजल प्रोजेक्ट तबाह हो गया था.