इस्लामाबाद
20 साल बाद अमेरिकी सेना जब अफगानिस्तान से बाहर निकली थी तब तालिबान ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह आतंकी संगठनों को आश्रय नहीं देगा। तालिबान का यह वादा सिर्फ अमेरिका पर हमला करने वाले अल-कायदा पर ही नहीं लागू होता बल्कि तालिबान के ‘जुड़वा’ तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लिए भी है। लेकिन हाल ही में TTP ने पाकिस्तान के साथ सीजफायर को खत्म कर दिया है, जिसके बाद परेशान करने वाला सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या तालिबान आतंकियों को शरण न देने का अपना वादा पूरा कर सकेगा?
सीजफायर के खत्म होने से न सिर्फ पाकिस्तान में हिंसा बढ़ने का खतरा है, बल्कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सरकारों के बीच तनाव भी बढ़ने का डर है। अफगान तालिबान और TTP के बीच बढ़ते संबंध भी सुर्खियां बटोर रहे हैं। पिछले साल TTP नेता नूर वली महसूद ने CNN को बताया था कि अफगानिस्तान से अमेरिका को बाहर निकालने में उन्होंने अफगान तालिबान की मदद की है। उम्मीद है कि वह भी बदले में उनकी लड़ाई में मदद करेगा।
दशकों तक लड़ने की है क्षमता
TTP भी अफगान तालिबान की ही तरह अपने देश की सरकार को उखाड़ फेंकना चाहती है और पाकिस्तान में सख्त इस्लामिक कानून लागू करना उसका लक्ष्य है। इसी सप्ताह महसूद ने एक इंटरव्यू में पाकिस्तान पर सीजफायर तोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन किया था, हमारे दसियों साथियों को मार डाला और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन जब उनसे अफगान तालिबान की ओर से मिलने वाली मदद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने संभल कर जवाब दिया। उनका जवाब था, ‘हम पाकिस्तान की सीमा के भीतर पाकिस्तान से युद्ध लड़ रहे हैं। पाकिस्तान की धरती पर मौजूद हथियारों और मुक्ति की भावना के साथ हमारे पास दशकों तक लड़ने की क्षमता है।’ उनका यह जवाब सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए भी चिंता की बात है।
FBI कम से कम डेढ़ दशक से TTP पर नजर रखे है। TTP ने ही 2010 में न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में एक गाड़ी में आग लगाने के लिए फैसल शाजाद को आतंकी ट्रेनिंग दी थी। इस हमले के बाद से ही TTP को एक आतंकी संगठन करार दिया गया जिसे अमेरिकी हितों के लिए खतरा माना जाता है। हालांकि पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह का कहना है कि TTP के साथ संघर्ष को वह पूरी तरह से नियंत्रित कर सकते हैं। TTP पाकिस्तान की सीमा के करीब एक्टिव है।
हमले खड़े कर रहे सवाल
पिछले कुछ समय में TTP के हमले लगातार बढ़े हैं जो चिंता की बात है। इसके अलावा हमले यह भी दिखाते हैं कि आतंकियों को अफगानिस्तान से मदद मिल रही है। इसी साल अप्रैल में पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान में आतंकियों को निशाना बनाया था। उनका कहना था कि यह अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के अंदर आतंकी हमलों को अंजाम दे रहे हैं। इसके साथ ही नवंबर के अंत में जब सीजफायर खत्म हुआ तो पाकिस्तान ने फिर दावा किया कि TTP अफगानिस्तान की जमीन से पाकिस्तान में हमलों को अंजाम दे रहा है। इसके अगले ही दिन TTP ने पाकिस्तान में हुए एक आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली, जिसमें 3 लोगों की मौत हो गई थी और 23 घायल हुए थे।
अमेरिका के लिए क्यों है चिंता
TTP के कारण पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सरकार के बीच भी तनाव बढ़ रहा है। हाल ही में पाकिस्तान और तालिबानी सेना के बीच चमन बॉर्डर पर झड़प देखने को मिली, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई और 17 घायल हो गए। इंटरव्यू में मेहसूद ने कहा था कि अमेरिका को हमारे मामलों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, अगर अमेरिका नहीं माना तो वह अपने नुकसान के लिए खुद जिम्मेदार होगा। दरअसल अमेरिका ने अफगानिस्तान में आतंकी अयमान अल जवाहिरी को मार गिराया था। सिर्फ TTP ने ही अल जवाहिरी की मौत को माना है। TTP ने कहा था कि उन्हें यह उम्मीद नहीं थी कि अमेरिका ऐसा भी कदम उठा सकता है।