भोपाल
अपनी गर्लफ्रेंड की हत्या के लिए एमबीबीएस छात्र चंद्रेश मार्सकोले ने 14 साल जेल के अंदर काटे हैं। एक वक्त ऐसा था, जब चंद्रेश ने दिन गिनना बंद कर दिया था। केवल उनकी जिंदगी में तारीखें मायने रखती थीं। वह कोर्ट की तारीखें होती थीं, इन तारीखों पर हर बार अपनी बेगुनाही की बातें करता था। चंद्रेश मार्सकोले को इंसाफ मिलने में 14 साल लग गए, तब पता चला कि जिस अपराध के लिए उसने जेल में 4979 दिन बिताए हैं, उसने वह किया ही नहीं था। अपनी प्रेमिका की हत्या मामले में वह बरी हो गया है। जेल से बरी हो जाने के बाद वह अपने जीवन के उन टुकड़ों को उठाने के लिए बेताब है जो 2008 में बारिश के एक दिन बिखर गए थे। पुलिस ने एमबीबीएस फाइनल ईयर में उसे गिरफ्तार कर लिया। मार्सकोले जानता है कि उसके सलाखों के पीछे बिताए वर्षों को वापस नहीं आएगा लेकिन वह अपनी मेडिकल डिग्री के लिए संघर्ष कर रहा है।
मार्सकोले बालाघाट जिले के वारासोनी का एक गोंड आदिवासी है। अपनी गर्लफ्रेंड श्रुति हिल की हत्या के मामले में एमपी हाईकोर्ट से बरी हो गए हैं। एमपी हाईकोर्ट ने इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन के साथ उनकी तुलना की है, जिन्हें जासूसी के लिए झूठा फंसाया गया था। साथ ही मध्यप्रदेश सरकार को मुआवजे के तौर पर 42 लाख रुपये के भुगतान के निर्देश दिए हैं।
78 पन्नों का है निर्देश
जस्टिल अतुल श्रीधरन और सुनीता यादव ने 78 पन्नों के आदेश में पुलिस और उनकी जांच के खिलाफ कड़ी आलोचना की है। न्यायाधीशों ने कहा कि नंबी नारायण के भाग्य की तुलना में, अपीलकर्ता का भाग्य लगभग शाश्वत अभिशास में से एक है। इस केस में अपीलकर्ता ने बहुत कठिनाईयों का सामना किया। संविधान में सकारात्मक कार्रवाई के प्रावधान के लिए धन्यवाद। वह राज्य सरकार की तरफ से संचालित मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस फाइनल ईयर का छात्र था। वह एक पूर्ण चिकित्सक था। अपने परिवार के लिए एक सहारा और अपने समुदाय के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनने की कगार पर था। हालांकि इस मामले के कारण, उनका पूरा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया।
गलत जांच की बलि चढ़ गया
कोर्ट ने कहा कि वह एक प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण जांच की वेदी पर सत्य की बलि चढ़ाए जाने का शिकार हुआ है। हाईकोर्ट ने चार मई 2022 को कहा था कि राज्य सरकार 90 दिनों के भीतर उसे 42 लाख रुपये का मुआवजा दे। साथ ही इसमें विफल रहने पर ब्याज देने की बात कही थी। नौ फीसदी प्रति वर्ष के हिसाब से। इसके साथ ही कोर्ट ने पाया कि इसमें पुलिस का आचरण दुर्भावनापूर्ण है और जांच एक ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्धि हासिल करने के इरादे से की गई है जो उन्होंने किया ही नहीं। शायद डॉ हेमंत वर्मा को बचाने के लिए, जिनकी इस अपराध में संलिप्तता पर गहरा संदेह है। अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ कोर्ट में कोई सामाग्री नहीं थी क्योंकि वह मुकदमे में नहीं था।
नौ मई को भोपाल सेंट्रल जेल से रिहा हुए मार्सकोले
14 साल जेल में रहने के बाद नौ मई 2022 को मार्सकोले भोपाल सेंट्रल जेल से रिहा हुए हैं। जेल से बाहर आए छह महीने हो गए हैं लेकिन न तो गृह विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन किया है और न ही चिकित्सा शिक्षा विभाग यह स्पष्ट कर पाया है कि वह एमबीबीएस फिर से शुरू कर सकता है या नहीं। वहीं, श्रुति हिला का असली कातिल अभी भी अज्ञात है। मार्सकोले का कहना है कि वह लड़ेंगे। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि मैं अपनी पढ़ाई खत्म करना चाहता हूं और अभ्यास शुरू करना चाहता हूं। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मेरी मेडिकल डिग्री को जारी रखने के लिए मेरा आवेदन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, नई दिल्ली को भेज दिया है। मुझे नहीं पता कि इसमें कितना समय लगेगा। मेरे लिए हर दिन महत्वपूर्ण है। मैं पहले ही 14 साल खो चुका हूं।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
वहीं, एडिशनल डीसीपी राम सनेही मिश्रा ने कहा कि राज्य सरकार ने उनके बरी होने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। चिकित्सा शिक्षा विभाग इस बात को लेकर असमंजस में है कि मार्सकोले को एमबीबीएस पूरा करने की अनुमति दी जाए या नहीं। चिकित्सा शिक्षा निदेशक जिंतेंद्र शुक्ला ने कहा कि मार्सकोले अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं क्योंकि उन्हें बरी कर दिया गया है। कोई भी व्यक्ति अपनी पढ़ाई जारी रख सकता है, कोई प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि मार्सकोले के आवेदन उनके पास नहीं आए हैं। हालांकि एक अन्य अधिकारी ने कहा कि 2015 में नियम बदले गए हैं और एमबीबीएस को 10 साल में पूरा करना होगा।
पिता कर रहे दुआ
वहीं, मार्सकोले के पिता जुग्राम मार्सकोले दुआ कर रहे हैं कि बेटे को मेडिकल की डिग्री मिल जाए। वे कहते हैं कि पिछले 14 साल बुरे सपने जैसे थे। आज भी ऐसा लगता है, जैसे कोई अंत न हो। जुग्राम ने कहा कि मैं बालाघाट में था, जब मुझे भोपाल पुलिस से फोन आया कि मेरे बेटे को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। हम तबाह हो गए थे। केवल हम ही जानते हैं कि हम उस दिन कैसे पीड़ित और जीवित रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सारी मेहनत की कमाई चंद्रेश का मुकदमा लड़ने में चली गई। पिछले 10 साल से चंद्रेश के बड़े भाई विमल की कमाई पर परिवार का गुजारा चल रहा है। मेरे बेटे को झूठे मामले में फंसाया गया है। वह जीवन में दूसरा मौका पाने का हकदार है।
कब क्या-क्या हुआ
चंद्रेश मार्सकोले पर 2008 में गर्लफ्रेंड की हत्या का आरोप मिला, गर्लफ्रेंड श्रुति हिल का शव पचमढ़ी में मिला था। मार्सकोले ने आरोप लगाया था कि उसके सीनियर ने पुलिस में पहुंच का फायदा उठाते हुए उसे फंसाया है।
20 सितंबर 2008 को गांधी मेडिकल कॉलेज सीनियर रेजिडेंट डॉ हेमंत वर्मा ने आईजी को कॉल कर चंद्रेश मार्सकोले की गर्लफ्रेंड की हत्या के बारे में जानकारी दी। उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई और पुलिस ने मार्सकोले को हॉस्टल से गिरफ्तार कर लिया है।
22 सितंबर को मार्सकोले की उपस्थिति में पचमढ़ी से श्रुति हिल का शव बरामद हुआ।
24 सितंबर को ऑटोस्पी में पता चला कि उसका गला घोंटा गया है।
25 सितंबर को मार्सकोले को फाइनली इस मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। मार्सकोले पर हत्या और सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था।
31 जुलाई 2009 को मार्सकोले दोषी करार दिए और उम्रकैद की सजा हो गई।
इसके बाद मार्सकोले ने हाईकोर्ट का रूख किया। हाईकोर्ट में सुनवाई होती और कोविड की वजह से भी थोड़ा विलंब हुआ। चार मई 2022 को पुलिस की जांच में खामियां निकालकर हाईकोर्ट ने चंद्रेश मार्सकोले को बरी कर दिया। नौ मई 2022 को चंद्रेश जेल से बाहर आ गए।