‘मंदी’ से अमेरिकी शेयर बाजार चौथे दिन भी धड़ाम, भारत पर क्या होगा असर?

नई दिल्ली,

अमेरिका में आर्थिक मंदी की आशंका और चीन में कोविड के मामलों में बढ़ोतरी का असर भारतीय शेयर मार्केट पर नजर आने लगा है. पिछले पांच दिनों में बीएसई सेंसेक्स दो फीसदी से अधिक टूटा हैं और निफ्टी में भी दो फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है. इस गिरावट की वजह अमेरिका में मंदी की आशंका को माना जा रहा है. ब्रिटेन पहले ही आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका है और अब अमेरिका में आर्थिक मंदी की आशंका गहरा रही है. अमेरिकी मार्केट लगातार चौथे सेशन में भी गिरावट के साथ क्लोज हुआ था.

लगातार टूट रहा भारतीय बाजार
मंगलवार को कारोबार के अंत में सेंसेक्स 103 अंक यानी एक फीसदी की गिरावट के साथ 61,702 पर बंद हुआ. वहीं, निफ्टी 35 अंकों की गिरावट के साथ 18,385 पर बंद हुआ. ऑटो, FMCG,आईटी, मेटल और रियल्टी की अगुआई में सभी सेक्टर इंडेक्स लाल निशान में ट्रेड कर रहे थे. BSE मिडकैप और स्मॉल कैप इंडेक्स भी लगभग आधा फीसदी टूटकर कारोबार कर रहे थे.

अमेरिकी मार्केट में नहीं थम रही गिरावट
मार्केट के जानकारों का कहना है कि अभी बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है. निवेशक फेडरल रिजर्व के आक्रमक रुख से चिंतित हैं. इसकी वजह से दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी मंदी की चपेट में आ सकती है. वॉल स्ट्रीट सोमवार को लगातार चौथे सेशन में गिरकर बंद हुआ.

डॉउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज  162.92 अंक या 0.49% गिरकर 32,757.54 पर, S&P 500 34.7 अंक या 0.90% गिरकर 3,817.66 पर और नैस्डैक कंपोजिट (IXIC) 159.38 अंक या 1.49 फीसदी गिरकर 10,546.03 पर क्लोज हुआ. इसके अलावा एशियाई बाजरों में भी गिरावट का ही रुख रहा. कमजोर ग्‍लोबल संकेतों की वजह से भारतीय शेयर बाजार लाल निशान में नजर आ रहा है.

निवेशकों की चिंता
निवेशकों को चिंता है कि फेडरल रिजर्व की सख्ती के चलते अमेरिका की इकोनॉमी मंदी में फंस सकती है. फेड के चेयर जोरमी पॉवेल ने अनुमान से अधिक सख्त रुख जाहिर किया है. पावेल ने कमजोर अर्थव्यवस्था संकेतों के बावजूद बढ़ोतरी का वादा किया है.

कंज्यूमर्स पर भारी महंगाई
अमेरिका में महंगाई दर कंज्यूमर्स पर भारी पड़ रही है. कॉमर्स डिपार्टमेंट के अनुसार, नवंबर के महीने में खुदरा बिक्री में 0.6 फीसदी की गिरावट आई, जबकि Dow Jones 0.3 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया था. पिछले दिनों केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने अपनी ब्याज दरों में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी की थी. इसके बाद से ही अमेरिकी मार्केट में बिकवाली शुरू हो गई थी.

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