क्या कानूनी है एमपी में पंकज के घर पर बुलडोजर की कार्रवाई? शिवराज सरकार को ये जरूर जानना चाहिए

भोपाल

आज से ठीक एक महीने पहले, 26 नवंबर को ही हमारे देश में संविधान दिवस मनाया गया है। देश आजाद होने के बाद 1949 में इसी तारीख को हमारे देश की संविधान सभा ने वर्तमान संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था। संविधान को सुचारू रूप से अमल में लाने के लिए इसके अधिकारों को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया गया। विधायिका – जो कानून बनाएगी, कार्यपालिका – जो उस कानून को जमीनी स्तर तक पहुंचाएगी और न्यायपालिका – जो ये सुनिश्चित करेगी कि संवैधानिक तौर पर देश आगे बढ़े और कानून के क्रियान्वयन में किसी भी तरह की बाधा ना उत्पन्न हो। अगर आप आज का अखबार उठाएंगे तो पाएंगे किसका रोल कौन निभा रहा है, इस सवाल का जवाब एकदम गड्डमड्ड हो चुका है। सब अपने-आप में जज बने बैठे हैं। न्यायपालिका के ऊपर चुनिंदा मुद्दों से नजरें फेरने के आरोप लग रहे हैं। विधायिका एक खास नजरिए से कानून बना रही है और इन सब के बीच कार्यपालिका कौन सा कार्य कर रही है, इसकी जानकारी आपको शायद ‘सूचना के अधिकार’ के बावजूद भी ना मिले।

एमपी के रीवा का मामला
हालिया उदाहरण मध्य प्रदेश के रीवा का है। 25 दिसंबर, 2022 यानी कल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ये ट्वीट किया जाता है कि युवती से बर्बरता के जुर्म में एक ‘पंकज त्रिपाठी’ नाम के अपराधी के घर को जमींदोज कर दिया गया है। यानी उसके घर पर बुलडोजर चला दिया गया। उस ट्वीट में कहीं भी ये जानकारी नहीं दी गई है कि आईपीसी के किस धारा के तहत ये कार्रवाई की गई है और ये सजा सुनाने वाले कौन लोग हैं।

कानूनी रूप से कितना सही बुलडोजर एक्शन
जहां तक मेरी सीमित जानकारी है, उसके हिसाब से एक महिला के साथ दुर्व्यवहार की सजा कुछ महीनों के जेल से लेकर फांसी तक की हो सकती है। हमारे संविधान में इसका जिक्र है और समय-समय पर माननीय न्यायपालिका इसका उपयोग करती रहती है। मगर मैंने कभी न सुना और न पढ़ा कि अमुख न्यायलय ने किसी के घर को तोड़ने, उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का फैसला सुनाया हो। फिर भी मैंने यही सोचा कि शायद मेरी सीमित जानकारी की वजह से इस तरह का कुछ मैं नहीं जान सका और कानून के किसी विद्यार्थी से इस बारे में पूछना ज्यादा सही रहेगा। इसी सिलसिले में मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ स्टूडेंट प्राची मिश्रा से बात की।

इस पूरी कार्रवाई को लेकर उन्होंने कहा, ‘ये कहीं भी कानून में नहीं लिखा है कि आप आरोपी या अपराधी के घर पर बुलडोजर चला सकते हैं। उल्टा ये कार्रवाई हमारे देश के कानून के ही खिलाफ जाती है। ये अनलॉफुल है। सरकार किसी भी तरह से किसी के संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है जब तक अतिक्रमण का मामला ना हो। सजा सुनाना कोर्ट का काम है। आईपीसी में सरकार या जिला प्रशासन कोई सजा दे सकता है, ऐसा कहीं भी नहीं लिखा हुआ है। कायदे से, आरोपी को कोर्ट में पेश करना चाहिए था और कोर्ट पंकज त्रिपाठी (आरोपी) के अपराध के हिसाब से उसे सजा सुनाती।’

पंकज त्रिपाठी के घर बुलडोजर चलने का कानूनी पहलु क्या है?
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पंकज त्रिपाठी पर आईपीसी सेक्शन 323 लगाया गया जिसका मतलब है कि आरोपी ने जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। इसके तहत आरोपी को एक साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। इसके अलावा आईपीसी के सेक्शन 151 के तहत भी आरोपी पर चार्ज लगाए गए हैं। जिसका मतलब है कि आरोपी ने पब्लिक पीस या जनता की शांति को भंग करने की कोशिश की। इस सेक्शन के तहत आरोपी को 6 महीने की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

साथ ही आरोपी पर आईपीसी के धारा 362 के तहत ऐबडक्शन यानी अगवा करने के भी चार्जेज लगाए गए हैं और चूंकि आरोपी ड्राइवर था तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस भी कैंसिल कर दिया गया है। इन सभी चार्जेज के मुताबिक आरोपी पंकज त्रिपाठी को डेढ़ से दो साल की जेल के अलावा जुर्माना भरने की भी सजा सुनाई जा सकती है। ध्यान रखें, इन नियमों में अभी तक कहीं भी बुलडोजर का जिक्र नहीं आया है।

प्राची ने बताया कि इन दोनों चार्जेज के अलावा आरोपी पंकज त्रिपाठी पर आईपीसी सेक्शन 325 भी लगाया जा सकता है जो स्वेच्छापूर्वक किसी को भी गंभीर चोट पहुँचाने पर दंड की बात करता है। इसके तहत आरोपी को 7 साल की सजा सुनाई जा सकती है मगर हमें ये जानकारी नहीं मिली कि आरोपी पर सेक्शन 325 लगाई गई है या नहीं। इसके अलावा इस घटना की पीड़िता ने भी घटना की वीडियो बनाने वाले और उसे वायरल करने वाले के ऊपर आईटी एक्ट के तहत केस किया है जिसके मुताबिक आरोपी को 3 साल तक की जेल और 2 लाख जुर्माना हो सकता है। घटना के बाद मामले में लापरवाही बरतने के लिए एसपी नवनीत भसीन ने महिला थाना प्रभारी श्वेता मौर्य को सस्पेंड कर लाइन अटैच कर दिया है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश की धरती पर महिलाओं पर अत्याचार करने वाला कोई बख्शा नहीं जायेगा और इस तरह के अपराध करने वाले को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है। ये बहुत अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री को राज्य की महिलाओं की चिंता है मगर क्या ये चिंता उन्हें कानून से ऊपर उठने का अधिकार देती है? अगर महिलाओं की इतनी ही चिंता है तो उन्हें लॉ एंड आर्डर को दुरुस्त करना चाहिए ताकि कोई मनचला इस तरह की हरकत दोबारा न कर पाए।

क्या शिवराज सरकार की कार्रवाई सही है?
हमारी दंड संहिता में पहले से ही लगभग हर तरह के अपराध के लिए दी जाने वाली सजाओं का प्रावधान है, फिर ये बुलडोजर न्याय का क्या मतलब? मुख्यमंत्री के आधिकारिक हैंडल से किए गए ट्वीट में इस बात की भी जानकारी दी जानी चाहिए थी कि संविधान के किस कानून के तहत ये बुलडोजर चलने की कार्रवाई की गई है और आरोपी के साथ उनके परिवारवालों को किस बात की सजा मिल रही है। अगर उनका घर तोड़ा गया है तो उनके रहने की व्यवस्था क्या शिवराज सरकार करने वाली है? अगर नहीं, तो फिर उनके मानवाधिकारों का क्या? उम्मीद है कि इस रिपोर्ट को पढ़कर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन सवालों का जवाब देना उचित समझेंगे।

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