मुंबई:
बुधवार को पुणे के कांग्रेस ऑफिस में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि कुछ लोग देश को कांग्रेस मुक्त बनाना चाहते हैं लेकिन ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बनाना संभव नहीं है। देश के लिए कांग्रेस के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को साथ में लेकर ही राजनीति करनी होगी। पुणे स्थित कांग्रेस कार्यालय में पहुंचकर उन्होंने अपने पुराने दिनों को याद किया। जब वो साल 1958 में पहली बार पुणे स्थित कांग्रेस पार्टी के दफ्तर में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत के बाद आए थे। पवार ने यह भी बताया कि उस दौर का माहौल ऐसा था की पुणे का मतलब कांग्रेस और कांग्रेस का मतलब पुणे था।
विदेशी मूल का मुद्दा उठाने के बाद छोड़ी थी कांग्रेस
दरअसल शरद पवार बुधवार को कांग्रेस पार्टी के 138 वें स्थापना दिवस के मौके पर पुणे स्थित कांग्रेस कार्यालय पर गए थे। हालांकि, जिस तरह से उन्होंने अपने पुराने कार्यालय पर पहुंचकर कांग्रेस के समर्थन में बातें कहीं। वह महाराष्ट्र की सियासत में चर्चा का विषय बना हुआ है कि शरद पवार का अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? क्योंकि यह शरद पवार ही थे जिन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया था। इतना ही नहीं साल 1999 में उन्होंने इसी मुद्दे को आधार बनाकर कांग्रेस से किनारा करते हुए एनसीपी का गठन किया था।
शरद पवार और एनसीपी
शरद पवार के लिए साल 1999 काफी अहम था। इसी वर्ष उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और कांग्रेस छोड़ दी। इसके पवार ने इसी साल एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) का गठन किया। बावजूद इसके उन्होंने महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। महाराष्ट्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक ने एक इंटरव्यू में यह कहा था कि साल 1999 में एक साथ हुए लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने पवार को उप प्रधानमंत्री बनने और राज्य में सरकार बनाने की पेशकश की थी। हालांकि, पवार साहब ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार बनाई उनके लिए यह कोई निजी अहम का मुद्दा नहीं था बल्कि विचारधारा का मुद्दा था। जब विचारधारा की बात आती है तो निजी मुद्दे मायने नहीं रखते।
इंदिरा और सोनिया का साथ छोड़ चुके पवार का कांग्रेस प्रेम
शरद पवार को यूं ही नहीं राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। चाहे सत्ताधारी पक्ष हो या फिर विपक्ष दोनों दलों में उनकी पैठ बराबर रहती है। साल 2017 में उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। महाराष्ट्र की सियासत में वह तीन बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। मनमोहन सिंह की सरकार में लगातार दस साल तक कृषि मंत्री रह चुके हैं। देश के रक्षा मंत्री की भी जिम्मेदारी संभाल चुके शरद पवार ने कांग्रेस के साथ दो बार बगावत कर चुके हैं। 27 साल की उम्र में यशवंतराव चव्हाण के संरक्षण में उन्होंने विधायक बनने के बाद 1978 में इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत कर दी थी। पवार ने तब महाराष्ट्र में जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। हालांकि, जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो शरद पवार फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद 1999 में उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया और कांग्रेस पार्टी को छोड़ एनसीपी का गठन किया।
देश का पीएम बनना चाहते थे शरद पवार
यह हर कोई जानता है कि शरद पवार देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना काफी लंबे समय से देख रहे हैं। यह मौका उन्हें साल 1991 में मिला भी था। दरअसल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई थी, उस समय देश में लोकसभा चुनाव हो रहे थे। इस हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए तीन दावेदारों का नाम सामने आया था। जिसमें एक नाम शरद पवार का भी था लेकिन यह बाजी पी.वी नरसिम्हा राव जीतने में कामयाब हो गए। हालांकि, जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से पवार का यह सपना धूमिल होता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में पवार यह सार्वजनिक रूप जे कह भी चुके हैं कि वो पीएम की रेस में नहीं हैं।