जोशीमठ का दर्द पार्ट-2: रोती उत्तरा पांडे और नजरें चुराकर निकलते CM धामी

जोशीमठ

लगातार धंस रहे जोशीमठ में कदम रखते ही घर की दरारों से पहले आंसुओं ने नम कर दिया। दिल्ली के कश्मीरी गेट में शुक्रवार रात आठ बजे से शुरू हुआ जोशीमठ का सफर शनिवार दोपहर 1 बजे खत्म हुआ। शहर में घुसते ही दो चीजों ने ध्यान खींचा। तहसील में जमा भीड़ और शहर की गली-गली में तैनात पुलिस। तहसील में घर होते हुए भी बेघर हो चुके या उसके कगार पर पहुंचे पीड़ितों का आंदोलन चल रहा है। पुलिस की मुस्तैदी दिखा रही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बस पहुंचने ही वाले हैं।

तहसील में चल रहे धरने में ज्यादातर महिलाए हैं। महिलाएं देवभूमि उत्तराखंड की ताकत हैं। राज्य का कोई भी आंदोलन रहा हो, वे हर बार सबसे आगे खड़ी दिखाई देती हैं। इस बार भी जमी हैं। घर-बार बच्चे छोड़कर। इस बार दांव पर घर लगा है। तिनका-तिनका कर जो आशियाना बुना है, वह आंखों के सामने उजड़ रहा है। सभी के चेहरे दिल का हाल बता रहे हैं। घर की दरारें चेहरे पर साफ झलक रही हैं।

मह‍िलाओं की नम आंखें बयां कर रहा दर्द
धरने में शामिल लोगों का भाषण चल रहा है। वे उसे बेहद दिल से सुन रही हैं। दिल तक पहुंचने वाली बात पर तालियां बजा रही हैं। बेचैन करने वाली बातों पर आंखें पनीली हो रही हैं। घर वैसे भी पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की संपत्ति है। पुरुष बस ईंट-पत्थर जोड़ देता है। महिलाएं उसे घर बनाती हैं। इसीलिए उसकी दरारें उनके दिल को ज्यादा जख्मी कर रही हैं।

जोशीमठ का दर्दः दोस्त सख़्त बीमार है, ज़रा दुआएं कीजिए
इस दौरान कुछ भावुक लाइनें पढ़ी जाती हैं। कई आंखों में आंसुओं की धार फूट पड़ती है। सामने बैठीं 55-60 साल की दिख रहीं महिला बेतरह रो रही हैं। आंसू थम नहीं रहे हैं। नजर घुमाता हूं, तो कई आंखें गीली हैं। मैं संकोच के साथ माइक आगे करता हूं। पूछूं क्या, समझ नहीं आ रहा है। बस माइक आगे कर देता हूं।मेरा नाम उत्तरा पांडे हैं। मेरा घर सबसे पहले चला गया। मुख्यमंत्री जी के आसरे पर बैठे हुए हैं। कहा था हमारा घर देखने आएंगे। पर नहीं आ रहे। हम बेघर हो गए हैं…। जोशीमठ का दर्द फूट रहा है। माइक आगे सरकाता जाता हूं और दर्द की यह लकीर और लंबी खिंचती चली जाती है।

कानून व्यवस्था और बस हुक्म बजाने की बेबसी
उधर, मुख्यमंत्री धामी का हेलिकॉप्टर लैंड कर चुका है। यहां से 200 मीटर दूर नगर पालिका के गेस्ट हाउस में उनके दौरे का चाक-चौबंद इंतजाम है। इस बीच तहसील में पुलिस ने जबर्दस्त घेराबंदी कर डाली है। सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई भी बाहर नहीं जाने पाए। पत्रकारों को हालांकि विशेष छूट दी जा रही है। कुछ महिलाएं मुझे अपने टूटे घर को दिखाना चाहती हैं, उन्हें रोक दिया जाता है। मैं मोर्चा संभाल रही महिला पुलिसकर्मी से पूछता हूं- यह नजरबंदी क्यों है? अपने घर भी जाने क्यों नहीं जाने दिया जा रहा? उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं है। कानून व्यवस्था और बस हुक्म बजाने की बेबसी जाहिर कर वह मुंह मोड़ लेती हैं।आखिर यह कैसा डर है कि दर्द से कराह रहे अपने लोगों से एक मुख्यमंत्री नजरें बचाकर चुपचाप चला जाए! जोशीमठ के सीने पर अपनी आंखों के सामने एक और दरार खिंचते हुए देखता हूं। इसे कौन भरेगा?

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