बिहार में जातिगत जनगणना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, उठाए गए ये 7 सवाल

नई दिल्ली,

बिहार में जातिगत जनगणना का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. जातिगत जनगणना कराने के लिए पिछले साल 6 जून को राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिका में जातिगत जनगणना के नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग की गई है. ये याचिका बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. लिहाजा अधिसूचना को ही रद्द करने की गुहार सबसे बड़ी अदालत से लगाई गई है. याचिका में सात बिंदुओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सामने ये मुद्दा उठाया गया है.

संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया
पहला तो यह कि बिहार में जातिगत जनगणना कराने की कार्यवाही शुरू कर दी गई है. यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और मूल ढांचे का उल्लंघन है. दूसरा मुद्दा यह कि क्या भारत का संविधान राज्य सरकार को जातिगत आधार पर जनगणना करवाने का अधिकार देता है? तीसरा यह है कि क्या 6 जून को बिहार सरकार के उप सचिव की ओर से जारी अधिसूचना जनगणना कानून 1948 के खिलाफ है?

संविधान से राज्य को मिलता है अधिकार
चौथा मुद्दा यह है कि क्या किसी समुचित या विशिष्ट कानून के अभाव में जाति आधारित जनगणना के लिए अधिसूचना जारी करने की अनुमति हमारा संविधान राज्य को देता है? पांचवा मुद्दा यह कि क्या राज्य सरकार का जातिगत जनगणना कराने का निर्णय सभी राजनीतिक दलों की सहमति से लिया गया एकसमान निर्णय है?

राजनीतिक दलों का कोई निर्णय सरकार पर बाध्यकारी?
छठा यह कि क्या बिहार में जाति आधारित जनगणना के लिए राजनीतिक दलों का कोई निर्णय सरकार पर बाध्यकारी है? सातवां और अंतिम यह कि क्या बिहार सरकार का 6 जून का नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमचेन मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ है.याचिका में कहा गया है कि बिहार राज्य की अधिसूचना और फैसला अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार के बिना है.

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