Tripura : बीजेपी को उखाड़ने के लिए कांग्रेस और लेफ्ट के उम्रदराज नेता लिख रहे राजनीति की एक नई इबारत

अगरतला

त्रिपुरा की राजनीति एक अरसे तक वामपंथ के इर्दगिर्द चलती थी। लेकिन 2018 के चुनाव में बीजेपी ने जो कारनामा किया वो राजनीतिक गलियारों में किसी चमत्कार से कम नहीं था। बीजेपी ने बीजेपी ने लेफ्ट के त्रिपुरा के सबसे मजबूत किले को भी ढहा दिया है। बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा छूकर जीत दर्ज की। बीजेपी के लिए त्रिपुरा की यह जीत इस वजह से भी अहम है, क्योंकि पार्टी ने यहां शून्य से शिखर तक का सफर तय करते हुए 25 साल से सत्तारूढ़ माणिक सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था।

बीजेपी ने अपनी सहयोगी आईपीएफटी के साथ कुल 44 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी ने त्रिपुरा में 51 सीटों पर चुनाव लड़ा और 43 फीसदी वोट हासिल किए। वहीं, सीपीएम को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई। बीजेपी के मजबूत प्रदर्शन ने भौचक कर डाला, क्योंकि 2018 से पहले त्रिपुरा में पार्टी का एक पार्षद तक नहीं था। 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 2 फीसदी से कम वोट मिले थे।

अब त्रिपुरा में फिर से चुनावी चौसर बिछने लगी है। असेंबली चुनाव के लिए बीजेपी के साथ लेफ्ट और कांग्रेस भी खुद को तैयार कर रहे हैं। बीजेपी की चिंता है कि वो अपनी सत्ता को कैसे भी बरकरार रखे तो लेफ्ट को फिर से अपने गढ़ में ताकत दिखानी है। कांग्रेस लेफ्ट के कंधों पर सवार होकर खुद को मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है। फिलहाल त्रिपुरा में लेफ्ट और कांग्रेस की कमान दो उम्रदराज नेताओं के पास है। CPI(M) की कमान जितेंद्र चौधरी के पास है। 65 साल के चौधरी बीजेपी को हराने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। वो सांसद रह चुके हैं और उनका सपना है कि लेफ्ट को त्रिपुरा में फिर से मजबूत करने का। माणिक सरकार की जगह को भरने के लिए वो तैयार हैं।

वो CPI(M) के सबसे युवा सेक्रेट्री हैं। उन्हें 2021 में पार्ट की कमान मिली। उनका मजबूत पक्ष ये है कि वो ट्राइबल नेता भी हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन नहीं बल्कि एक अरेंजमेंट है। बीजेपी संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। लोगों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। ऐसे में हमारी ड्यूटी बनती है कि गैर बीजेपी पार्टियों को एक साथ लाकर एक मजबूत मोर्चा तैयार करें। इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं। हालांकि उनका समीकरण उस समय कारगर होता नहीं दिखता जब प्रद्योत किशोर टिपरा मोथा के साथ उनकी बातचीत सिरे नहीं चढ़ सकी। वैसे टिपरा मोथा ने चौधरी की सीट पर उनका समर्थन किया लेकिन पार्टियों के बीच बातचीत सिरे नहीं चढ़ सकी। टिपरा मोथा की ट्राइबल में पकड़ काफी मजबूत है।

कांग्रेस की कमान 71 साल के बिराजित सिन्हा के पास है। वो हमेशा से कांग्रेस के साथ रहे। यानि हमेशा से वो लेफ्ट से लड़ते रहे। एक बार सूबे की सरकरा में मंत्री रहे। कई सालों से वो एमएलए बनते आ रहे हैं। सुदीप राय बर्मन के साथ वो उन नेताओं में से एक रहे जिन्होंने लेफ्ट के साथ गठजोड़ की वकालत की। 2019 से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का काम संभाल रहे बिराजित सिन्हा कहते हैं कि उनका ध्येय बीजेपी को त्रिपुरा से उखाड़ फेंकने का है। इसके लिए वो किसी की भी मदद लेने और करने को तैयार हैं।

उनका कहना है कि लेफ्ट और कांग्रेस का ये गठजोड़ देश की राजनीति में मिसाल बनकर सामने आएगा। हम लोगों को दिखाएंगे कि बीजेपी को कैसे हराया जा सकता है। हालांकि उनका प्रयोग पहले कारगर नहीं रहा है। 2018 में लेफ्ट से तालमेल के बावजूद कांग्रेस को शून्य सीटें मिलीं। कांग्रेस का वोट बैंक भी 45 फीसदी से 3 फीसदी पर आ गया। लेकिन देखा जाए तो कांग्रेस के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। उसके पास लेफ्ट के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं है।

फिलहाल दोनों नेता छोटी छोटी नुक्कड़ सभाओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। बीजेपी से उनकी रणनीति उलट है। बीजेपी के 40 स्टार प्रचारक भीड़ जुटाने का काम कर रहे हैं। उनका सारा जोर लोगों को अपनी तरफ खींचने का है। दोनों एक खास तरह की रणनीति लेकर आगे बढ़ रहे हैं।

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