132 बार हो चुका है आर्टिकल 356 का इस्तेमाल, जानिए कब-कब लगा राष्ट्रपति शासन?

नई दिल्ली,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को विपक्ष खासकर कांग्रेस पर जमकर बरसे. वो राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब दे रहे थे. इस दौरान पीएम मोदी ने कांग्रेस पर बड़ा हमला करते हुए कहा कि उनकी सरकारों ने चुनी हुई सरकारों को गिराने का सबसे ज्यादा काम किया.

पीएम ने कहा, ‘वो कौन लोग हैं जिन्होंने आर्टिकल 356 का दुरुपयोग किया? एक प्रधानमंत्री ने आर्टिकल 356 का 50 बार दुरुपयोग किया और वो नाम है श्रीमती इंदिरा गांधी का. विपक्षी और क्षेत्रीय दलों की सरकारों को गिरा दिया गया. केरल में वामपंथी सरकार चुनी गई, जिसे नेहरू पसंद नहीं करते थे, उसे गिरा दिया गया. करुणानिधि जैसे दिग्गजों की सरकारें गिरा दी गईं. एनटीआर के साथ कांग्रेस ने क्या किया.’प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा कि कांग्रेस ने हर क्षेत्रीय नेता को परेशान किया. 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया. कांग्रेस सरकार ने डीएमके और वामपंथी सरकारों को गिरा दिया.

पीएम मोदी ने जिस आर्टिकल 356 का जिक्र किया, उसे आम भाषा में राष्ट्रपति शासन कहा जाता है. देश में अब तक 132 बार अलग-अलग राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है. इनमें से तकरीबन 90 बार राष्ट्रपति शासन तब लगा, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. ऐसे में ये समझते हैं कि आखिर आर्टिकल 356 क्या है? और इसका कांग्रेस से कैसे संबध है?

क्या है आर्टिकल 356?
आर्टिकल 356 को हम आसान भाषा में राष्ट्रपति शासन के रूप में जानते हैं. इसके तहत किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के उल्लंघन की स्थिति में सरकार को भंग किया जा सकता हैं. जब किसी राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो राज्यपाल उस समय राष्ट्रपति शासन के लिए अनुशंसा कर सकता है.

आमतौर पर इसे 6 महीने के लिए लगाया जाता है लेकिन यदि राज्य में स्थिति सामान्य नहीं हुई तो इसे अधिकतम 3 साल तक के लिए बढ़ाया भी जा सकता है. जिस राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाता है, वहां की सारी व्यवस्था सीधे राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती है. लेकिन राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं, इसलिए इसका मतलब हुआ कि यहां का पूरा शासन केंद्र के हाथ में आ जाता है. राष्ट्रपति शासन को कभी भी हटाया जा सकता है.

कब लगता है राष्ट्रपति शासन?
आमतौर पर राष्ट्रपति शासन लागू होने के दो आधार होते हैं. पहला, अगर राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिपोर्ट को स्वीकार कर लें कि राज्य सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चल रही है. दूसरा, अगर राज्य, केंद्र सरकार की ओर से दिए गए निर्देशों का पालन करने या उसे लागू करने में विफल रहता है. दूसरे प्रावधान का जिक्र आर्टिकल 365 में है.इसके अलावा अगर विधानसभा चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत ना मिले या विधानसभा अपना मुख्यमंत्री ना चुन पाए तो ऐसी स्थिति में भी राष्ट्रपति शासन लग जाता है.

पहली बार कब हुआ आर्टिकल 356 का प्रयोग?
आर्टिकल 356 का सबसे पहला इस्तेमाल पंजाब में 20 जून 1951 को किया गया था. तब इसे 302 दिनों तक लागू रखा गया था. इसके अलावा 1959 में केरल की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को भी आर्टिकल 356 का इस्तेमाल करके बर्खास्त कर दिया गया था.ऐसा माना जाता हे कि 70 और 80 के दशक में विपक्ष की सरकारों को गिराने के लिए केंद्र सरकार ने संविधान के इस अनुच्छेद का खूब दुरुपयोग किया. आर्टिकल 356 के दुरुपयोग का सबसे ज्यादा आरोप पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर लगता है.

इंदिरा गांधी का आपातकाल के पहले और बाद में प्रधानमंत्री के तौर पर लगभग 15 साल का कार्यकाल रहा. इस दौरान 1966 से 1977 के बीच 36 बार और 1980 से 1984 के बीच 15 बार अलग-अलग राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया गया. आजादी से लेकर अब तक जितनी बार भी राष्ट्रपति शासन लगा है, ज्यादातर समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार रही है. हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि आर्टिकल 356 का दुरुपयोग सिर्फ कांग्रेस ने ही किया.

इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. जनता पार्टी के तीन साल के कार्यकाल में 21 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया. इन तीन साल में 6 महीने के लिए चौधरी चरण सिंह भी कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने थे. जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद 1980 में इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं और उन्होंने एक साथ 9 राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया.

भाजपा भी नहीं रही पीछे
आर्टिकल 356 के इस्तेमाल को लेकर भाजपा भी पीछे नहीं रही है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में जहां इसका पांच बार प्रयोग हुआ. वहीं 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद भी ये सिलसिला बंद नहीं हुआ. अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और महाराष्ट्र इसके उदारहण हैं. सरकार में पहली बार 28 सितंबर 2014 से 31 अक्टूबर 2014 तक महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाया गया. उस वक्त महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी. मोदी सरकार में अब तक 10 बार आर्टिकल 356 का इस्तेमाल हो चुका है.

बोम्मई केस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तय की सीमा
राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग को लेकर केंद्र सरकार पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. हालांकि 1994 के एसआर बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 356 के उपयोग को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला दिया. एसआर बोम्मई अगस्त 1988 से अप्रैल 1989 के बीच कर्नाटक में जनता दल की सरकार में मुख्यमंत्री थे.लेकिन अप्रैल 1989 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने बोम्मई की सरकार को इस आधार पर बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया कि उनके पास बहुमत नहीं है. इसके विरोध में बोम्मई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय बेंच ने मार्च 1994 में फैसला सुनाया और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के लिए व्यापक गाइडलाइन तय की. उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक केंद्र सरकार आर्टिकल 355 का पूरी तरह उपयोग न कर ले, तब तक अनुच्छेद 356 को लागू करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए. अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को ये अधिकार देता है कि वो राज्य में कानून व्यवस्था संभालने के लिए दखल करे. इसके जरिए केंद्र ये भी देखता है कि राज्य में सबकुछ संविधान के अनुरूप चल रहा है या नहीं.

दो राज्यों में अब तक नहीं लगा राष्ट्रपति शासन
अब तक आपको समझ आ गया होगा कि कैसे केंद्र की सरकारों ने आर्टिकल 356 का इस्तेमाल अपनी सुविधानुसार किया है. लेकिन आपको ये जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि देश में दो राज्य ऐसे भी हैं जहां अब तक राष्ट्रपति शासन नहीं लगा है. ये दो राज्य हैं छत्तीसगढ़ और तेलंगाना.आपको बता दें कि अब तक का सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन जम्मू-कश्मीर में लागू हुआ जो 6 साल 264 दिन तक चला था, वहीं सबसे कम कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में 7 दिन के लिए लगा था. अब तक उत्तर प्रदेश और मणिपुर में 10 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है, जो राज्यों में सबसे ज्यादा है.

किस प्रधानमंत्री ने कितनी बार लगाया राष्ट्रपति शासन?

प्रधानमंत्री कार्यकाल कितनी बार राष्ट्रपति शासन लगा?
जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 7
लालबहादुर शास्त्री 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 1
इंदिरा गांधी 24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977

14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984

51
मोरारजी देसाई 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 17
चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 4
राजीव गांधी 31 अक्टूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 6
वीपी सिंह 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 2
चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 5
पीवी नरसिम्हा राव 21 जून 1991 से 16 मई 1996 11
अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई 1996 से 1 जून 1996

19 मार्च 1998 से 22 मई 2004

5
एचडी देवेगौड़ा 1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 1
इंद्र कुमार गुजराल 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 0
मनमोहन सिंह 22 मई 2004 से 26 मई 2014 12
नरेंद्र मोदी 26 मई 2014 से अब तक 10

सिर्फ आर्टिकल 356 ही नहीं, ये भी है चुनौती
डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में अनुच्छेद 356 को संविधान के मृत पत्र की संज्ञा दी थी. उम्मीद की गई थी कि इसका इस्तेमाल कम से कम किया जाएगा. लेकिन अब तक तो ऐसा होता दिखा नहीं. आजतक से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने कहा कि ‘इंदिरा गांधी की सरकार में अनुच्छेद 370 का सर्वाधिक प्रयोग हुआ लेकिन सभी पार्टियों ने इसका मनमाना इस्तेमाल किया. हालांकि दल-बदल कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आर्टिकल 356 का दुरुपयोग मुश्किल जरूर हो गया. राजभवन की बजाय बहुमत का निर्धारण जब विधान सभा में होने लगे तो राज्यपाल की भूमिका भी कम हो गई. इसलिए समय के साथ आर्टिकल 356 का दुरुपयोग कम हुआ और यह संविधान और संघवाद के लिए अच्छी बात है.’

विराग गुप्ता ने आगे कहा कि ‘आर्टिकल 356 के मुकाबले एक नई चुनौती सामने आ रही है. कई राज्य सरकारों के आरोप हैं कि राज्यपाल उन्हें पूरी ताकत से काम नहीं करने दे रहे. संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य और समवर्ती सूची के स्पष्ट निर्धारण के बावजूद इस तरीके के विरोधाभास होना संघीय व्यवस्था के लिए बेहतर संकेत नहीं हैं.’

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