BBC के दफ्तरों पर इनकम टैक्स की रेड को लेकर विदेशी मीडिया में ऐसी चर्चा!

नई दिल्ली,

पिछले महीने रिलीज हुई बीबीसी डॉक्यूमेंट्री ‘India: The Modi Question’ पर चल रहे विवाद के बीच इनकम टैक्स ने बीबीसी की दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर छापा मारा है. बताया जा रहा है कि छापेमारी टैक्स में गड़बड़ी की जांच को लेकर है. मंगलवार दोपहर शुरू हुई छापेमारी अब तक जारी है. दुनिया भर के अखबार, मीडिया वॉचडॉग और मानवाधिकार संस्थाएं बीबीसी के ऑफिस पर छापेमारी की आलोचना कर रही हैं. इनका कहना है कि मोदी सरकार इस छापेमारी से बीबीसी को डराने की कोशिश कर रही है और यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. आइए जानते हैं विदेशी मीडिया में बीबीसी के दफ्तरों पर आयकर विभाग की रेड को लेकर क्या क्या छपा है?

अमेरिका स्थित ब्लूमबर्ग ने बीबीसी ऑफिस पर छापे की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए हैं और कहा है कि यह प्रेस पर भारत का ताजा हमला है. ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा, ‘तीन हफ्ते पहले, ब्रिटिश ब्रॉडकास्टर ने सांप्रदायिक दंगों में मोदी की कथित भूमिका को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की थी. 2002 में हुए दंगों ने मोदी के गृह राज्य गुजरात को भारी नुकसान पहुंचाया था. इस मामले को लेकर मोदी काफी संवेदनशील हैं. मोदी की सरकार ने डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया और विश्वविद्यालयों में स्क्रीनिंग के साथ-साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर क्लिप को ब्लॉक करने का प्रयास किया.’

ब्लूमबर्ग की विस्तृत रिपोर्ट में लिखा गया कि बीजेपी की ट्रोल आर्मी ने बीबीसी पर टैक्स संबंधित छापेमारी पर खुशी जताई है. रिपोर्ट में लिखा गया, ‘मोदी की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सरकारी प्रवक्ता और नेता बीबीसी के खिलाफ औपनिवेशिक मानसिकता बनाए रखने का आरोप लगा रहे हैं. वो बीबीसी के खिलाफ एक हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं.’

गार्डियन
ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्डियन ने छापेमारी को लेकर कहा है कि मोदी पर गुजरात दंगों में संलिप्तता के आरोप लगते रहे हैं और इसे लेकर अमेरिका ने उन्हें लगभग एक दशक तक प्रतिबंधित कर दिया था. अखबार ने लिखा कि बीबीसी ने छोटा सा बयान जारी कर रहा है कि वो जांच में सहयोग कर रही है. ब्रिटेन की सरकार ने छापेमारी को लेकर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

बीबीसी पर आयकर विभाग का छापा
रिपोर्ट में आगे लिखा गया, ‘ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि उन्होंने बीबीसी से बात की थी. जब ऐसी घटनाओं की बात आती है तो बीबीसी पहले भी राजनीतिक समर्थन लेने से इनकार करती रही है. वो यह दिखाने की कोशिश करती है कि संस्था ब्रिटिश सरकार से अलग है.’

अलजजीरा
कतर स्थित अलजजीरा ने अपनी एक रिपोर्ट में शीर्षक दिया, ‘मोदी पर डॉक्युमेंट्री पर विवाद के बीच बीबीसी के दफ्तरों पर इनकम टैक्स की रेड’. अलजजीरा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, ‘YouTube और ट्विटर पर डॉक्यूमेंट्री के प्रसार को रोकने के सरकार के प्रयासों ने 2024 के आम चुनावों से पहले मोदी के लिए एक राजनीतिक संकट पैदा किया है. अधिकारियों ने भी नई दिल्ली में पुलिस के साथ मिलकर डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को रोकने की कोशिश की है. स्क्रीनिंग के लिए जमा हुए छात्रों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है.’

न्यूयॉर्क टाइम्स
अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट में लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के बाद उसके दफ्तरों पर छापेमारी की. डॉक्यूमेंट्री में देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ मोदी सरकार के व्यवहार की आलोचना की गई थी.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, ‘मोदी के शासन में भारतीय अधिकारियों ने अक्सर स्वतंत्र मीडिया संगठनों, मानवाधिकार समूहों और थिंक टैंकों के खिलाफ इस तरह की छापेमारी की कार्रवाई की है. इन संस्थाओं के कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह उनके फंडिंग के स्रोतों को निशाना बनाकर उनकी आवाजों को दबाने का भारत सरकार का एक प्रयास है. मानवाधिकार समूहों ने बार-बार प्रेस की घटती स्वतंत्रता के बारे में चिंता व्यक्त की है. भारत में पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को लंबे समय के लिए जेल में डाल दिया जाता.’

समाचार एजेंसी एपी
अमेरिका स्थित समाचार एजेंसी एपी ने लिखा भी इनकम टैक्स की रेड को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री से जोड़ा है. एपी ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि मोदी की पार्टी के कई सांसदों ने डॉक्यूमेंट्री को देश की संप्रभुता पर हमले बताया है. पिछले हफ्ते, हिंदू दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों ने बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था.

रिपोर्ट में लिखा गया, ‘ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाना मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों पर व्यापक कार्रवाई को दर्शाता है, जिसके बारे में मानवाधिकार समूह ने कहा कि आलोचना को दबाने के लिए अक्सर कठोर कानूनों का सहारा लिया जाता है. हाल के वर्षों में, भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक हिंदू राष्ट्रवादियों की हिंसा का निशाना बने हैं. मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस तरह के हमलों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.’

एपी की रिपोर्ट में आगे लिखा है, ‘हाल के वर्षों में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता में लगातार गिरावट आई है. मीडिया वॉचडॉग समूहों ने मोदी सरकार पर एक व्यापक इंटरनेट कानून के तहत सोशल मीडिया पर आलोचना को खत्म करने का आरोप लगाया है. सरकार का यह कानून ट्विटर, फेसबुक सहित डिजिटल प्लेटफॉर्म को सीधे सरकार की निगरानी में रखता है.’

डॉन
पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत में प्रेस की स्वतंत्रता कम हुई है.रिपोर्ट में लिखा गया, ‘मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता को मोदी के कार्यकाल में नुकसान उठाना पड़ा है. पत्रकारों के साथ-साथ देश के विपक्षी दलों ने भी बीबीसी दफ्तरों पर छापेमारी को बदले की कार्रवाई और अघोषित आपातकाल कहा है. छापे ने भारत में सेंसरशिप की आशंका बढ़ा दी है.’

अखबार ने रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की तरफ से जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की गिरती रैंक की बात कही है. कहा गया है कि 2014 के बाद से भारत प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 10 अंक गिरकर 180 देशों की लिस्ट में 150वें स्थान पर आ गया है.

अरब न्यूज
सऊदी अरब के अखबार अरब न्यूज ने छापेमारी को बीबीसी की मोदी पर डॉक्यूमेंट्री से जोड़ते हुए कहा है कि बीबीसी के दफ्तरों पर छापेमारी डॉक्यूमेंट्री के बाद की जा रही है.अरब न्यूज ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा, ‘2002 के दंगों में पीएम मोदी की भूमिका की जांच करने वाली डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के बाद बीबीसी दफ्तरों में छापेमारी की जा रही है. गुजरात दंगों के समय मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे. भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी कानूनों के तहत आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया था. अब इस छापेमारी ने भारतीय मीडिया को सदमा पहुंचाया है.’

एएफपी
फ्रांस की न्यूज एजेंसी एएफपी ने कहा है कि भारत सरकार इनकम टैक्स रेड के जरिए मीडिया और मानवाधिकार संगठनों को निशाना बना रही है. एएफपी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि बड़े पत्रकारों, खासकर महिलाओं का कहना है कि पिछले कई सालों से उन्हे ऑनलाइन दुर्व्यवहारों का सामना करना पड़ रहा है. मीडिया आउटलेट्स, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों और विदेशी फंड देने वालों को भी भारत के इनकम टैक्स अधिकारी और वित्तीय अपराध जांचकर्ताओं की जांच से परेशान किया जाता है.

रिपोर्ट में लिखा गया, ‘दिवंगत कैथोलिक नन मदर टेरेसा की चैरिटी को भी पिछले साल विदेशी फंड लेने से अस्थायी रूप से रोक दिया गया था. गृह मंत्रालय ने उनके विदेशी फंड लेने के लाइसेंस को रिन्यू नहीं किया था जिससे संस्था में फंड की कमी हो गई थी. साल 2020 में एमनेस्टी इंटरनेशनल के दफ्तरों पर छापेमारी की गई और फिर सरकार ने उसके सभी बैंक खातों को सील कर दिया जिसके बाद मानवाधिकार संगठन ने भारत में अपने काम को बंद कर दिया था.’

मीडिया वाचडॉग और मानवाधिकार संस्थाएं
न्यूयॉर्क स्थित स्वतंत्र गैर-लाभकारी संस्था Committee to Protect Journalists (CPJ) ने भारत सरकार से पत्रकारों को परेशान करना बंद करने का आग्रह किया है.इसके एशिया प्रोग्राम के समन्वयक बेह लिह यी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना वाली एक डॉक्यूमेंट्री के मद्देनजर बीबीसी के भारतीय दफ्तरों पर छापा मारना बीबीसी को डराने जैसा है. भारतीय अधिकारियों ने पहले भी भारत के मीडिया आउटलेट्स को निशाना बनाने के लिए एक बहाने के रूप में टैक्स जांच का इस्तेमाल किया है. अधिकारियों को बीबीसी कर्मचारियों को परेशान करना बंद कर देना चाहिए.’

फ्रांस की रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने ट्वीट किया, ‘नरेंद्र मोदी पर डॉक्यूमेंट्री के तीन हफ्ते बाद भारत में बीबीसी के दफ्तरों पर इनकम टैक्स अधिकारियों का छापा, एक अपनामजनक बदले को दिखाता है. हम भारत सरकार की किसी भी आलोचना को चुप कराने के इन प्रयासों की निंदा करते हैं.’

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान में कहा, ‘ये छापे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का घोर अपमान हैं. भारतीय अधिकारी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की आलोचनात्मक कवरेज पर बीबीसी को परेशान करने और धमकाने की कोशिश कर रहे हैं. इनकम टैक्स की शक्तियों को बार-बार आलोचना को रोकने का हथियार बनाया जा रहा है.’

मानवाधिकार संगठन का कहना है कि भारत सरकार ऑक्सफैम इंडिया सहित कई एनजीओ को इनकम टैक्स का डर दिखा रही है. संगठन का कहना है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कमजोर करने वाले ये डराने वाले काम अब बंद होने चाहिए.

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