भोपाल
कांग्रेस पार्टी बुधनी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ खास रणनीति बना रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी शिवराज के खिलाफ किसी बड़े नेता को उम्मीदवार बनाएगी। उम्मीदवार ऐसा होगा जो शिवराज को एक्सपोज कर सके। इस बयान के बाद शिवराज के समर्थकों में हलचल मची हुई है। हालांकि, सीहोर जिले में स्थित बुधनी विधानसभा मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र है और वहां उन्हें चुनौती देना आसान नहीं है। वहीं, एक सच्चाई यह भी है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद बुधनी से विधायक बनने में भी शिवराज को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
शिवराज सिंह चौहान नवंबर, 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब वे लोकसभा के सदस्य थे। मुख्यमंत्री बनने के छह महीने के भीतर उन्हें विधायक चुना जाना अनिवार्य था। सांसद बनने से पहले वे बुधनी से विधायक रह चुके थे। वे फिर बुधनी से ही चुनाव लड़ना चाहते थे। उस समय राजेंद्र सिंह बुधनी से विधायक थे।
बीजेपी ने राजेंद्र सिंह को विधायक पद से इस्तीफा देने को कहा। वे इस्तीफा देने को राजी तो हो गए, लेकिन जब इसका मौका आया तो उनकी तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई। उन्हें भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती किया गया। इधर, चुनाव की तारीख नजदीक आ रही थी और शिवराज की धड़कनें बढ़ रही थीं। राजेंद्र सिंह आईसीयू में थे। शिवराज के कहने पर भोपाल के एक प्रसिद्ध डॉक्टर को उनके इलाज के लिए लगाया गया। हालांकि, राजेंद्र सिंह की बीमारी शारीरिक से ज्यादा राजनीतिक थी। अंततः, अस्पताल में ही शिवराज के साथ उनकी डील हुई। यह तय हुआ कि राजेंद्र सिंह और उनके भाई को निगम-मंडल में एडजस्ट किया जाएगा। तब जाकर राजेंद्र सिंह का तय समयसीमा में इस्तीफा हो पाया।
शिवराज की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि शिवराज प्रशासन के माध्यम से वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उस समय एसके मिश्रा सीहोर के कलेक्टर और आईपी कुलश्रेष्ठ एसपी थे। आयोग ने दोनों को पद से हटा दिया। कांग्रेस की शिकायत पर चुनाव आयोग ने बुधनी में मतदान की तारीख करीब दल दिन आगे बढ़ा दी।
शिवराज के रास्ते में मुश्किलें खड़ी कर रही कांग्रेस खुद भी चुनौतियों से जूझ रही थी। शिवराज ने बुधनी से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो ुनके खिलाफ कांग्रेस का उम्मीदवार कौन हो, इसको लेकर जूतम-पैजार वाली हालत पैदा हो गई। पार्टी का एक धड़ा दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाना चाहता था। दिग्विजय 2005 के चुनाव में राघोगढ़ में शिवराज को हरा चुके थे। वहीं, पार्टी का दूसरा गुट किसी स्थानीय नेता को टिकट देने के पक्ष में था। हालत ऐसी हो गई कि यह मामला पार्टी आलाकमान तक पहुंच गया। अंत में दिग्विजय समर्थक स्थानीय नेता राजकुमार पटेल को कांग्रेस का टिकट मिला।
कांग्रेस की तरकीबों से परेशान शिवराज की मुश्किलें बढ़ाने में उमा भारती ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव से ठीक पहले उन्होंने राजकुमार पटेल से बांद्राभान के हैलीपैड पर गोपनीय मुलाकात की। मीटिंग में उन्होंने पटेल से यह डील की कि वे अपने वोट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी गुलजार सिंह मरकाम को ट्रांसफर कर दें। उमा ने इस चुनाव में मरकाम को समर्थन दिया था।
कांग्रेस और उमा भारती की कोशिशों का बुधनी उपचुनाव के नतीजों पर खास असर नहीं पड़ा। मरकाम को करीब आठ हजार वोट जरूर मिले, लेकिन शिवराज आसानी से जीत गए। बुधनी की जनता यह समझ गई थी कि वह विधायक नहीं, मुख्यमंत्री चुन रही है।