नई दिल्ली
चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना की कमान सौंप दी है। इसके साथ ही चुनाव चिन्ह तीर धनुष भी एकनाथ शिंदे को मिल गया है। यह उद्धव ठाकरे के लिए बड़ा झटका है। शिवसेना की स्थापना बाला साहब ठाकरे ने की थी। बालासाहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की थी और 1968 में उन्होंने शिवसेना को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करवाया था।
1971 में शिवसेना ने पहली बार चुनाव लड़ा
1971 के लोकसभा चुनाव में पहली बार शिवसेना ने चुनाव लड़ा था। लेकिन सभी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था। 1971 से लेकर 1984 तक जितने भी चुनाव हुए, शिवसेना को कई प्रकार के चुनाव चिन्ह मिले। 1985 के मुंबई के नगर निकाय चुनाव में शिवसेना को पहली बार तीर धनुष का चुनाव चिन्ह मिला था। उसके बाद से ही चुनाव में शिवसेना का चुनाव चिन्ह तीर धनुष हो गया।
जब शिवसेना का गठन हुआ था, उस समय यह मराठी पार्टी मानी जाती थी और मराठी मानुष के लिए लड़ती थी। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे पार्टी ने अपनी छवि को कट्टर हिन्दूवादी बना लिया। 23 जनवरी 1988 को बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र सामना के मराठी संस्करण की शुरुआत की थी।
शिवसेना बीजेपी का गठबंधन
1989 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी थी और उसके चार सांसद जीते थे। उसके बाद 1990 में विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर 52 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद से ही शिवसेना लगातार महाराष्ट्र में बीजेपी के बड़े भाई के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। इसके बाद 2014 में चुनाव हुए और बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। बीजेपी को अधिक सीटें मिली और शिवसेना के समर्थन से सरकार बनाई। पूरे 5 साल तक सरकार चली।
बीजेपी और शिवसेना दोनों दलों के नेताओं के बीच एक दूसरे पर तीखी बयानबाजी होती रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में एक समय ऐसा लगा कि दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं होगा, लेकिन गठबंधन हुआ और पार्टी को सफलता मिली। इसके बाद 2019 में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी और शिवसेना ने एक साथ चुनाव लड़ा। चुनाव में बीजेपी को 105 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि शिवसेना को महज 56 सीटें प्राप्त हुई।
शिवसेना और बीजेपी में फूट
भले ही बीजेपी शिवसेना गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया था, लेकिन शिवसेना ने कह दिया कि दोनों दलों के सीएम ढाई-ढाई साल के लिए बनेंगे। बीजेपी ने शिवसेना की मांग नहीं मानी और इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस से बातचीत शुरू कर दी। लेकिन इसी बीच एक और नाटकीय मोड़ आया जब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।
इस घटनाक्रम के बाद एनसीपी के विधायक शरद पवार के पास चले गए और एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का गठबंधन हो गया और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री चुने गए। इसके बाद कई बार गठबंधन पर संकट छाया लेकिन सरकार चलती रही। इसके बाद गठबंधन पर जून 2022 में सबसे बड़ा संकट छाया जब महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे ने 15 शिवसेना विधायक और 10 निर्दलीय विधायकों के साथ बगावत कर दी और वह विधायकों के साथ सूरत चले गए और फिर गुवाहाटी रवाना हो गए।
शिंदे की बगावत
इसके बाद शिंदे गुट में विधायकों की संख्या बढ़ती रही और 25 जून को एकनाथ शिंदे ने दावा कर दिया कि शिवसेना के 55 में से 39 विधायक उनके साथ हैं। राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे से बहुमत परीक्षण के लिए कहा लेकिन 29 जून को उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। 30 जून को एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली। शिंदे मुख्यमंत्री बने जबकि देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बने।
सरकार बनाने के बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के नाम और निशान पर अपना दावा ठोक दिया। मामला चुनाव आयोग पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट में भी गया। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में कह दिया कि शिवसेना के नाम और निशान का फैसला चुनाव आयोग करेगा। इसके बाद आज यानी 17 फरवरी को चुनाव आयोग ने शिवसेना का नाम और निशान एकनाथ शिंदे गुट को दे दिया। राजनीति में आने से पहले एकनाथ शिंदे अपना और परिवार का जीवन यापन करने के लिए ऑटो चलाया करते थे।