नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर ने जजों की नियुक्ति से जुड़ा एक मजेदार वाकया भी सुनाया। उनका कहना था कि कुछ अरसा पहले दिल्ली हाईकोर्ट से एक शख्स का नाम जज बनाने के लिए रिकमंड किया गया था। वो शख्स शराब से पूरी तरह से परहेज करता था। लेकिन उसका उप नाम पियक्कड़ (BOOZER) पड़ गया था। इंटेलीजेंस ने उसके शराबी होने की रिपोर्ट कॉलेजियम तक पहुंचाई। कॉलेजियम ने भी उस नियुक्ति पर सवाल उठा दिए। लेकिन बाद में वो शख्स जज बन ही गया। कैंपेन फॉर जूडिशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफोर्म (CJAR) के सेमिनार में वो अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
फील्ड अफसर का नाम सार्वजनिक न हो कभी भी
जस्टिस मदन बी लोकुर ने कॉलेजियम के उस कदम की तारीफ की जिसमें इंटेलीजेंस एजेंसी उन लोगों के बारे में जानकारी जुटाती है जिन लोगों के नाम जज के लिए प्रस्तावित किए गए हैं। लोकुर का कहना था कि हालांकि कानून मंत्री किरन रिजिजू को सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला रास नहीं आया। लेकिन ये जरूरी है। लोगों को जानने का हक है कि जो शख्स जज बनने जा रहा है उसका बैक ग्राउंड क्या रहा है। उनका कहना था कि एजेंसी के फील्ड अफसर का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। अलबत्ता जो जानकारी उसने जुटाई वो सार्वजनिक मंच पर होनी बेहद जरूरी है।
उनका मानना है कि जजों की नियुक्ति के मामले में केंद्र को जवाबदेह ठहराने की जरूरत है। उनका कहना है कि केंद्र जिस तरह के फाइलों पर बैठ जाता है वो चिंता जनक है। आज की जरूरत है कि केंद्र को भी जवाबदेह ठहराया जाए। तभी स्थिति ठीक हो सकेगी। पूर्व जज का कहना था कि केंद्र के पास तीन को जज बनाने की सिफारिश जाती है तो वो दो के नाम क्लीयर कर देता है जबकि एक को रोक देता है। जो नाम रोका गया उसके पीछे कोई वाजिब तर्क नहीं होता। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए केंद्र को जवाबदेह ठहराना ही होगा। तभी हालात काबू में आ सकेंगे।
जस्टिस लोकुर ने मद्रास हाईकोर्ट के एक वाकये का भी जिक्र किया, जिसमें केंद्र ने बगैर कोई वाजिब कारण बताए कॉलेजियम की सिफारिश को वापस लौटा दिया। उनका कहना था कि कॉलेजियम को सरकार से पूछना चाहिए कि आखिर वो क्यों उनकी सिफारिशों को लौटा रहे हैं। आप लोग न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह हैं। आप लोग जनता के प्रति भी जवाबदेह हैं। जस्टिस लोकुर ने कहा कि कॉलेजियम को चाहिए कि वो पुरानी फाइलों को खोले। 1990 और 2000 के पहले हिस्से में जो सिफारिशें की गई थीं, उन्हें सार्वजनिक किए जाने की जरूरत है। उनका सवाल था कि इन फाइलों को क्यों रोककर रखा गया है ये बात सभी को पता चलनी चाहिए। कॉलेजियम तीखे तेवर नहीं दिखाएगा तो सिफारिशें अटकती ही रहेंगी।