G20 भारत के लिए मौका या मुसीबत? क्या यूक्रेन युद्ध ने मोदी सरकार को रूस और अमेरिका में फंसा दिया

मॉस्को

भारत हाल के वर्षों में ग्लोबल साउथ के रूप में जाने जाने वाले विकासशील देशों की मजबूत आवाज के रूप में खुद को स्थापित कर रहा है। ऐसे में G20 के अध्यक्ष के रूप में भारत के पास इससे बड़ा मंच नहीं हो सकता था, जिस पर प्रदर्शन किया जा सके। G20 में शामिल दुनिया के 19 सबसे धनी देशों और यूरोपीय संघ के पास वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 85 फीसदी और इसकी आबादी का दो-तिहाई हिस्सा है। ऐसे में इन देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भारत की कोशिश एक ऐसा समझौता कराने की है, जो पूरी दुनिया में उसकी प्रतिष्ठा और ज्यादा बढ़ा देगा, लेकिन यह काफी हद तक एक कारक पर निर्भर है और वह है- रूस-यूक्रेन युद्ध।

G20 की संयुक्त विज्ञप्ति पर फंसा पेंच
यही कारण है कि G20 की संयुक्त विज्ञप्ति अब तक जारी नहीं हो सकी है। इस विज्ञप्ति में स्पष्ट रूप से मतभेद दिखाई दिए थे। भारत, चीन और रूस कथित तौर पर आक्रमण की स्पष्ट आलोचना से सहमत नहीं थे। वहीं, अमेरिका समेत पश्चिमी देश इसे लेकर रूस की आलोचना करने और इसे युद्ध का नाम देने पर अड़े हुए हैं। पिछले हफ्ते बैंगलोर (बेंगलुरु) में अपनी बैठक के बाद जी20 के वित्त मंत्री समापन वक्तव्य पर सहमत होने में विफल रहे। मास्को और बीजिंग दोनों ने एक समापन बयान के कुछ हिस्सों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसमें “सबसे मजबूत शब्दों में” रूस की आक्रामकता की निंदा की गई थी।

G20 की अध्यक्षता को काफी गंभीरता से ले रहा भारत
विल्सन सेंटर थिंक-टैंक के उप निदेशक माइकल कुगेलमैन ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि भारत अपने G20 अध्यक्षता को बहुत गंभीरता से ले रहा है। इसलिए यह एक सफल बैठक बनाने की कोशिश करने के लिए सभी पड़ावों को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत कर रहा है। हालांकि यूक्रेन मुद्दा हर चीझ पर हावी रहेगा। दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि कई अर्थव्यवस्थाएं अभी भी महामारी से उबरने के लिए संघर्ष कर रही हैं और युद्ध के कारण बढ़ती कीमतों ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है। उनका कहना है कि भारत को किसी तरह समूह को यूक्रेन से परे देखने के लिए कुशल कूटनीति की आवश्यकता होगी

भारत जारी कर सकता है समझौता बयान
पूर्व भारतीय राजदूत और अब ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जितेंद्र नाथ मिश्रा ने बीबीसी से कहा कि भारत एक समझौता बयान तैयार करने की कोशिश करेगा जो किसी को भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं करता है, लेकिन हर कोई इसके साथ रह सकता है।लेकिन यह आसान नहीं होने वाला है, क्योंकि युद्ध के दोनों ओर के देशों ने पिछले कुछ महीनों में केवल अपने रुख को सख्त किया है। भारत ने रूस की सीधी आलोचना करने से परहेज किया है, जिसके साथ इसके लंबे समय से संबंध हैं, जबकि रूसी तेल के आयात में वृद्धि हुई है। दिल्ली के गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण ने शुरुआत में पश्चिमी शक्तियों को खुश नहीं किया लेकिन एक समझ विकसित हुई है।

यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस को समझाइश दे चुका है भारत
भारत ने भले ही सीधे तौर पर रूस की आलोचना नहीं की हो, लेकिन उसने यूक्रेन पर अपने पिछले बयानों में “संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतर्राष्ट्रीय कानून और राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान” के महत्व के बारे में बात की है। पिछली साल शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को रूस की अप्रत्यक्ष आलोचना के रूप में देखा गया था। राष्ट्रपति पुतिन की उपस्थिति में उज्बेकिस्तान में हुई बैठक में मोदी ने कहा, “आज का युग युद्ध का नहीं है।”

रूस की आलोचना से बचेगा भारत
ऐसे में संभावना है कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर कड़ा बयान जारी कर दे, लेकिन सीधे तौर पर रूस की आलोचना न करे। इसे पश्चिमी देश और रूस दोनों को खुश करने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि, इसे लेकर कितनी सहमति बनेगी, इसे भविष्य में ही देखा जाएगा।

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