हर मामला लव जिहाद का नहीं, कुछ प्यार के भी केस,बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा- जबरदस्ती ना जोड़ें धर्म का एंगल

मुंबई

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने बुधवार को कहा कि हर उस मामले को धार्मिक एंगल नहीं दिया जा सकता, जिसमें पुरुष और महिला अलग-अलग धर्म से हैं, ये प्रेम का मामला भी हो सकता है। कोर्ट एक मामले में सुनवाई कर रहा था, जिसमें एक मुस्लिम महिला और उसके परिवार पर शादी के लिए पुरुष के जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगा था। कोर्ट ने इस मामले में महिला और उसके परिवार को अग्रिम जमानत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि इस मामले को लव जिहाद का एंगल देने की कोशिश की जा रही है।

शिकायतकर्ता का आरोप- जबरन खतना कराया
24 फरवरी को न्यायमूर्ति विभा वी कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति अभय एस वाघवासे की पीठ महिला और उसके परिवार द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। औरंगादाबा की एक विशेष अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा इनकार कर दिया था। इस मामले में शिकायतकर्ता व्यक्ति ने दावा किया कि मार्च 2021 में उसका जबरन खतना किया गया था, जिसके बाद उसने महिला के परिवार के दबाव में इस्लाम कबूल कर लिया। पुरुष ने लव जिहाद का भी आरोप लगाया है। उसका कहना है कि महिला के परिवार ने उससे एक निश्चित राशि देने को कहा और साथ ही उसके साथ जाति के नाम पर दुर्व्यवहार भी किया गया।

हालांकि, एफआईआर का हवाला देते हुए एचसी ने कहा कि पुरुष ने खुद यह स्वीकार किया था कि वह महिला से प्यार करता था। कोर्ट ने कहा, “ऐसा लगता है कि इस मामले को अब लव जिहाद का रंग देने की कोशिश की गई है लेकिन जब आप खुद प्यार की बात स्वीकार करते हो तो, इसकी संभावना कम ही है कि कोई धर्म में परिवर्तन के लिए किसी को फंसाए। प्राथमिकी से पता चलता है कि पुरुष के पास महिला से रिश्ता तोड़ने के कई मौके थे, लेकिन उसने कोई कदम नहीं उठाया।” पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि दोनों अलग-अलग धर्मों से हैं, इसे धार्मिक एंगल के तौर पर नहीं देखा जा सकता है।

कोर्ट ने कहा- पुरुष को इतने मौके मिले, तब क्यों नहीं तोड़ा रिश्ता
अभियोजन पक्ष के अनुसार, ये दोनों साल 2018 से साथ हैं। पुरुष अनुसूचित जाति समुदाय से है, लेकिन उसने महिला को इस बारे में पहले नहीं बताया था। पुरुष द्वारा दायर शिकायत के अनुसार, जब महिला ने उससे शादी करने के लिए इस्लाम कबूल करने पर जोर दिया, तो उसने परिवार को अपनी जाति बता दी। हालांकि, परिवार ने बेटी को उसे स्वीकार करने के लिए मना लिया। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह दर्शाता है कि पुरुष के उस समय महिला के माता-पिता के साथ अच्छे संबंध थे। पीठ ने कहा, “जब शुरुआती संबंध अच्छे थे और जाति या धर्म उनके लिए बाधा नहीं था, तो बाद में जाति, समुदाय या धर्म के मुद्दे को उठाने का सवाल ही नहीं उठता। ऐसा लगता है कि शायद बाद में रिश्ते में कड़वाहट आ गई।” कोर्ट ने कहा कि पुरुष ने अपहरण, जबरन खतना और इस्लाम में धर्मांतरण के आरोप लगाए हैं, फिर भी उसने महिला के साथ रिश्ता नहीं तोड़ा। कोर्ट ने कहा कि हर बार आरोपी महिला द्वारा उसके खिलाफ अपराध दर्ज कराने के बाद भी उसने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है, जो कि आश्चर्य की बात है।

कोर्ट ने आगे कहा, “हम देख सकते हैं कि प्राथमिकी दर्ज करने में काफी देरी हुई है। जब ज्यादा विलंब होता है, तो यह कहानी को प्रभावित करता है और अपना महत्व खो सकता है। इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि जब रिश्ते का आधार प्रेम संबंध था, तो जाति या धर्म का कोई बंधन नहीं था और इसलिए, अत्याचार अधिनियम के तहत प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया जा सकता है।”

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