तेजी से फैल रहा H3N2 वायरस लेकिन एंटिबायॉटिक नहीं लें, जान लें यह हिदायत

नई दिल्ली

तेज बुखार और लंबे वक्त से खांसी से परेशान हैं तो सतर्क हो जाइए। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने पुष्टि की है कि देश में तेज बुखार और खांसी का मौजूदा प्रकोप इन्फ्लूएंजा ए के एच3एन2 वायरस (H3N2 Virus) के कारण है। आईसीएमआर के अनुसार, H3N2 अन्य वायरस की तुलना में ज्यादा प्रभावी है। इससे पीड़ित लोग तेजी से अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। ICMR देश भर में अपने वायरस रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरीज (VRDLs) के नेटवर्क के जरिए वायरस से होने वाली बीमारियों पर निरंतर नजर बनाए रखता है।

आईसीएमआर में महामारी विज्ञान की प्रमुख डॉ. निवेदिता गुप्ता ने हमाारे सहयोगी संस्थान टीओआई को बताया कि बीते साल 15 दिसंबर से अब 30 वीआरडीएलएस के डेटा ने इन्फ्लूएंजा ए एच3एन2 के मामलों की संख्या में बढ़ोतरी का सुझाव दिया है। डॉ गुप्ता ने कहा कि मार्च के आखिर या अप्रैल के पहले हफ्ते से वायरस का असर कम होने के आसार हैं, क्योंकि तापमान बढ़ना शुरू हो जाता है। एक्सपर्ट के अनुसार, वायरस से पीड़ित पेशंट्स को एंटिबायटिक के ज्यादा इस्तेमाल से बचना चाहिए और डॉक्टर के संपर्क में रहना बेहद जरूरी है।

क्या है लक्षण
ICMR के मुताबिक, अस्पताल में भर्ती H3N2 वाले मरीजों में 92% मरीजों में बुखार, 86% को खांसी, 27% को सांस फूलना, 16% को घरघराहट की समस्या थी। इसके अतिरिक्त, ICMR निगरानी में पाया गया कि ऐसे 16% रोगियों को निमोनिया था और 6% को दौरे पड़ते थे। आईसीएमआर के अनुसार,’H3N2 वायरस से पीड़ित गंभीर पेशंट्स में से लगभग 10% रोगियों को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और 7% को ICU देखभाल की आवश्यकता होती है।’

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुड़गांव में इंटरनल मेडिसिन के निदेशक डॉ. सतीश कौल ने कहा कि एच3एन2 अन्य इन्फ्लूएंजा वायरस की तुलना में अधिक गंभीर लक्षण वाला है। हालांकि यह एक नया वायरस नहीं है। यह दशकों से मौजदू है। उन्होंने कहा, यह वायरस 1968 में हांगकांग में बड़े पैमाने पर महामारी का कारण बना था। उन्होंने समझाया कि इस वायरस से पीड़ित मरीज को हमेशा ठंड लगने के साथ तेज बुखार के साथ शुरू होता है और लगातार खांसी होती है, जो कई दिनों तक रहती है। मैक्स साकेत में कार्यरत डॉक्टर रोमेल टिक्कू ने कहा कि पिछले दो महीनों से उनके पास बुखार और खांसी के मरीजों की बाढ़ सी आ गई है। कई रोगियों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। उन्होंने बुजुर्ग लोगों की संख्या काफी ज्यादा है।

दुनिया में हर साल 30 से 50 लाख लोग होते हैं पीड़ित
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर हर साल मौसमी इन्फ्लूएंजा के कारण 30 से 50 लाख मामले सामने आते हैं, जिनमें से 2.9 लाख से 6.5 लाख लोगों की मौत सांस की बीमारी के कारण होती है। संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य निकाय का कहना है कि बीमारी को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका टीकाकरण है। ‘टीकाकरण और एंटीवायरल उपचार के अलावा हाथों को अच्छी तरह धोना और खांसते वक्त मुंह को हाथ या रुमाल से ढंकना शामिल है। यह बीमारी तेजी से फैलती है, ऐसे में इस वायरस से पीड़ित मरीज से सोशल डिस्टेंसिग बनाना जरूरी है।

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