मराठा आरक्षण, किसान और पुरानी पेंशन… एक साथ बढ़ा रहे शिंदे की टेंशन

नई दिल्ली ,

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे का तख्तापलट कर बीजेपी की बैसाखी के सहारे सत्ता की कमान संभालने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की राजनीतिक चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. सुप्रीम कोर्ट से शिंदे सरकार को फिलहाल राहत की उम्मीद नजर आ रही है, लेकिन किसान, प्याज और पेंशन की मांग ने शिंदे-बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. ऐसे में देखना है कि एकनाथ शिंदे कैसे इस त्रिकोणी संकट से बाहर निकलते हैं?

किसान जिस तरह से प्याज की कीमतों, कर्ज माफी सहित अन्य मुद्दों को लेकर सड़क पर उतर गए हैं तो सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन के बहाल की मांग पर अड़े हैं. मराठा आरक्षण का पेंच पहले से फंसा हुआ है, जिसे सदन में कांग्रेस ने उठाकर एकनाथ शिंद की चिंता बढ़ा दी है. बजट सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने किसान, प्याज और पेंशन जैसे मुद्दों पर घेर रहा है.

किसान क्यों नाराज
महाराष्ट्र में किसान पहले से ही नाराज चल रहे थे, लेकिन बेमौसम हुई बरसात के चलते घाटे में गए प्याज उत्पादक किसान भी आक्रामक हो गए हैं. हजारों की संख्या में किसान प्याज खरीद के मुद्दे, कर्जमाफी जैसी 14 मांगों को लेकर नासिक से मुंबई तक पैदल मार्च कर बार्डर पर पहुंचे. किसानों की प्रमुख मांगों में प्याज की खेती करने वाले किसानों को तत्काल 600 रुपये प्रति क्विंटल की वित्तीय राहत देना, 12 घंटे तक निर्बाध बिजली आपूर्ति और कृषि ऋण माफी की मांग थी. किसानों के साथ सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने मुलाकात की और उनकी मांगो को पूरा करने का आश्ववासन जरूर दे दिया है, लेकिन विपक्ष इस पर सरकार पर दबाव बनाने में जुटा है. एनसीपी के नेता प्याज की खरीदारी के लिए सड़क से सदन तक प्रेशर बनाए हुए हैं.

पेंशन बनी टेंशन
महाराष्ट्र में पुरानी पेंशन योजना को बहाल किए जाने की मांग को लेकर सरकारी कर्मचारी प्रेशर बनाए हुए हैं. कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल तक करने के चेतावनी दे रखी है. इस त्रिकोणीय मुद्दों में घिरे एकनाथ शिंदे अब क्या रास्ता निकालते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा. स्नातक और शिक्षक एमएलसी चुनावों में पुरानी पेंशन योजना का मुद्दा छाया हुआ था. माना जाता है कि चुनाव में बीजेपी को इसके चलते हार का सामना करना पड़ा था. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बीच का रास्ता निकालने का वादा कर रहे हैं, लेकिन कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना पर ठोस आश्वासन चाहते हैं, इसीलिए शिंदे सरकार की चिंता बढ़ गई है.

किसान कितने अहम
महाराष्ट्र की सियासत में किसान महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. एनसीपी और कांग्रेस की राजनीति किसानों और ग्रामीण इलाके की इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. एनसीपी की सियासत ग्रामीण इलाकों पर टिकी है, जिसके चलते वो किसानों के समर्थन में खुलकर खड़ी रहती है. प्याज किसानों के मुद्दे पर एनसीपी नेता छगन भुजबल ने स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा की मांग की उठाई थी, तो प्याज के मुद्दे पर भी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजीत पवार और सीएम एकनाथ शिंदे आमने-सामने आ गए थे.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार किसान राजनीति से निकले हैं, जिसके चलते उनका सियासी आधार भी ग्रामीण इलाकों में ही है. 2009 तक, ग्रामीण महाराष्ट्र का अधिकतर हिस्सा, कांग्रेस और एनसीपी के प्रभाव में था. साल 1999 से 2014 के बीच अपने 15 साल के कार्यकाल के आखिर तक आते-आते कांग्रेस और एनसीपी की पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी थी. ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की पकड़ 2014 के बाद मजबूत हुई है, लेकिन किसानों को प्याज में हो रहे नुकसान ने उन्हें सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया है. 2024 के चुनाव से पहले किसानों की नाराजगी शिंदे-बीजेपी के लिए टेंशन पैदा कर सकती है, इसीलिए सरकार ने किसानों से बात कर उनकी समस्या का समाधान निकालने का आश्वासन दिया है.

सरकारी कर्मचारी
महाराष्ट्र में सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक दल का चुनाव में खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. हिमाचल में बीजेपी की हार के पीछे पुरानी पेंशन का एक बड़ा मुद्दा रहा है. यूपी चुनाव में भी सरकारी कर्मचारियों ने बीजेपी के माथे पर पसीना ला दिया था. कांग्रेस शासित राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को अमलीजामा पहनाए जाने लगा है. ऐसे में दूसरे सूबे में भी सरकारी कर्मचारियों ने सड़कों पर उतरकर पुरानी पेंशन की मांग तेज कर दी है. महाराष्ट्र में तकरीबन 18 लाख सरकारी कर्मचारी हैं. सरकार बातचीत कर मामले को हल का आश्वासन दे रही है, लेकिन कोई ठोस भरोसा अभी तक नहीं दे सकी है.

मराठा आरक्षण
महाराष्ट्र में मराठा समाज के लोग लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई भी सरकार अभी तक उसे जमीन पर नहीं उतार सकी है. विधानमंडल के बजट सत्र में कांग्रेस के एमएलसी भाई जगताप ने मराठा आरक्षण का मुद्दा उठाकर शिंदे सरकार को घेरा. इस पर सीएम शिंदे ने यह बात जरूर कही कि सरकार मराठा समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए पूरी तरह से कटिबद्ध है. सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई पूरी लड़ी जाएगी. बीजेपी-शिंदे सरकार भले ही आश्वासन दे दिया हो, लेकिन विपक्ष एक तरह से इसे मुद्दा बनाने में जुटा है. ऐसे में मराठा समुदाय फिर से अपने आरक्षण की मांग पर सड़क पर उतर गया तो बीजेपी के लिए 2024 लोकसभा चुनाव से पहले चिंता बढ़ जाएगी. शिवसेना से लेकर कांग्रेस और एनसीपी तक मराठा समुदाय के लिए आरक्षण के समर्थन में है.

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