राहुल गांधी ही नहीं, इंदिरा और सोनिया भी खो चुकी हैं संसद की सदस्यता

नई दिल्ली,

केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद रहे राहुल गांधी की मुश्किलें अभी कम नहीं हुई हैं. मोदी सरनेम मामले में विवादित टिप्पणी को लेकर एक दिन पहले सूरत सेशन कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया था. राहुल गांधी को 2 साल की सजा हुई और इसके बाद जमानत दे गई, लेकिन इसके बाद से ही उनकी लोकसभा की सदस्यता खतरे में पड़ गई थी. आखिरकार शुक्रवार को वह अपनी सदस्यता से हाथ थो बैठे. इस तरह आम चुनाव के सालभर पहले वायनाड बिना सांसद का हो गया है.

अगला सवाल है कि क्या वायनाड में सालभर के लिए सांसदी के लिए उपचुनाव होगा? इसका जवाब तो आगे की प्रक्रियाओं से मिलेगा, लेकिन इस वाकये ने याद दिला दिया है कि गांधी परिवार के साथ यह पहला मामला नहीं है. बल्कि राहुल की मां (सोनिया गांधी) और दादी (पूर्व पीएम इंदिरा गांधी) भी एक एक बार अपनी लोकसभा सदस्यता से हाथ धो बैठे हैं.

दादी इंदिरा की भी जा चुकी है सदस्यता
आज भले ही लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद भी राहुल गांधी के पक्ष में कोई माहौल बनता नहीं दिख रहा है, लेकिन एक वक्त था, जब उनकी दादी पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता का रद्द होना ही उनके लिए संजीवनी बन गया था. किस्सा वही आपातकाल से जुड़ा है. हुआ यूं कि आपातकाल के बुरे दौर के बाद जब चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी को करारी हार मिली. इसके बाद 1977-78 का दौर बेहद नाटकीय रहा. 1978 को इंदिरा गांधी कर्नाटक के चिकमंगलूर से उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं.

मोरारजी देसाई ने पेश किया था प्रस्ताव
यहां विरोधी पहले से खेमा तैयार किए बैठे थे. लोकसभा में उनके पहुंचने के 18 नवंबर को उनके खिलाफ अपने कार्यकाल में सरकारी अफसरों का अपमान करने और पद के दुरुपयोग के मामले में खुद तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव पास हो गया. 7 दिनों की लंबी बहस के बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार समिति बनी, जिसे इंदिरा के खिलाफ पद के दुरुपयोग मामले सहित कई आरोपों पर जांच करके एक महीने में रिपोर्ट देनी थी.

विशेषाधिकार समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि इंदिरा के खिलाफ लगे आरोप सही हैं, उन्होंने विशेषाधिकारों का हनन किया है और सदन की अवमानना भी की, लिहाजा उन्हें संसद से निष्कासित किया जाता है और गिरफ्तार करके तिहाड़ भेजा जाता है. हालांकि जनता सरकार में खुद ही सामंजस्य नहीं रहा और 3 साल में ही सरकार गिर गई. इसके बाद इंदिरा गांधी 1980 में भारी समर्थन से दोबारा चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनीं.

लाभ के पद का मामला, जिसमें गई थी सोनिया की सदस्यता
अब चलते हैं, साल 2006 में. जब संसद में ‘लाभ के पद’ का मामला जोर-शोर से उठा है. देश में यूपीए का शासन है और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस आरोप से घिरी हुई हैं. दरअसल सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं. इसके साथ ही वह यूपीए सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं, जिसे ‘लाभ का पद’ करार दिया गया था. इसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ा था.

हालांकि इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी दोनों ने ही जो भी राजनीतिक दांव-पेच सहे और उठा पटक देखे, उसके बाद उन्होंने दोबारा मजबूती से वापसी की है. गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं राहुल गांधी, जिनकी सदस्यता गई है. इससे पहले वह अमेठी की सत्ता गंवा चुके हैं और अब वायनाड भी हाथ से निकल चुका है. देखें आगे क्या होता है.

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