शाशा और उदय की मौत कैसे हुई? सुलझने के बजाय उलझती जा रही कूनो में चीतों की डेथ मिस्‍ट्री

भोपाल

एक्सपर्ट्स की मानें तो ये पहले से आशंका जताई जा रही थी कि चीता प्रोजेक्ट में कुछ चीतों की जान जा सकती है। ऐसे में दो मौतों को लेकर अधिकारी जांच कर रहे हैं। इस दौरान में चार चीतों का जन्म भी कूनो में हुआ है। जिससे चीता प्रोजेक्ट के अफसरों ने थोड़ी राहत की सांस ली होगी। सवाल ये भी है कि दो चीतों की जान गई कैसे?

दो चीतों की मौत से गहराया सस्पेंस
अगर मादा चीता ‘साशा’ की मौत किडनी की बीमारी से हुई, तो ये सवाल अहम है कि आखिर वो संक्रमित कब हुई? इसका पता अधिकारियों को पहले क्यों नहीं चला? क्या कुनो में 22 चीतों के लिए पर्याप्त जगह है? उदय की मौत का राज क्या है? क्या अन्य चीतों पर भी खतरा है? उन्हें बाड़े में लंबे समय तक रखे जाने की वजह से चीते तनाव में थे? इस प्रोजेक्ट की सफलता के लिए इन सवालों के जवाब अहम हैं।

क्या साशा कूनो के लिए फिट थी?
साशा और उदय की मौत में दोनों की केस स्टडी अलग-अलग हैं। एक बाड़े में थी तो दूसरे को जंगल में पकड़ा गया। प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारी इन दोनों चीतों को लेकर अलग-अलग मुद्दों पर बात करते हैं। हालांकि, सीनियर्स के डर से साफ तौर पर कुछ भी कहने से बचते दिख रहे। सूत्रों का कहना है कि साशा को जाहिर तौर पर चीता संरक्षण कोष (CCF) के जरिए बैकयार्ड से कूनो शिफ्ट किया गया था। वह उन तीन मादा चीता में से एक थी, जिन्हें विशेषज्ञों ने शुरू में ही इस परियोजना के लिए अनुपयुक्त बताया था। साशा के अलावा दो चीते सियाया और सवाना भी थे। विशेषज्ञों को पता था कि वे मध्य प्रदेश के जंगल में अपना शिकार करने के लिए एक्टिव नहीं हो सकते। हालांकि, अधिकारी इससे इनकार कर रहे हैं।

एक्सपर्ट ने उठाए थे इन तीन चीतों के भारत भेजने पर सवाल
तीन नामीबियाई चीतों को लेकर ऐसा दावा डॉ. यादवेंद्र देव विक्रमसिंह झाला ने किया था। वो भारतीय वन्यजीव संस्थान के डीन और जाने-माने विशेषज्ञों में से एक हैं। उन्होंने पाया कि नामीबिया से आए आठ चीतों में से तीन ऐसे थे जो जंगली शिकार को पकड़ने में सक्षम नहीं थे। हालांकि, उनकी बात पर गौर नहीं किया गया। आठ चीतों के बैच को 17 सितंबर, 2022 को भारत के लिए रवाना किया गया था। डॉ. यादवेंद्र देव विक्रमसिंह झाला, लगातार इन तीन चीतों को बदलने की मांग कर रहे थे। हालांकि, उन्हें प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया गया।

साशा की मौत पर क्या बोले एक्सपर्ट
उधर, साशा की मौत 27 मार्च, 2023 को हुई थी। एक दिन बाद, CCF ने स्पष्ट किया कि भारत भेजे गए सभी चीतों का व्यापक स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था। लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया था कि साशा भारत में ट्रांसलोकेट होने से पहले बीमार थीं। CCF ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि साशा की किडनी प्रभावित थी, लेकिन कोई असामान्यता नहीं थी। एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत आने के बाद साशा की स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गईं। किडनी फेल्योर और गैस्ट्राइटिस की समस्या हुई। जिसके बाद साशा की मौत हो घई। हालांकि, एक मादा चीता ने पहले ही चार शावकों को जन्म दिया है।

‘उदय’ की मौत को लेकर कई सवाल
प्रोजेक्ट चीता टीम में साशा की मौत को लेकर रहस्य बना हुआ था। इसी बीच दक्षिण अफ्रीका से आए ‘उदय’ की रहस्यमयी मौत ने नई चर्चा छेड़ दी। उसकी महज 24 घंटे पहले की गई स्वास्थ्य जांच में ‘उदय’ चीते को ठीक बताया गया था। फिर 24 अप्रैल को उसे सिर झुकाए इधर-उधर डगमगाते देखा गया। फिर कुछ ही घंटे में उसकी मौत हो गई। उदय चीते को जंगल से पकड़ा गया था। उसे कूनो में लाने से पहले लगभग 10 महीने कैद में रखा गया। कई विशेषज्ञों का मानना है कि महीनों तक कैद में रहने से चीतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

जंगल की जगह बाड़े में रखने से बिगड़े हालात?
उदय की मौत के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया, जिसमें वह दक्षिण अफ्रीका में एक हेलिकॉप्टर का पीछा किए जाने के दौरान तेज गति से दौड़ता दिख रहा। एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जंगली चीतों को सेफ्टी पर सवाल उठने लगते हैं। अगर उन्हें जंगल या प्राकृतिक जगह से हटाकर 10 महीने तक किसी पिंजरे में कैद कर दें। एक्सपर्ट के मुताबिक, इन चीतों को जंगल में ही रखा जाना चाहिए, जहां वो शुरू से रहे हैं। उन्हें पिंजरों में नहीं रखा जाना चाहि। जिन 12 चीतों को भारत लाया गया उन्हें दो महीने संगरोध में रखा गया। उन्हें केवल एक महीने की जरुरत थी।

क्या तनाव के चलते गई ‘उदय’ की जान?
कुछ लोगों का कहना है कि चीतों के खान-पान की भी एक समस्या रही है। एक विशेषज्ञ ने कहा कि चीतों का प्राकृतिक आहार चीतल, सांभर, नीलगाय, स्प्रिंगबक, इम्पाला आदि हैं। उन्हें भैंस और बकरी का मांस खिलाया जा रहा था। दक्षिण अफ्रीकी चीतों को 15 जुलाई, 2022 बाड़ों में रखा गया हालांकि ट्रांसलोकेशन की अनुमति जनवरी 2023 के अंत में मिली। दक्षिण अफ्रीकी सरकार को इसके कारणों को जानने में लगभग 10 महीने लग गए।

एक्सपर्ट ने चीतों की मौत पर कही दो टूक बात
प्रोफेसर एड्रियन एसडब्ल्यू टोरडिफ, पशु चिकित्सक और जाने-माने वन्यजीव विशेषज्ञ ने कहा कि मैं सच्चाई पर टिके रहना पसंद करता हूं। बाकी सभी चीते शिकार में माहिर हैं। वे सही खाना खा रहे और उन्हें अन्य शिकारियों के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। टोरडिफ ने कहा कि कूनो के बाड़े में एक मादा चीता ने शावकों को जन्म दिया। अगर वह तनाव में होती, तो वो इन शावकों को मार सकती थी। उसने ऐसा नहीं किया। उसका व्यवहार सामान्य है और इससे लगता है कि वह तनावग्रस्त नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि जंगली चीतों को लंबे समय तक कैद में रखना ठीक नहीं है। लेकिन कूनो में मरने वाले चीतों में से किसी की भी मौत का तनाव से कोई लेना-देना नहीं है।

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