अगर कोई मेनहोल या सीवर में उतरा तो… हाई कोर्ट बोला, नगरपालिका के चीफ जिम्मेदार होंगे

अहमदाबाद

गुजरात हाई कोर्ट ने सीवरेज में उतरकर सफाई करवाने पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते राज्य सरकार से पूछा है कि पाबंदी के बाद भी यह कुप्रथा कैसे जारी है? गुजरात हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ए जे देसाई व न्यायाधीश बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने कहा कि सफाई की इस कुप्रथा को शीघ्र बंद किया जाए। अब कहीं भी श्रमिकों से सीवरेज में उतरकर सफाई कराने की बात सामने आई तो इसके लिए सीधे तौर पर नगरपालिका के चीफ जिम्मेदार होंगे। सरकार के रेजोल्यूशन के अनुसार मैनुअल स्केवेंजिंग 2014 से बंद है।

नहीं चल सकती लापरवाही
खंडपीठ ने कहा कि खंडपीठ ने कहा कि इस कुप्रथा पर पूरी तरह से पाबंदी है। इसलिए सरकार को इस पर अमल करना होगा। हाई कोर्ट ने सीवेज सफाई के दौरान जिन श्रमिकों की मौत हुई। उनके परिजनों को मुआवजा देने का आदेश किया। इसके बाद हाई कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में अगली सुनवाई 19 जून को करेगा। हाई कोर्ट ने यह सख्त एक एनजीओ की तरफ दाखिल की गई याचिका पर दिखाया। एनजीओ ने अपनी याचिका में उल्लेख किया था कि राज्य में पाबंदी के बाद भी सीवरेज में उतरकर सफाई करने (मैनुअल स्केवेंजिंग) करवाई जा रही है। याचिका में हाल में हुई सफाईकर्मियों की मौत का भी जिक्र किया गया था। इस पर हाईकोर्ट ने दो टूक कहा कि ऐसी लापरवाही नहीं चल सकती है।

ठेकेदारों पर फोड़ा ठीकरा
वकील सुब्रमणियम अययर की ओर से जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने जब नाराजगी व्यक्त की तो सरकार की तरफ से कहा गया कि राज्य सरकार के अधीन आने वाले निकाय और पालिका प्रशासन गटर की सफाई के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग करते हैं और उसी से सफाई की जाती है, लेकिन कई बार ठेकेदार श्रमिकों से काम करवाते हैं। इस जवाब से हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई। सरकार की तरफ से हाई कोर्ट को बताया गया कि 152 मृतकों में से 137 के परिजनों को मुआवजा दिया गया है। तो वहीं सरकार की दलीलों पर वकील सुब्रमणियम अययर ने कहा कि सीवरेज में उतारकर सफाई कराने पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद श्रमिकों को उतारा जाता है और कई की मौत हो जाती है।

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