अल्पसंख्यकों को लेकर अमेरिकी आयोग के निशाने पर भारत, ब्लैकलिस्ट करने की मांग

नई दिल्ली,

भारत पिछले कई सालों से अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के निशाने पर है. आयोग ने लगातार चौथे साल भारत को धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर ब्लैकलिस्ट में जोड़ने की सिफारिश की है. आयोग ने कहा है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के लिए भारत में स्थिति बिगड़ती जा रही है. सोमवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (USCIRF) ने फिर से अमेरिकी विदेश मंत्रालय से भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ (Country of Particular Concern, CPC) के रूप में नामित करने का आह्वान किया.

अमेरिकी आयोग साल 2020 से ही मांग कर रहा है कि भारत को विशेष चिंता वाले देश के रूप में नामित किया जाए. किसी देश पर यह लेबल लगने का अर्थ है कि सरकार धार्मिक स्वतंत्रता का व्यवस्थित रूप से गंभीर उल्लंघन कर रही है. अगर अमेरिका का विदेश मंत्रालय किसी देश पर यह लेबल लगाता है तो उस पर अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंध भी लगते हैं. यह लेबल उन देशों पर लगता है जो दुनिया में धार्मिक स्वतंत्रता के सबसे खराब उल्लंघनकर्ता माने जाते हैं.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘भारत सरकार ने 2022 में केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया और लागू किया. इनमें धर्म परिवर्तन, अंतरधार्मिक संबंध, हिजाब पहनने और गोहत्या को निशाना बनाने वाले कानून शामिल हैं जो मुसलमान, ईसाई, सिख, दलित और आदिवासी समुदाय को गलत तरीके से प्रभावित करते हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 1.4 अरब की आबादी में लगभग 14 प्रतिशत मुस्लिम हैं, लगभग 2 प्रतिशत ईसाई हैं, और 1.7 प्रतिशत सिख हैं. देश की करीब 80 फीसदी आबादी हिंदू है. रिपोर्ट में आगे दावा किया गया है कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने आलोचनात्मक आवाजों, विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी वकालत करने वालों को दबाना जारी रखा है.

अमेरिका में भारतीय मुसलमानों के लिए काम करने वाले संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) ने आयोग की सिफारिशों का स्वागत किया है. काउंसिल ने एक ट्वीट में कहा है, ‘IAMC धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के लगातार चौथे वर्ष मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन के लिए भारत को विशेष चिंता का देश (CPC) के रूप में नामित करने के फैसले का स्वागत करता है.’

अपने धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की सिफारिशों को अपनाएगा अमेरिका?
अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग सरकार को केवल अपनी सिफारिशें दे सकता है. उसके पास नीति-निर्धारण का किसी तरह का अधिकार नहीं है. पिछले चार सालों से आयोग इस तरह की सिफारिशें कर रहा है लेकिन अमेरिकी विदेश विभाग ने उसकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया है. अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए भारत से लगातार अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है. ऐसे में आयोग की सिफारिश को लागू करना भारत को नाराज करने जैसा होगा.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि बाइडेन प्रशासन ने पिछली कई सिफारिशों के बाद भी भारत पर विशेष चिंता वाले देश का लेबल नहीं लगाया है.रिपोर्ट में लिखा गया, ‘अमेरिका और भारत ने व्यापार और तकनीक में मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना जारी रखा है. 2022 में व्यापार 120 अरब डॉलर तक पहुंच गया और अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया. बाइडेन और मोदी G20 और G7 शिखर सम्मेलन और क्वाड लीडर्स शिखर सम्मेलन सहित कई अवसरों पर मिलते भी रहे हैं.’

भारत ने नहीं दी है कोई प्रतिक्रिया
भारत ने फिलहाल आयोग की रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. पिछले साल जब आयोग ने भारत को लेकर यही सिफारिश की थी तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अमेरिकी अधिकारियों पर गलत जानकारी और पक्षपाती टिप्पणी का आरोप लगाया.बागची ने कहा था, ‘स्वाभाविक रूप से बहुलवादी समाज के रूप में, भारत धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को महत्व देता है.’

 

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