भारत के प्रति अमेरिका के नरम रुख की वजह बना चीन, US अधिकारियों का बड़ा दावा

नई दिल्ली,

अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने भारत में मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर चुप रहने का फैसला किया है. वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका ने यह फैसला चीन के साथ प्रतिद्वंद्विता में भारत को अपने साथ रखने के लिए किया है. अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका चीन के खिलाफ भारत को अपने पक्ष में करने के प्रयासों को तेज कर रहा है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने कहा कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों और मीडिया पर दबाव परेशान करने वाला है. पहचान न बताने की शर्त पर अधिकारियों ने कहा कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की सरकार विपक्षी सांसदों को निशाना बना रही है लेकिन अमेरिकी प्रशासन उसकी आलोचना करने से बच रही है क्योंकि चीन को लेकर उसकी चिंता बढ़ रही है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत अमेरिका के भू-राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों के लिए तेजी से महत्वपूर्ण बनता जा रहा है.

यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद भारत का रिकॉर्ड स्तर पर रूसी तेल खरीदना भी अमेरिकी सांसदों को खटकता रहा है और उन्होंने इसे लेकर आवाज भी उठाई है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि इसे लेकर बाइडेन प्रशासन का मानना है कि वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों को कम रखने के लिए भारत का रूसी तेल खरीदना जरूरी है.

चीन के कारण भारत को मिला फ्री पास
अधिकारियों का कहना है कि शी जिनपिंग की सरकार में चीन की आक्रामकता बढ़ रही है जिसने अमेरिका को भारत के करीब लाने में मदद की है.नई दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के फेलो मनोज जोशी कहते हैं, ‘भारत को चीन के कारण यह मुफ्त पास मिल रहा है. आकार और क्षमता के मामले में भारत ही ऐसा देश है जो चीन को संतुलित कर सकता है.’

प्रधानमंत्री मोदी इसी साल जून में अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर जाने वाले हैं. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि ऐसा संभव है कि इस दौरान राष्ट्रपति बाइडेन मोदी से यूक्रेन पर अपने रुख को बदलने के लिए दबाव डालें. एक अधिकारी ने कहा है कि हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि भारत सार्वजनिक रूप से यूक्रेन में युद्ध के लिए रूस की आलोचना करेगा.

‘मानवाधिकारों को लेकर भारतीय अधिकारियों से नियमित करते हैं बात’
अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी से जब यह पूछा गया कि क्या बाइडेन प्रशासन मानवाधिकार और गिरते लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए मोदी सरकार की आलोचना नहीं करना चाहता, उन्होंने एक बयान में कहा, ‘जैसा कि हम दुनिया भर के दूसरे देशों के साथ करते हैं, हम नियमित रूप से मानवाधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों को लेकर वरिष्ठ स्तर पर भारत सरकार के अधिकारियों के साथ बात करते हैं.’

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में किसी तरह की टिप्पणी से इनकार कर दिया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हमेशा से यह स्पष्ट रखा है कि भारत की विदेश नीति किसी विशेष देश का पक्ष नहीं लेती और भारत गुट-निरपेक्षता की नीति का पालन करता है.जयशंकर ने पिछले महीने डोमिनिकन रिपब्लिक की यात्रा के दौरान कहा था, ‘चाहे वह अमेरिका, यूरोप, रूस या जापान हो, हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि ये सभी संबंध, बिना किसी विशिष्टता की मांग किए आगे बढ़ें.’

एक अधिकारी ने कहा कि भारत चीन को पछाड़कर दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है. 1.4 अरब जनसंख्या वाले भारत को लेकर बाइडेन प्रशासन का मानना है कि भारत के बिना जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों को हल करना असंभव है.

अमेरिकी आयोग की इन सिफारिशों को भी नजरअंदाज कर रहा बाइडेन प्रशासन
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (USCIRF) ने पिछले तीन सालों की तरह ही इस साल भी अमेरिकी विदेश मंत्रालय से यह सिफारिश की है कि भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ के रूप में नामित किया जाए.आयोग ने सोमवार को जारी साल 2022 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि भारत सरकार अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए स्थिति लगातार खराब होती जा रही है.हालांकि, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आयोग की इन सिफारिशों को हर बार की तरह इस बार भी नजरअंदाज कर दिया है.

 

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