– धरना, प्रदर्शन, हड़ताल और प्रबंधन से मुलाकात सब फेल
– हाईकोर्ट में आज भी लंबित है मजदूरों का मामला
भोपाल।
भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) भोपाल सहित औद्योगिक क्षेत्र गोविंदपुरा में भी मजदूर दिवस बहुत ही धूमधाम से मनाया गया। नेता आए भाषण दिए और वापस चले गए लेकिन मजदूरों की समस्याएं ज्यों की त्यों छोड़ गए। बेचारे मजदूरों की बात करें तो क्या करें वे तो अपने नेताओं को संरक्षक बनाकर खुश है लेकिन जब काम नहीं होता तो उन्हें कोसते भी नजर आते। यह हालात है बीएचईएल कारखाने में काम करने वाले मजदूरों का।
पिछले दो दशक से ये मजदूर बीएचईएल कर्मचारियों की तरह समान काम का समान वेतन देने की मांग कर रहे है। इसके अलावा दर्जनों समस्याओं को लेकर अपने नेताओं के माध्यम से प्रबंधन को ज्ञापन भी सौंप चुके है। लेकिन उनकी समस्याओं की कोई सुनवाई नहीं हुई। यहां तक कि इसको लेकर चाहे कांग्रेस हो या भाजपा इनसे जुड़ी यूनियनों में धरना, प्रदर्शन, आंदोलन, हड़ताल कर अपनी ताकत को दिखा चुके। इन यूनियनों की हालात यह है कि कुछ यूनियनें क्षेत्रीय विधायक से जुड़ी है तो कुछ भाजपा की एक पूर्व केंद्रीय मंत्री से।
रही बात कांग्र्रेस से जुड़ी यूनियन की तो उनके आका भी प्रबंधन से नूरा कुश्ती का खेल खेल चुके है लेकिन समस्यांए जस की तस बनी हुई है। मार्च 1999 में स्थायीकरण एवं समान काम का समान वेतन के लिए जबलपुर हाईकोर्ट में मामला लगाया गया था। सन 2004 से समान काम का समान वेतन की लड़ाई चल रही है । वर्तमान मेें मजदूरों का स्थायीकरण एवं समान काम समान वेतन का मामला जबलपुर हाई कोर्ट में पेंडिंग है।
प्रबंधन के साथ हुए समझौते का उड़ रहा है मजाक
मजेदार बात यह है कि वर्ष 2009 में प्रबंधन के साथ समझौता भी हुआ था उसमें ये तय हुआ था कि मजदूरों को हर पांच साल में वेज रिवीजन किया जाएगा वेज रिवीजन तो दूर मजदूरों का वेतन भी ठेकेदार से प्रबंधन समय पर नहीं दिलवा पा रहा है। आज कुछ ठेकेदार इतने ताकतवर हो गए है कि वे मजदूरों का बोनस ही नहीं पीएफ भी हड़पने की कोशिश कर रहे है। क्योंकि कुछ कर्मचारी संगठन ही ठेकेदारी कर रहे हैं।
कोरोना काल से 1600 रूपए की कटौती आज भी जारी
ठेका मजदूरों के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं के समझ में नहीं आ रहा है कि कोरोना काल यानि पिछले दो साल से भेल प्रबंधन मजदूरों के वेतन में 1600 रूपए की कटौती करता आ रहा है। मजदूर बेचारा असहाय है इसके लिए लड़ाई तो जारी है लेकिन उसका हजारों रूपए वेतन अटका हुआ है। दो साल की लड़ाई में नेता मजदूरों के 1600 रूपए माह की कटौती वापस नहीं करवा पा रहे है। साथ ही इस कटौती को बंद भी नहीं करवा पा रहे है। हालांकि भेल प्रबंधन ने यह मामला दिल्ली भेज दिया है।
कर्मचारियों को एक लाख और मजदूरों का वेतन दस हजार
यह कैसी विसंगति है कि भेल के जिन कर्मचारियों को एक लाख रूपए माह वेतन मिलता है उसी जगह पर इसी तरह का काम करने वाले मजदूरों को मात्र 8 से 10 हजार रूपए वे भी सोसायटी वर्करों को जबकि वक्र्स कान्टै्रक्ट के मजदूरों को झुनझुना पकड़ा रहे हैं। ये मजदूर करीब पच्चीस से तीस साल से कारखाने व टाउनशिप में नौकरी कर रहे है। इस वेतन विसंगति को दूर करने के प्रयास 20-25 साल से नहीं हो पाए। नेता अपनी जय-जयकार करवाते रहे और मजदूर आज भी वैसी ही स्थिति में अपना जीवन यापन कर रहा है।
औद्योगिक क्षेत्र के हालात
एक समय गोविंदपुरा और हबीबगंज औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगों में काफी काम था। धीरे-धीरे मंदी के दौर में काम कम होता चला गया। ऐसे में यहां के मजदूरों की हालत बद से बद्तर हो गई। यहां तो मजदूर नेता ही नहीं रहे जो मजदूरों की आवाज उठा सकें। अब हालात इतने बिगड़ गए है कि मजदूरों को समय पर वेतन, ईएसआई और पीएफ का लाभ मिल सकें। शोषण के शिकार मजदूर खुद ही संघर्ष करते रहे लेकिन ऊंची पहुंच वाले के रहते उनकी कोई सुनवाई नहीं हो सकी। कुछ फैक्ट्री संचालक तो वेतन सहित सारी सुविधाएं डकार गए।
भेल में यह हैं ठेका श्रमिक यूनियनें
-भेल कर्मचारी ठेका संयुक्त मोर्चा
-भेल ठेका मजदूर संघ
– मध्य प्रदेश ठेका श्रमिक कांग्रेस इंटक
-बक्र्स कांटेक्ट ठेका श्रमिक, भेल
-भेल ठेका श्रमिक कल्याण संघ