बीएचईएल की सीटू यूनियन को नोटिस जारी, भोपाल यूनिट में राजनीति चरम पर

भोपाल

भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) भोपाल यूनिट की प्रतिनिधि यूनियन सीटू को भेल के मानव संसाधन विभाग ने नोटिस जारी कर दिया है। नोटिस में कहा है कि भेल प्रशासन ने उन्हें पिपलानी क्षेत्र में यूनियन की गतिविधियां चलाने के लिए एक ऑफिस आवंटित किया है। जिसमें बिजली, पानी का खर्च भी प्रबंधन को उठाना पड़ता है। लेकिन गत माह सीटू यूनियन में कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियां देखने को मिली है। इसका फोटो भी प्रबंधन के पास भेजा गया है।

इस तरह की गतिविधियां पाए जाने पर ऑफिस का आवंटन निरस्त किया जा सकता है। इसको लेकर सीटू यूनियन में प्रबंधन को जवाब भी दिया है। बड़ी बात यह है कि जबसे प्रतिनिधि यूनियन के चुनाव हुए है तब से कुछ यूनियनें अपने को बड़ा साबित करने के लिए कर्मचारी विरोधी नीति पर चल पड़ी है। सीटू यूनियन की गतिविधियों को प्रबंधन तक पहुंचाने के लिए एक यूनियन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इस बार श्रमिकों का सबसे बड़ा दिन 01 मई 2023 को कुछ यूनियनों ने मनाने की जरूरत ही नहीं समझी। यही नहीं इस दिन बुलेटिन भी नहीं बांटा गया। इसको लेकर कर्मचारियों में काफी चर्चा व्याप्त है। दूसरी ओर दो यूनियनों के आपसी टकराव के चलते पहले एक कर्मचारी को सस्पेंड कराना बाद में दूसरी यूनियन द्वारा अपनी ताकत दिखाते हुए बहाल कराना जैसी बातें अब सार्वजनिक हो गई है। पहली यूनियन ने सस्पेंड कराया तो कर्मचारी के बहाल होने के बाद दूसरी यूनियन ने उसका तबादला भेल की रानीपेट यूनिट में करवा दिया।

इसी तरह कुछ नेता ऐसे भी है जो प्रतिनिधि यूनियन तो बन गए लेकिन खुद का तबादला भोपाल नहीं करा पाए। इसको लेकर भी कर्मचारी यह कहते नहीं थकते कि जब यूनियन की कमान संभालने वाला नेता खुद का तबादला नहीं करा सकता तो आम कर्मचारी की क्या बखत है। यूनियनों की राजनीति के बीच पिस रहे भेल के कर्मचारी काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जब एक यूनियन नेता ने कर्मचारी का तबादला भोपाल से रानीपेट यूनिट करा दिया तो दूसरी यूनियन के नेता हाईपॉवर लगाकर उसका तबादला रूकवाने मेेें लग गए है।

एक और कर्मचारी नेता निशाने पर
यूनियनों की राजनीति चरम पर है। एबू यूनियन के एक नेता सतेन्द्र्र कुमार भी निशाने पर बताए जा रहे है। ये भी एक यूनियन की नजर में काफी खटक रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि सतेन्द्र के खिलाफ कोई कार्रवाई न हुई हो। लेकिन यह भी अपनी ताकत के दम पर बच निकले। बस यही बात इनकी पुरानी यूनियन को रास नहीं आ रही है।

भेल कारखाने में सफेद पास का खेल
भेल प्रबंधन को वैसे भी यूनियनों के बीच नूरा-कुश्ती का खेल खेलता रहा है। सूत्र बताते है कि इस सफेद पास के खेल में यूनियनों के बीच काफी टकराव हुआ। हर यूनियन अपने ओहदे को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा सफेद पास बनवाने के लिए प्रबंधन से भिड़ गए। क्रमश: प्रबंधन ने इनकी लड़ाई को देखते हुए क्रमश: 18, 15, 12 और 10 पास देकर संतुष्ट कर दिया। ये पास प्रबंधन ने यूनियनों को इसलिए दिए थे कि वह दिन में यूनियनों के काम कर सकें। यानि कारखाने से बाहर आने-जाने का पास दे दिया।

भेल कारखाने का आउट पास क्या है
प्रबंधन ने कर्मचारी नेताओं को खुश करने में पीछे दिखाई नहीं दे रही है। जिस नेता के पास सफेद पास नहीं है वह अपने एचओडी से निवेदन कर कारखाने से बाहर जा सकता है। पूरी सुविधा मिलने के कारण कुछ संगठन के नेता अपनी निजी काम निपटाकर वापस कारखाने में हाजिरी भर देते है। इसे आउट पास सिस्टम कहते है।

कारखाने के टीजीएम विभाग के एक नेता के बल्ले बल्ले
वामुश्किल प्रतिनिधि यूनियन के चुनाव में एक यूनियन की गलती से चुनाव जीत गई यूनियन के एक नेता के बल्ले बल्ले है। दरअसल इनको उम्मीद तो थी नहीं ये प्रतिनिधि यूनियन बन पाएंगे लेकिन बनने के बाद एक नेता ने अपनी सभी हदें पार कर दी। आम कर्मचारी इस बात को कहने से गुरेज नहीं करता कि ये नेता टीजीएम विभाग में रात को ड्यूटी करता है फिर पंच कर घर पहुंचकर पूरी रात आराम करता है। इसका वेतन करीब एक लाख रूपए माह हैं। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि यह सफेद पास का बहाना लेकर रात भर ड्यूटी से गोल रहते है या फिर आउट पास। मजेदार बात यह है कि यदि सफेद पास से कारखाने से बाहर रहते है तो क्या यह यूनियन का पास रात में भी चलता है या फिर बेवकूफी का गोरखधंधा प्रबंधन की मिलीभगत से चल रहा है। लाखों रूपयों का वेतन पा रहे भेल की विजिलेंस या फिर सीआईएसएफ गहरी नींद सोई हुई है या फिर एचआर विभाग की मिलीभगत हैं। यह गंभीर जांच का विषय है।

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