कर्नाटक चुनाव में PFI, बजरंग दल कैसे कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल हुए? Inside story

बेंगलुरु,

कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों के लिए एक ही चरण में 10 मई को वोट डाले जाने हैं. उससे पहले चुनाव प्रचार के आखिरी फेज में बीजेपी और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की स्थिति में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और बजरंग दल जैसे संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करने का वादा किया है, जिसके बाद से कांग्रेस पिछले मंगलवार से निशाने पर है. बीजेपी ने इसे बजरंग बली से जोड़ दिया है और कांग्रेस पर हिंदुत्व विरोधी होने का आरोप लगाया है. आज हम बताएंगे हैं कि कांग्रेस के गले की फांस बने इस वादे को घोषणा पत्र में कैसे शामिल किया गया?

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, जब घोषणा पत्र तैयार किया जा रहा था, तब एक विचार आया कि लॉ और जस्टिस चैप्टर में समाज में नफरत फैलाने वाले संगठनों का नाम लिए बिना उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का वादा किया जाए. हालांकि, बाद में एक सेंट्रल लीडर ने इसे संतुलित रखने के लिए घोषणा पत्र समिति के एक वरिष्ठ सदस्य को पीएफआई और बजरंग दल जैसे नाम लिखने का सुझाव दिया. नतीजतन, नेता के अनुरोध को समायोजित किया गया और कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग बली और पीएफआई के नाम शामिल हो गए.

‘आसानी से टाला जा सकता था पूरा विवाद’
कई लोगों का मानना ​​है कि 10 मई को मतदान से पहले हिंदू और मुस्लिम वोटों को मजबूत करने के लिए दो संगठनों का खुलकर नाम लिखा गया है. हालांकि, एक वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री ने आजतक से बातचीत में बजरंग दल और पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के विचार को सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से जोड़ा. उन्होंने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया है. उसी को ध्यान में रखकर घोषणा पत्र में लोगों के सामने वादा किया गया है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस पूरे विवाद को आसानी से टाला जा सकता था.

कांग्रेस ने कराया सर्वे, डैमेज कंट्रोल में जुटी?
राइट विंग लॉबी और बीजेपी के मुद्दा बनाए जाने पर कांग्रेस ने बजरंग दल पर घोषणा के बाद एक सर्वे किया. पार्टी के आकलन के अनुसार, कर्नाटक में सिर्फ 7% मतदाता ही जानते हैं कि मुद्दा क्या है. इसमें से 10% से भी कम ने सोचा कि यह चुनावी मुद्दा है. सर्वे ने सुझाव दिया कि इनमें से अधिकांश मतदाता वैसे भी पहले से ही भाजपा के मतदाता थे.

जबकि इस मुद्दे पर कांग्रेस के लिए बीजेपी विरोधी वोटरों का जमावड़ा कहीं ज्यादा है. इसमें कहा गया है कि तटीय कर्नाटक में सिर्फ 4 सीटों पर सर्वे से पता चला है कि इस मुद्दे के कारण 1000-1500 वोटों का नुकसान हो सकता है. वहां के उम्मीदवारों को डैमेज कंट्रोल के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए कहा गया है.

कांग्रेस के लिए करो या मरो?
पहली बार नेहरू-गांधी परिवार के तीन सदस्य आगामी कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिए राज्य चुनाव में प्रचार कर रहे हैं. पार्टी संरक्षक सोनिया गांधी हुबली में चुनावी रैली में शामिल हुईं. इसके साथ राज्य में राहुल गांधी और प्रियंका भी कैंपेन कर रही हैं. सोनिया ने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से किसी भी चुनावी रैलियों को संबोधित नहीं किया है. 11 अप्रैल, 2019 को उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली से नामांकन दाखिल करने के बाद मीडिया को संबोधित किया था.

 

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