मणिपुर हाईकोर्ट का आदेश देख CJI चंद्रचूड़ हैरान, वकील से पूछा- हमारा आदेश नहीं दिखाया था?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट के पास अधिकार नहीं है कि वह किसी भी राज्य सरकार को किसी भी समुदाय को शेड्यूल ट्राइब लिस्ट में शामिल करने का आदेश दे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ , जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच मणिपुर में हालिया हिंसा और तनाव से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान बेंच, हाईकोर्ट के आदेश को देख हैरान रह गई।

सुप्रीम कोर्ट में कितनी याचिकाएं?
सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर हैं। पहली याचिका मणिपुर ट्रायबल फोरम, दिल्ली ने दायर की है और हिंसा की एसआईटी से जांच की मांग की है। साथ ही हिंसा प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने की अर्जी लगाई है। दूसरी याचिका हिल एरियाज कमेटी (HAC) के चेयरमैन दिनगांगलुंग गांगमेई ने लगाई है। उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें राज्य सरकार को मैती समुदाय को शेड्यूल ट्राइब लिस्ट में शामिल करने का आदेश दिया था।पूर्व नौकरशाह गांगमेई भारतीय जनता पार्टी (BJP) से विधायक भी हैं। आपको बता दें कि मणिपुर में हालिया हिंसक घटनाओं के पीछे मैती समुदाय को शेड्यूल ट्राइब में शामिल करने वाला आदेश ही है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
दोनों याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एडवोकेट संजय हेगड़े से कहा, ‘क्या आपने हाईकोर्ट को यह नहीं बताया कि उनके पास यह शक्ति ही नहीं है… यह शक्ति तो राष्ट्रपति के पास है’। बेंच ने कहा कि ऐसे कई मामले हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि हाईकोर्ट किसी समुदाय को एसटी लिस्ट में शामिल करने का आदेश नहीं दे सकता है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम मिलिंद’ के फैसले का जिक्र किया, जिसमें यह कहा गया है कि कोई राज्य सरकार, कोर्ट, ट्रिब्यूनल या कोई और अथॉरिटी न तो शेड्यूल ट्राइब लिस्ट को संशोधित कर सकती है और न ही उसमें कोई और बदलाव कर सकती है।

‘स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम मिलिंद’ में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
साल 2000 के बहुचर्चित ‘स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम मिलिंद’ केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा था कि संविधान के आर्टिकल 341 और 342 के अंतर्गत किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति लिस्ट में शामिल करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है। राष्ट्रपति, संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद किसी भी जाति, उप-जाति अथवा समुदाय को एसटी लिस्ट में शामिल कर सकते हैं।

‘स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम मिलिंद’ केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने इसी केस में कहा था कि राज्यों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों को अधिकार है कि वे राज्यपाल के जरिये किसी भी समुदाय को लिस्ट में शामिल करने अथवा हटाने की मांग राष्ट्रपति के सामने रख सकते हैं।

मणिपुर हाईकोर्ट के किस आदेश पर बवाल?
मणिपुर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन की सिंगल जज बेंच ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि मैती समुदाय को शेड्यूल ट्राइब लिस्ट में शामिल किया जाए। हाईकोर्ट के इस आदेश का राज्य के कुकी समुदाय ने विरोध किया। धीरे-धीरे प्रदर्शन उग्र होता गया।कुकी समुदाय, मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के विरोध में है। उनका तर्क है कि इससे मैती समुदाय आरक्षण पर कब्जा कर लेगा, और कुकी समुदाय के लोग वंचित रह जाएंगे।

 

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