तल्ख टिप्पणियों के बावजूद शिंदे-BJP के लिए राहत क्यों है SC का फैसला?

नई दिल्ली,

महाराष्ट्र में पिछले एक साल से सियासी ड्रामा चला आ रहा है. उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की खींचतान से जुड़े मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की बेंच के पास भेज दिया है. सर्वोच्च अदालत ने महाराष्ट्र के गवर्नर और स्पीकर की भूमिका पर सवाल खड़े करते हुए तल्ख टिप्पणियां जरूर की हैं, लेकिन फैसला सीधे-सीधे एकनाथ शिंदे के लिए राहत भरा रहा. शिंदे ने उद्धव से बगावत कर बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली थी. शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार को फिलहाल किसी तरह का खतरा नहीं है.

SC ने दिया झटका, शिंदे के हाथ में रहेगी सत्ता
महाराष्ट्र की राजनीति में जिसके हाथों में सत्ता है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसी के लिए अच्छा है. सत्ता शिंदे के हाथों में है तो फैसला भी उनके पक्ष में ही है. पिछले साल जून महीने से उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच सियासी घमासान चला आ रहा था कि महाराष्ट्र की सत्ता संभालने का हक किसे है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद से शिंदे सरकार के सिर पर तलवार लटक रही थी कि उनकी कुर्सी रहेगी या नहीं?

उद्धव का इस्तीफा ही शिंदे की संजीवनी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ये लगभग साफ हो गया है कि महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस की सरकार बरकरार रहेगी. कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट के बिना ही इस्तीफा दे दिया था इसलिए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता है. अगर उद्धव ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने पर विचार किया जा सकता था. इस तरह फैसले का पूरा राजनीतिक फायदा सीधे-सीधे शिंदे को मिला है. कोर्ट ने न तो शिंदे को सत्ता से हटने के लिए कहा है और ना ही उनकी सदस्यता ही खत्म की है.

कोर्ट ने स्पीकर के पाले में डाली गेंद
उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे सहित शिवसेना के 16 विधायकों की सदस्यता के मामले में भी कोर्ट ने जो कहा, वह भी शिंदे गुट के ही पक्ष में है. शिंदे समेत 16 विधायकों को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराए जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष पर छोड़ दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर के पाले में गेंद डाल दी है और उनसे उचित समय में इसे लेकर फैसला लेने के लिए कहा है, लेकिन इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की है.

स्पीकर कब लेंगे विधायकों की सदस्यता पर फैसला?
महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर बीजेपी के विधायक हैं और शिंदे सरकार बीजेपी के समर्थन से ही चल रही है. स्पीकर अपनी सुविधा के अनुसार जितना चाहें, उतना समय लेने के लिए स्वतंत्र हैं. विधायकों को पात्र या अपात्र घोषित करने की प्रक्रिया लंबी भी चल सकती है क्योंकि पहले इस मामले में दोनों पक्षों को नोटिस जारी करना होगा. फिर दोनों पक्षों की बात सुनी जाएगी और उसके बाद स्पीकर इसे लेकर कानूनी सलाह लेंगे और तब फैसला लेंगे. इस प्रक्रिया में कितना वक्त लगेगा, उसकी समय सीमा तय नहीं है.

स्पीकर के फैसला लेने में एक साल से ज्यादा का वक्त लगा तो महाराष्ट्र की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल भी पूरा हो जाएगा. शिवसेना के बागी 16 विधायक जब तक अयोग्य नहीं ठहराए जाते, तब तक शिंदे सरकार को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. इन 16 विधायकों की पात्रता-अपात्रता को लेकर फैसले के मुद्दे पर कोर्ट ने गेंद स्पीकर के पाले में डाल दी है.

नैतिक जीत या सहानुभूति, उद्धव को क्या मिला?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आखिरकार उद्धव ठाकरे को क्या मिला? उद्धव गुट पहले दिन से शिंदे-फडणवीस सरकार को असंवैधानिक कह रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी प्रमुख के साथ विधायकों के मतभेद हो सकते हैं लेकिन फ्लोर टेस्ट आपसी कलह को सुलझाने के लिए नहीं कराया जा सकता. तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का आदेश नियम के तहत नहीं दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि चीफ व्हिप की नियुक्ति केवल राजनीतिक दल का अधिकार है. जिस समय भरत गोगावले को शिंदे ने चीफ व्हिप नियुक्त किया था, तब उन्हें राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं मिली थी. ऐसे में गोगावले को चीफ व्हिप के रूप में मान्यता भी गलत थी. कोर्ट ने ये भी कहा कि चीफ व्हिप कौन होगा, इसका फैसला राजनीतिक पार्टी करेगी न कि विधायक दल.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और स्पीकर के फैसलों को लेकर जो टिप्पणियां की हैं,अब उन्हीं के आधार पर उद्धव गुट अपने दावे को और मजबूती से रखेगा. नैतिकता के आधार पर उद्धव ठाकरे को अपने सिंपैथी कार्ड को और इंटेंसिटी के साथ खेलने का मौका मिल गया है. इसमें उद्धव गुट एक हद तक सफल भी होता दिख रहा है. आम शिवसैनिक उद्धव के साथ बने हुए हैं और महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में उन्हें जोरदार प्रतिक्रिया भी मिल रही है.

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