6-6 माह से लेकर ढाई-ढाई साल तक… CM पद को शेयर करने के खूब बने फॉर्मूले, लेकिन सब हुए फ्लॉप

नई दिल्ली ,

कर्नाटक की सत्ता में कांग्रेस ने भले ही वापसी कर ली है, लेकिन मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर अभी तक नहीं लगी. सीएम पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच शह-मात का खेल जारी है. सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार के साथ मुख्यमंत्री पद के पावर शेयरिंग का एक फॉर्मूला भी रखा, जिसे पर भी सहमति नहीं बन सकी.

सिद्धारमैया ने सीएम पद से शेयर करने का जो फॉर्मूला रखा, उसमें पहले के दो साल वो सत्ता की कमान खुद संभालना चाहते है और उसके बाद के तीन साल डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव दिया. सिद्धारमैया ने अपने उम्रदराज होने का हवाला दिया और 2024 लोकसभा चुनाव तक पहले चरण में सरकार चलाना चाहते हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पावर शेयरिंग के फॉर्मूले को शिवकुमार राजस्थान और छत्तीसगढ़ वाले ढाई-ढाई साले फॉर्मूले का उदाहारण देकर रिजेक्ट कर दिया है. शिवकुमार ने सिद्धारमैया के सुझाव को यूं ही अस्वीकर नहीं किया बल्कि अतीत में हुए समझौते का सियासी हश्र को देखते हुए खारिज किया है.

डीके शिवकुमार ने रिजेक्ट किया फॉर्मूला
दरअसल,सीएम पद को शेयर करने के फॉर्मूले अलग-अलग राज्यों में बहुत बने, लेकिन सफल कोई नहीं हुआ. छह-छह महीने के मुख्यमंत्री से लेकर ढाई-ढाई साल तक सीएम रहने के फॉर्मूले पर राज्यों में सरकारें बनी, लेकिन जब बात पावर शेयर करने की आई तो बात बिगड़ गई. यूपी में चाहे बसपा-बीजेपी के बीच का समझौता हो या फिर कर्नाटक में जेडीएस-बीजेपी के बीच सीएम पद का रहा हो. एक भी फॉर्मूला नहीं चल सका.

राजस्थान-छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला
साल 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बीजेपी को मात देकर सत्ता में वापसी की थी. तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस नेताओं के बीच रस्साकसी तेज हो गई थी, जिसके चलते ढाई-ढाई साल पावर शेयरिंग का फॉर्मूले के जरिए रास्ता निकाला गया था.

राजस्थान में पहले के ढाई साल अशोक गहलोत और आखिरी ढाई साल सचिन पायलट को सीएम बनाने पर सहमति बनी. इसी तरह छत्तीसगढ़ में पहले के ढाई साल भूपेश बघेल और उसके बाद ढाई साल टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री रहेंगे. इस तरह राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सीएम बने.

हालांकि, दोनों ही राज्यों में ढाई साल का वक्त गुजर जाने के बाद सीएम के पद में कोई बदलाव नहीं हुआ. न गहलोत राजस्थान में पायलट के लिए अपनी कुर्सी छोड़ रहे और न ही बघेल सिंहदेव को सत्ता की कमान सौंप रहे. इसके चलते पायलट और सिंहदेव कई बार अपने-अपने तेवर दिखा चुके हैं, लेकिन अभी तक नतीजा नहीं निकल सका. यही वजह है कि सिद्धारमैया के 2-3 साल वाले फॉर्मूले पर डीके शिवकुमार तैयार नहीं हो रहे हैं.

यूपी में बीजेपी-बीएसपी का छह-छह महीने का फॉर्मूला
उत्तर प्रदेश में मायावती पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बीजेपी के समर्थन से बनी, लेकिन 6 महीने तक ही सत्ता में रही. इसके बाद 1996 में चुनाव हुए, लेकिन बहुमत किसी भी दल को नहीं मिल मिला तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. 1997 में बीजेपी और बीएसपी के बीच सरकार बनाने का समझौता हुआ. फॉर्मूले के तहत 6-6 महीने मुख्यमंत्री दोनों पार्टियों के होने थे.

बीजेपी के समर्थन से बीएसपी ने 1997 में सरकार बनाई और मायावती ने पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. कार्यकाल आगे बढ़ा, लेकिन जब कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने की नौबत आई तो मायावती ने बीजेपी से संबंध तोड़ लिया. इस तरह बसपा ने बीजेपी को ढाई साल के मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल नहीं दिया. ऐसे में बीजेपी ने मायावती के तमाम विधायकों को तोड़कर अपने साथ मिलाकर सरकार बना ली.

कर्नाटक में बीजेपी को जेडीएस ने दिया धोखा
साल 2004 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ हुए थे. विधानसभा में कांग्रेस के 65, बीजेपी के 79 और जेडीएस 58 सीटें जीती थी. इस चुनाव में किसी भी पार्टियों को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनी, लेकिन दो साल के बाद ही गठबंधन टूटने के बाद फिर साल 2006 में जेडीएस और बीजेपी के बीच डेढ़-डेढ़ साल सीएम पद के पावर शेयरिंग के फॉर्मूले के तहत आपसी तालमेल हुआ था.

जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी फरवरी 2006 में पहले मुख्यमंत्री बने, लेकिन जब बारी अक्टूबर 2007 में बीजेपी की आई तो उन्होंने धोखा दे दिया. 2007 में कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने से इनकार कर दिया था. जेडीएस ने बीजेपी को सहयोग करने से पीछे हट गए, जिसके चलते येदियुरप्पा को सिर्फ सात दिन ही मुख्यमंत्री रहे. सदन में बहुमत साबित नहीं कर सके. इस तरह कर्नाटक में भी पावर शेयरिंग का फॉर्मूला सफल नहीं रहा.

कर्नाटक में सीएम पद के पावर शेयरिंग का सिद्धारमैया ने जो रखा है. पहले के दो साल खुद और बाद के तीन साल डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री का फॉर्मूला सुझाया है, लेकिन शिवकुमार उस पर सहमति नहीं है. इसके पीछे वजह यही है कि अभी तक जितने भी पावर शेयरिंग का फॉर्मूला बना है, वो सफल नहीं रहे हैं.

 

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