प्रवचन से पॉलिटिक्स की राह पर बाबा बागेश्वर! धीरेंद्र ब्रह्मचारी से चंद्रास्वामी तक, रवायत पुरानी है

पटना

इतिहास खंगाल कर देखें तो धर्म और राजसत्ता का गठजोड़ कभी सही नहीं रहा है। ऐसे में फासीवाद और अंधवाद अपने चरम पर जा पहुंचता है। सच तो ये भी है कि धर्म को सत्ता से दूर करने के लिए ही लोकतंत्र का उद्भव हुआ है। होता ये है कि धर्म के दुरूपयोग से सत्ता पर कब्ज़ा हो सकता है पर सही लोकतंत्र यहां विकसित नहीं हो सकता। अब ये चाहे मौलाना के फतवा से हासिल सत्ता हो या किसी पोप या कि किसी धर्म गुरु के आह्वान से। देश की वर्तमान राजनीति में बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का प्रवेश काफी तीव्र गति से हुआ है। ऐसा इसलिए कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री बीजेपी की भाषा में बोलने लगे जो भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा है। वह भी इस अभियान के साथ कि भारत हिंदू राष्ट्र बने।

धीरेंद्र शास्त्री का भाजपा वाला चेहरा
आम जिंदगी में सद्भाव भरने, दायित्व बोध कराने, मानव मन को जिंदगी का निहितार्थ समझाने के बदले बाबा धीरेंद्र शास्त्री जब हिंदू राष्ट्र का फतवा जारी करते हों। हिंदुओं संगठित हो, जैसे नारे लगाते हैं तो ऐसे आह्वान का अर्थ शुद्ध राजनीति की ओर इशारा करता है। धर्म की आड़ में इस राजनीति को तब और आवाज मिल जाती है जब किसी पार्टी के वरिष्ठ नेता, मंत्रियों की फौज चरण वंदन करने लगती हैं। लोकतंत्र में किसी को भी प्रभावित करने के ये मुद्दे सही नहीं हैं। आज धीरेंद्र शास्त्री इसी विरोध और समर्थन के प्रतीक बन गए हैं। होना ये चाहिए था कि वे जगत के प्रतीक बनते। किसी ने सच कहा है कि छोटे उद्देश्य से बड़े जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। राजद और जदयू और अन्य पार्टियों के लिए ये धर्म का दुरुपयोग है। हालांकि, भाजपा यह प्रयोग करती रही है।

स्व इंदिरा गांधी और धीरेंद्र ब्रह्मचारी
कांग्रेस नेत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बिहार के धीरेंद्र ब्रह्मचारी की काफी चलती थी। लोकतंत्र के मंदिर में धर्म गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने योग गुरु बन कर प्रवेश किया। लेकिन बाद में कांग्रेस की राजनीति की आपाधापी के केंद्र बन गए थे। इंदिरा गांधी से अकेले मिलने वाले कुछ लोग में धीरेंद्र ब्रह्मचारी थे जो कांग्रेस की नीतियां तय करते गए। एक समय ऐसा आया जब धीरेंद्र ब्रह्मचारी के कारण कांग्रेस और इंदिरा गांधी को जनता के कटघरे में खड़ा होना पड़ा। जब कश्मीर में बंदूक फैक्ट्री का खुलासा हुआ। तब धीरेंद्र ब्रह्मचारी का नया नामकरण किया गया। बंदूक वाले बाबा। शिवा गन फैक्ट्री के कारण फजीहत भी उठानी पड़ी थी।

स्व नरसिम्हा राव और चंद्रास्वामी
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान अचानक सुर्खियों में तांत्रिक चंद्रास्वामी आए। चंद्रास्वामी का असली नाम नेमीचंद था। उन्हें नरसिम्हा राव का आध्यात्मिक गुरु भी कहा जाता है। वर्ष 1991 में उनके प्रधानमंत्री बनने पर चंद्रास्वामी ने दिल्ली के कुतुब इंस्टीट्यूशनल क्षेत्र में अपना आश्रम बनाया था, जिसे विश्व धर्म आयतन संस्थान के नाम से जाना जाता है। चंद्रास्वामी में आस्था रखने वाले लोगों की लंबी फेहरिस्त थी इनमें अभिनेताओं से लेकर देश-विदेश के कई बड़े राजनेताओं के नाम शामिल हैं। उनका नाम कई विवादों में भी जुड़ा। लंदन के व्यवसायी से एक लाख डॉलर की धोखाधड़ी के आरोप में उन्हें वर्ष 1996 में गिरफ्तार किया गया था। इस वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। एक समय ऐसा था कि लोग पहले पीएम से मिलने के पहले चंद्रास्वामी से मिलते थे। कहा जाता है कि चंद्रास्वामी सुविधा शुल्क के नाम पर धन राशि ले कर अपना मतलब साधा करते रहते थे।

राजनीति में साधुओं का उतारना पुराना खेला
प्रभु भक्ति में लीन रहने वाले साधुओं को भी कुर्सी का मोह पुराना रहा है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी। कांग्रेस ने स्वामी रामानंद शास्त्री को और स्वामी ब्रह्मानंद को हमीरपुर से उतारा। भाजपा ने साधुओं के बीच कुर्सी के खेल में स्वामी चिन्मयानंद और साक्षी महाराज को 1991 के चुनाव में उतारा। स्वामी चिन्मयानंद तो राज्य मंत्री भी रहे। 1998 में रामविलास वेदांती को प्रतापगढ़ से उतारा। 2014 में तो भाजपा ने कई साधु और साध्वी को चुनावी जंग में उतारा। जिनमे साध्वी निरंजन ज्योति, साध्वी उमा भारती, साध्वी सावित्री बाई आदि चुनावी जंग जीती। साध्वी उमा तो मंत्री भी बनी। यह बदस्तूर जारी भी रहा।

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