बंगाल में रिलीज होगी ‘द केरल स्टोरी’, सुप्रीम कोर्ट ने हटाया बैन, ममता ने लगाई थी रोक

नई दिल्ली,

फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ के मेकर्स को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राहत मिल गई है. पश्चिम बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने झटका देते हुए इस फिल्म पर लगा बैन हटा दिया है. CJI ने कहा कि हम पश्चिम बंगाल के फिल्म पर बैन लगाने के फैसले पर रोक लगाएंगे. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ पर लगे बैन को हटा दिया.

सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई
CJI ने टिप्पणी की कि फिल्म को सेंसर बोर्ड से मिले सर्टिफिकेट के मामले पर हम गर्मी की छुट्टी के बाद सुनवाई करेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि थिएटर को सुरक्षा मुहैया कराना राज्य सरकार का काम है. अब फिल्म को लेकर सुप्रीम कोर्ट मे अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी. गुरुवार, 18 मई को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी और फिल्म के प्रोड्यूसर के वकील हरीश साल्वे ने अपनी दलीलें रखीं.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अदालत में सुनवाई के दौरान इस फिल्म पर बैन लगाने की मांग वाली एक याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि फिल्म को असली जैसा प्रोजेक्ट किया गया है और डिस्क्लेमर में कुछ और है. ऐसा नहीं किया जा सकता. इसपर CJI ने फिल्म के प्रोड्यूसर के वकील हरीश साल्वे से पूछा कि यह 32000 के आंकड़े को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. इसके बारे मे बताइए… साल्वे ने कहा कि कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि घटनाएं हुई हैं. यह विवाद का विषय नहीं है. इसके बाद CJI बोले, ‘लेकिन यहां फिल्म कहती है कि 32000 महिलाएं गायब हैं… एक डायलॉग है इसमें.’ साल्वे ने जवाब दिया कि हम डिस्क्लेमर में ये दिखाने के लिए तैयार है कि कोई प्रामाणिक डेटा इसपर उपलब्ध नहीं है.

फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर पाबंदी लगाने की लेकर उठे विवाद पर पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दंगे की आशंका के मद्देनजर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके जवाब में सीजेआई ने कहा कि कानून व्यवस्था कायम रखना राज्य की जिम्मेदारी है.

प्रोड्यूसर की तरफ से हरीश साल्वे ने कहा कि फिल्म के टीजर, जिसमें 32000 लड़कियों को निशाना बनाए जाने वाली बात थी, उसे हटा लिया गया है. केरल हाईकोर्ट ने भी फिल्म पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. उस हाईकोर्ट ने भी ऑर्डर में ये बात लिखी है. सीजेआई ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखना भी राज्य की जिम्मेदारी है.

सिंघवी ने दलील दी कि फिल्म 5 मई से 8 मई तक चली, हमने इसे बंद नहीं किया. हमने सुरक्षा मुहैया कराई थी. खुफिया रिपोर्ट से गंभीर खतरे की जानकारी मिली. उन्होंने ये भी कहा कि यह बड़ी चालाकी से फिल्म में बताया गया है कि ये सच्ची घटनाओं पर आधारित नहीं है जबकि इसी फिल्म में उसके बाद दो बार सच्ची घटना बताई गई हैं. उन्हें जवाब देते हुए सीजेआई बोले, ‘आप लोगों की असहिष्णुता के आधार पर फिल्म बैन करने लगे तो लोग सिर्फ कार्टून या खेल ही देख पाएंगे.’

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब पूरे देश में फिल्म चल सकती है तो पश्चिम बंगाल में क्या समस्या है? अगर किसी एक जिले में कानून व्यवस्था की समस्या है तो वहां फिल्म बैन करिए. सीजेआई ने कहा कि एक जिले में समस्या होगी तो सभी जगह प्रतिबंध नहीं लगाया जाता. यह जरूरी नहीं कि सभी जगह डेमोग्राफिक समस्या एक जैसी हो. उत्तर में अलग है, दक्षिण में अलग है. आप मूल अधिकार को इस तरह से छीन नहीं सकते. सीजेआई ने ये भी कहा कि राज्य की शक्ति का प्रयोग आनुपातिक होना चाहिए. किसी भी प्रकार की असहिष्णुता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी का मौलिक अधिकार किसी की भी भावना के सार्वजनिक धरना प्रदर्शन के आधार पर निर्धारित नहीं किया जा सकता. भावनाओं के सार्वजनिक प्रदर्शन को नियंत्रित करना होगा, आपको यह पसंद नहीं है तो इसे मत देखो.

 

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