कहीं भी हो बाबा बागेश्वर का शो, क्यों पहुंच जाता है वो? समझिए दरबार के चमत्कार की पूरी कहानी

पटना

‘जे आदमी ससुरा पता नहीं कौन है। इसकी ऊपरी बाधा इतनी तगड़ी है कि बागेश्वर जी से भी उतर नहीं रही। ससुरा अक्सर यूनिफॉर्म बदल कर बागेश्वर जी के प्रोग्राम में पहुंच जाता है और स्टेज पर फुल गुलाटियां खा-खा कर सबका भरपूर मनोरंजन करता है। शास्त्री जी भी न जाने क्यों आधा-आधा घण्टा सभा मे भटक कर, 50 लोगों को साइड हटाकर, जगह बना कर, स्पेशली इसको आगे लाकर स्टेज पर काहे चढ़ा देते हैं। शास्त्री जी से मेरा अनुरोध है कि यह आदमी अगली बार उन्हें टकराए तो इसकी ओवरएक्टिंग के 50 रुपये काटकर 4 चिमटे जरूर लगाएं।’ उपरोक्त टिप्पणी सोशल मीडिया पर सक्रिय विजय सिंह ठकुराय ने एक दिन पहले की है। विजय सिंह ठकुराय विज्ञान से जुड़े पोस्ट करते हैं। लेखक हैं। अपने वॉल पर हमेशा प्रगतिशील बातों को रखते हैं। विजय सिंह ठकुराय के सोशल मीडिया पोस्ट के फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा भी दीवाने हैं।

एक व्यक्ति बार-बार दरबार में
सवाल ये है कि आखिर बाबा के दरबार में एक ही व्यक्ति बार-बार कैसे पहुंच जाता है। आप तस्वीरों में देख सकते हैं। एक ही चेहरे वाला लड़का प्रेत बाधा की शिकायत लेकर बागेश्वर के दरबार में पहुंचता है। कभी रोता हुआ। कभी चीखता हुआ। कभी चिल्लाता हुआ। उसके बाद बाबा इसे आगे बुलाते हैं और उसका इलाज करते हैं। बाबा उसे ठीक करते हैं। वो चला जाता है। इस बात को सोशल मीडिया पर विजय सिंह ठकुराय ने पोस्ट किया है। जो इन दिनों वायरल हो गया है। लोग उसे खूब शेयर कर रहे हैं। ध्यान रहे कि हाल में बाबा बागेश्वर राजधानी पटना के नौबतपुर में हनुमंत कथा कहने पहुंचे थे। बाबा का बिहार दौरा विवादों से घिरा रहा। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव पहले तो बाबा की बिहार में एंट्री ही नहीं होने देना चाहते थे। राजद की ओर से बाबा को लेकर विरोध अंत तक जारी रहा। राजद नेताओं ने बाबा को लेकर खूब बुरा भला कहा। जाते-जाते बाबा का पुलिस ने चालान काट दिया है। एयरपोर्ट से होटल जाने के क्रम में बाबा ने सीट बेल्ट नहीं लगाया था। पुलिस ने उनका एक हजार रुपये का चालान काट दिया है।

सोशल मीडिया पर टिप्पणी
बागेश्वर धाम सरकार के दरबार को लेकर विजय सिंह ठकुराय ने अपने एक और पोस्ट में कहा है कि बागेश्वर धाम के कार्यक्रमों में ड्रेस बदल बदल कर अज्ञात रोग / प्रेत बाधा से पीड़ित ये व्यक्ति बार बार उपस्थित मिलता है। मंच का स्नेह भी इसे भरपूर है। बार बार मंच पर गुलाटी मारने के लिए बुला लिया जाता है। जबकि दूसरों को अर्जी लगाने पर भी सुनवाई लायक समझा जाय ये सुनिश्चित नहीं? बाबा बागेश्वर के दरबार में एक ही व्यक्ति के बार-बार पहुंचने को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चाओं का दौर शुरू है। इधर, बागेश्वर के बिहार से जाने के बाद स्थानीय बुद्धिजीवियों और वरिष्ठ पत्रकारों के अलावा समाज शास्त्रियों के बीच बहस का दौर शुरू है। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पटना में महावीर मंदिर का दर्शन करने गये थे। इस दौरान बाबा के अंगरक्षकों ने न्यास परिषद के सचिव किशोर कुणाल को मामला पहनाने से रोक दिया। उसे लेकर पटना के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. उज्ज्वल गुस्से में टिप्पणी करते हैं। वे कहते हैं कि बाबा की पर्ची से क्या होगा वो बाद की बात है। किशोर कुणाल के कल्याणार्थ किये जा रहे कार्य से मानव कल्याण हो रहा है।

बागेश्वर के चमत्कार पर सवाल
डॉ. उज्ज्वल कहते हैं कि आस्था बड़ी चीज है। कहीं न कहीं हम लोग भी कृष्ण लीला और हनुमान की बाल लीला से प्रभावित हैं। उनके प्रति हमारी आस्था है। आस्था एक विंदू से शुरू होकर पत्थर तक में हो सकती है। आप आस्था की आड़ में राजनीति नहीं कर सकते हैं। आप भोले-भाले लोगों की भावनाओं से नहीं खेल सकते हैं। बाबा बागेश्वर के दरबार में भक्ति से ज्यादा आडंबर दिखता है। प्रकृति में आस्था का होना बड़ी बात है। बाबा बागेश्वर में शक्ति थी। कार्यक्रम में लोग बेहोश होने लगे। उन्होंने दरबार को स्थगित करने की बात कही। ये प्रकृति का पावर है। डॉ. उज्ज्वल बाबा बागेश्वर ही नहीं ईसाई मिशनरियों में व्याप्त अंधविश्वास और पीर फकीरों के जंजाल की भी आलोचना करते हैं। उनका कहना है कि आस्था एक अलग सवाल है। आस्था जीवंत होती है। आपको पेड़-पौधे से लेकर पत्थर तक में आस्था हो सकती है। आस्था की आड़ में पैदा हुए आडंबर और अंधविश्वास का वे विरोध करते हैं। डॉ. उज्ज्वल कहते हैं कि आज 21वीं सदी है। कोरोना में महज ऑक्सीजन के अभाव में हजारों लोगों की जानें चली गई। लोग किसी चमत्कार की तरफ उस वक्त क्यों नहीं देख रहे थे। उस वक्त बाबा बागेश्वर कहां थे।

राजेंद्र पाठक की तार्किक बातें
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद एनसीएसटीसी बाल विज्ञान कांग्रेस के पूर्व डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर राजेंद्र पाठक कुछ अलग बातें कहते हैं। राजेंद्र पाठक से जब एनबीटी ने पूछा कि उनके दरबार में एक ही व्यक्ति बार-बार क्यों पहुंचता है। उस पर उन्होंने खास टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। राजेंद्र पाठक ने कहा कि बागेश्वर धाम सरकार के किसी भी कृत्य का हम कोई वैज्ञानिक आधार नहीं पाते हैं। पाठक कहते हैं कि बागेश्वर खुद ही कहते हैं कि ये आस्था और विश्वास का विषय है। राजेंद्र पाठक ने कहा कि जनता के सामने उनके चमत्कार का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ये एक तरह का धार्मिक आयोजन है। इससे लोगों के बीच धर्म विशेष के प्रति एक आस्था अंधविश्वास के रूप में प्रकट होती है। वे कहते हैं कि भीड़तंत्र या धार्मिक उद्देश्य के लिए ये आयोजन उचित हो सकता है। किसी तरह से तार्किक वैज्ञानिक आधार पर यह टिकाउ साबित नहीं होगा।

चमत्कार का कल्चर हिंदू धर्म में नहीं
राजेंद्र पाठक ने कहा कि साथ ही मैं ये भी कहना चाहूंगा कि चमत्कार का कल्चर सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं है। ईसाई और मुस्लिम समाज में भी इस तरह के धार्मिक चलन रहे हैं। हो सकता है ये धार्मिक लोगों के बीच की काउंटर फाइटिंग हो लेकिन विज्ञान और तर्क के आधार पर चमत्कारों की कोई गुंजाइश कभी नहीं रही है। सभी चमत्कारों के वैज्ञानिक कारण पहले से साफ रखे गये हैं ताकि चमत्कारों की हकीकत को समझा और समझाया जा सके। इस मामले पर टिप्पणी करते हुए मधेपुरा की प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रज्ञा प्रसाद कहती हैं कि हमारी श्रद्धा का कोई अंत नहीं है। हमारी श्रद्धा ब्रह्रमांड तक जा सकती है। हम इसे निर्धारित करते हैं। उस आधार पर बागेश्वर लोगों को आकर्षित करते हैं। उनका राजनीतिक उद्देश्य और एक खास दल के प्रति सहानुभूति कहीं से भी जायज नहीं ठहरायी जा सकती। हाई टेक युग में पर्ची से चीजें निर्धारित करना मूर्खता की श्रेणी में आएगा। लोग आज की तारीख में अपने निर्णय के लिए पर्ची के लिए मोहताज नहीं है। आज टेक्नोलॉजी का विकास हो चुका है। संचार का प्रसार ज्यादा हो गया है। उसके आधार पर। बागेश्वर जन सामान्य के भोलेपन का फायदा उठा रहे हैं।

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