बिल के बहाने विपक्षी दोस्तों का दिल देख रहे हैं केजरीवाल, इस बड़े दांव का मतलब समझिए

नई दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली में केंद्र और दिल्ली सरकार का झगड़ा पुराना है लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। केंद्र और दिल्ली के इस झगड़े में कई दलों की एंट्री हो गई है। बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच का झगड़ा केंद्र के नए अध्यादेश के बाद बढ़ गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों से एकजुट होने की बात कह रहे हैं। एक दिन पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि एकजुट होकर इस तानाशाही अध्यादेश को संसद में हराना होगा। केजरीवाल ने कहा कि 2024 से पहले यदि बीजेपी की हार होती है तो एक बड़ा मैसेज जाएगा। लोकसभा में एनडीए के पास बहुमत है लेकिन राज्यसभा में वह बहुमत से दूर है। नंबर का खेल संसद के बाहर भी शुरू है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हैं लेकिन आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को लेकर पिक्चर क्लियर नहीं है। केजरीवाल भी अब विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात करेंगे और दिल्ली को लेकर आए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन की अपील करेंगे। संसद में इस अध्यादेश के जरिए कहीं न कहीं इसका भी पता चल जाएगा कि उनके साथ कौन है।

कौन किसके साथ 2024 से पहले की है जोर आजमाइश
अरविंद केजरीवाल कल यानी मंगलवार को बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से मिलने कोलकाता पहुंचेंगे। केजरीवाल की ममता के साथ क्या बात होती है और मुलाकात के बाद क्या कहते है यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल मुद्दा अध्यादेश का है जिसके लिए विभिन्न दलों से समर्थन मांग रहे हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस मुलाकात और केजरीवाल की अपील को सिर्फ यहीं तक नहीं देखा जा सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में कई नेता जुटे हैं इनमें एक प्रमुख नाम नीतीश कुमार का भी है। साथ आने की बात सभी कह रहे हैं लेकिन फॉर्मूला क्या होगा और नेतृत्व कौन करेगा इसको लेकर सवाल हैं। विपक्ष में कांग्रेस की भूमिका सबसे बड़ी होगी और कर्नाटक जीत के बाद दूसरे दलों की भी राय बदली है। वहीं कांग्रेस अब तक AAP को भाव देने के मूड में नहीं दिख रही है। कर्नाटक शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल को न बुलाकर यह जता भी दिया है। आम आदमी पार्टी पहले भी कई बार यह कह चुकी है कि वह बीजेपी का विकल्प है। ऐसे में क्या कांग्रेस से अलग आम आदमी पार्टी भी यह भांपने में जुटी है कि कौन उसके साथ है।

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को लेकर सवाल बड़ा
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच रिश्ते कैसे हैं इस सवाल का जवाब थोड़ा मुश्किल है। कई मौकों पर कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी का विरोध ही किया है। लेकिन पिछले दिनों जब शराब घोटाला मामले में सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से ऐसा कुछ कहा गया जिससे लगा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस का साथ केजरीवाल को मिला है। लेकिन सिसोदिया के गिरफ्तारी के बाद खरगे ने जो सहानुभूति प्रकट की वह ज्यादा देर नहीं रही। दिल्ली कांग्रेस के नेताओं ने जमकर AAP पर हमला बोला और शराब घोटाले में केजरीवाल को घेरा। हाल ही में कर्नाटक में मिली शानदार जीत के बाद पार्टी ने विपक्षी दलों को नेताओं को आमंत्रित किया लेकिन केजरीवाल की पार्टी से दूरी बनाई। अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस पार्टी दिल्ली के अध्यादेश पर क्या फैसला करती है क्योंकि AAP से सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को ही हुआ है।

पहली बार खुलकर मैदान में आने की तैयारी
आम आदमी पार्टी काफी समय पहले से ही इस बात को कह रही है कि वह देश में बीजेपी का विकल्प है। पंजाब चुनाव में पार्टी को मिली शानदार जीत और गुजरात चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद इसमें और मजबूती आई। हालांकि पिछले कुछ समय में देखा जाए तो अचानक से ही आम आदमी पार्टी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल कई मुश्किलों में घिर गए। शराब घोटाला मामले में दिल्ली के दो मंत्री जेल में हैं तो वहीं केजरीवाल के सरकारी आवास को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इसी बीच कर्नाटक चुनाव के नतीजे सामने आते हैं जिसमें कांग्रेस की शानदार जीत होती है। नतीजों के बाद अचानक से विपक्षी दलों के सुर भी थोड़े बदले नजर आए जो कांग्रेस को खास भाव नहीं दे रहे थे। अब पूरे एपिसोड के बाद एक बात क्लियर है कि अकेले अपने दम पर कोई पार्टी बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकती। यह बात AAP के मुखिया केजरीवाल भी समझ रहे हैं।

अब तक अरविंद केजरीवाल की ओर विपक्षी दलों के नेताओं के साथ खुद आगे आकर कोई बड़ी मीटिंग नहीं की गई है। अब तक इस रेस में ममता और नीतीश का ही नाम आता रहा है लेकिन यह पहला मौका है जब केजरीवाल ने इस तरह से विपक्षी दलों को साथ आने का आह्वान किया है। केंद्र की ओर से दिल्ली के लिए लाए गए अध्यादेश के बहाने यह भी पता चलेगा कि कौन किसके साथ है।

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