बिहार में छोटे दलों को साधने में जुटी बीजेपी क्या नीतीश-तेजस्वी को दे पाएगी मात?

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का मन फिर डोल रहा है, उपेंद्र कुशवाहा की सुरक्षा बढ़ा दी गई। चिराग खुद को पीएम मोदी का हनुमान बता चुके हैं, चाचा पशुपति केंद्र में मंत्री हैं और सहनी गठबंधन के संकेत दे रहे हैं। बाकी कसर बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कुमार शास्त्री ने पूरी कर दी। लेकिन सवाल है कि हिंदुत्व का राग अलापने वाली बीजेपी अचानक से बिहार में छोटे दलों को साधने में क्यों जुटी है? वो तब,,जब मांझी से लेकर सहनी तक सब बीजेपी को छोड़कर गये थे। तो फिर अचानक सबके सुर कैसे बदल गये और क्यों बीजेपी इन पर मेहरबान है? आइए हम बताते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी।

दरअसल, बीजेपी की ये तैयारी उसके पूर्व सहयोगी बिहार के सीएम नीतीश कुमार को लेकर है। जो पिछले साल NDA से अलग होकर महागठबंधन का हिस्सा बन गये हैं, इसलिए पार्टी ने अभी से उनके खिलाफ कमांडो तैयार करने शुरू कर दिये हैं। जानकारी के अनुसार, बिहार के जातीय समीकरण और महागठबंधन में सात दलों के आने से बीजेपी घबराई हुई है और 2024 चुनाव के मद्देनजर।।वो JDU-RJD के गठबंधन की काट निकालने की कोशिश में है। इसी क्रम में बीजेपी ने ये रणनीति अपनाई है। हालांकि, इसका कोई औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है लेकिन, गौर से समझने पर मायने यही निकलते दिख रहे हैं।

BJP ने ‘मिशन बिहार’ को धार देने के लिए पहले पशुपति पारस को केंद्र में मंत्री और फिर राम विलास पासवान के बेटे चिराग को Z श्रेणी की सुरक्षा दी। इसके बाद फिर VIP पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को Y+कैटेगरी की सुरक्षा दी, फिर पहले उपेंद्र कुशवाहा को मार्च में वाई प्लस श्रेणी और अब Z श्रेणी की सुरक्षा दी। इस बीच, 15 मई को मांझी ने भी बगावती संदेश दे दिये और कहा कि राजनीति में कोई कसम नहीं होती है। यानी नीतीश के खिलाफ पूरी रणनीति से काम किया जा रहा है लेकिन सवाल है कि इन नेताओं का बिहार में कितना प्रभाव है।

दरअसल, मुकेश साहनी मल्लाह समाज से आते हैं और बिहार में निषादों की आबादी करीब 3-4 फीसदी है। राज्य की 5 लोकसभा सीटों पर निषादों का सीधा प्रभाव है। उपेंद्र कुशवाहा का 13 से 14 जिलों में प्रभाव है और वोट के हिसाब से प्रदेश में कुशवाहा की करीब 7 से 8 फीसदी आबादी है। पासवान समाज दलित में आता है और उनकी करीब 4।2 फीसदी हिस्सेदारी है जबकि मांझी महादलित में आते हैं और वो बिहार में 10 प्रतिशत हैं। मतलब बीजेपी बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स को साधने के लिए छोटे दलों को लुभाने में लगी है लेकिन, ये प्रयोग कितना सफल होगा ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।

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