नेहरू, मोदी और गोल्डन स्टिक… ‘सेंगोल’ से मिशन 2024 के लिए तमिलनाडु साधने की तैयारी

चेन्नै:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। 21 राजनीतिक दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला लिया है। जबकि 16 दलों ने समर्थन जताया है। इस बीच विपक्ष को मात देने और तमिलनाडु की राजनीति साधने के लिए मोदी सरकार ने नया दांव चला है। 28 मई को संसद के उद्घाटन के वक्त तमिलनाडु से आए विद्वान पीएम मोदी को ऐतिहासिक सेंगोल भेंट करेंगे। इसे 1947 में अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा गया था।

आजादी के 75 साल बाद राजदंड का प्रतीक सेंगोल राजनीतिक बहस के केंद्र में है। तमिलनाडु के 24 अधीनम (शैव संप्रदाय के मठ) के प्रमुख पीएम मोदी को यह ऐतिहासिक सेंगोल सौंपेंगे। मोदी सरकार ने सेंगोल को संसद की नई बिल्डिंग में स्पीकर कुर्सी के पास रखने का फैसला किया है।

बीजेपी की तमिल पॉलिटिक्स
यह पहली बार नहीं जब बीजेपी अधीनम को साधने की कोशिश कर रही है। तमिलनाडु बीजेपी ने पिछले दो साल में मदुरै और धर्मपुरम में अधीनम की मांगों का समर्थन किया है। अधीनम ने डीएमके सरकार पर उनकी पारंपरिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करने और बाधा पैदा करने का आरोप लगाया था।इसके अलावा केंद्र की बीजेपी सरकार ने उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सभ्यतागत संबंधों को स्थापित करने के लिए काशी-तमिल संगमम जैसे कार्यक्रम का आयोजन किया। वहीं संघ भी तमिल संत और आध्यात्मवाद के आसपास केंद्रित राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता पर जोर देकर अपना लध्य साध रहा है।

क्या होता है सेंगोल?
सेंगोल तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है जिसका अर्थ है नीतिपरायणता। सेंगोल एक राजदंड है। चांदी से बने सेंगोल में सोने की परत होती है। इसके ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी महाराज विराजमान होते हैं। सेंगोल का इतिहास मौर्य और गुप्त वंश काल से ही शुरू होता है लेकिन यह सबसे अधिक चोल वंश शासन काल में चर्चित हुआ।

नेहरू को क्यों दिया गया सेंगोल?
1946 के अंत तक तय हो गया कि ब्रिटिश सरकार कभी भी भारत से वापस जा सकती है। तब वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के बारे में पंडित नेहरू से जानकारी मांगी थी। उन्होंने नेहरू से पूछा कि जब ब्रिटिश सत्ता यहां से जाएगी तो प्रतीक के रूप में आपको क्या दिया जाएगा। नेहरू ने इसके लिए राजगोपालाचारी की मदद की। वह नेहरू की अंतरिम सरकार में मंत्री रह चुके थे।

राजगोपालाचारी ने काफी रिसर्च के बाद नेहरू को सेंगोल के बारे में बताया। सहमति बनने के बाद थिरुवावदुथुरई अधीनम के तत्कालीन प्रमुख अंबलवाण देसिगर स्वामी को इसका भार सौंपा गया। यह देश के सबसे पुराने शैव मठों में से एक है।

सेंगोल की सुनहरा छड़ चेन्नै स्थित जौहरी व हीरा व्यापारी वी बी चेट्टी ऐंड संस की ओर से निर्मित की गई। तीन वरिष्ठ मठ संत और एक संगीतकार के प्रतिनिधिमंडल इसे लेकर दिल्ली गया ताकि वे राजदंड को सौंप सकें। 14 अगस्त 1947 को रात 11 बजे राजदंड माउंटबेटन को दिया गया।

जैसे ही माउंटबेटेन ने सत्ता हस्तांतरण के साथ यह सेंगोल पंडित नेहरू को सौंपा, पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। तमिलनाडु से आए पुजारियों ने सेंगोंल पर पवित्र जल छिड़का और श्लोक गायन के साथ इसका स्वागत किया।

कहां पर है सेंगोल?
समारोह के बाद यह राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय यानी आनंद भवन में रख गिया गया जो नेहरू परिवार का पैतृक आवास भी है। अब इसे दिल्ली स्थित नैशनल म्यूजियम लाया गया है।

भाषणों के कैसे साध रहे तमिलनाडु?
प्रधानमंत्री मोदी ने अक्सर अपने भाषणों में तमिल का जिक्र किया है। वेष्टि (तमिलनाडु की पारंपरिक धोती) पहनकर उन्होंने तमिल क्लासिक तिरुक्कुरल के लिए सम्मान व्यक्त किया है। तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती के ‘एकजुट और मजबूत भारत’ के सपने को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा बताया। यहां तक कि तीन हजार साल पुराने तमिल उद्धरण को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र में अपने संबोधन का अहम हिस्सा बनाया।

तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटें
कर्नाटक की हार के बाद बीजेपी ने दक्षिण के तमिलनाडु और तेलंगाना पर फोकस बढ़ा दिया है। बीजेपी को 2024 के चुनाव में तमिलनाडु में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। 2014 और 2019 दोनों ही चुनाव में तमिलनाडु में एआईएडीएमके और डीएमके के लिए भारी मतदान हुआ था। ऐसे में अब बीजेपी यहां कई मोर्चों पर काम कर रही है। खासकर वह अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए डीएमके सरकार के विरोध का आक्रामक तरीका अपना रही है।

2019 में तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में से बीजेपी एक भी जीत नहीं पाई थी। हालांकि, 5 सीटों पर बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी, जिसमें कोयंबटूर, शिवगंगा, रामनाथपुरम, कन्याकुमारी और थुटीकुड्डी सीट शामिल हैं। वहीं 2014 में बीजेपी ने सिर्फ एक कन्याकुमारी सीट जीती थी।

द्रविड़ पॉलिटिक्स का तिलिस्म कैसे तोड़ेगी?
तमिलनाडु में पिछले 55 साल से द्रविड़ राजनीति का दबदबा रहा है। द्रविड़ पॉलिटिक्स करने वाली पार्टियां डीएमके और एआईएडीएमके की ही यहां सरकार बनती हैं। ये दल केंद्र की सत्ता में भी दखल रखती है। फिर वो चाबे 1998 में जयललिता का अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेना हो। या फिर 2004 से 2009 में करुणानिधि का कांग्रेस को समर्थन देकर सबको चौंकाना रहा हो।

द्रविड़ राजनीति के चलते ही तमिलनाडु में अब तक बीजेपी अपनी जड़ें नहीं जमा पाई है तो वहीं कांग्रेस का हाल भी बुरा रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि सेंगोल के मुद्दे को उठाकर बीजेपी तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति को कुंद करने की रणनीति पर काम कर रही है।

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