नई संसद: आदिवासी राष्ट्रपति गौरवशाली क्षण तो उसमें चार चांद लगाने से परहेज कैसा, जरा अनुच्छेद 79 को पढ़ लीजिए

नई संसद

हमारी नई संसद बनकर तैयार है। लेकिन फीता काटने पर रार है। 28 मई की तारीख मुकर्रर है। इसी दिन वीर सावरकर का जन्मदिन है जिसे मौजूदा राजनीति ने सबसे विवादास्पद ऐतिहासिक शख्सियत का दर्जा दे दिया है। इसलिए नई संसद की उदघाटन की तारीख भी विवादों में है। पर विवाद की तह में नरेंद्र मोदी आ गए हैं। कोई कह रहा सेंट्रल विस्टा की जरूरत क्या थी तो कोई पूछ रहा प्रधानमंत्री लोकतंत्र के मंदिर का उदघाटन कैसे कर सकते हैं? सवाल की अगुआई राहुल गांधी ने की और आज 19 पार्टियां उनके साथ हैं। एक ही आवाज बुलंद हुई है – बॉयकॉट, बॉयकॉट, बायकॉट।

क्या है विपक्ष की डिमांड
विपक्ष की मांग है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नई संसद का फीता कटवाया जाए क्योंकि वो संविधान की संरक्षक हैं। उधर मंत्री हरदीप पुरी का कहना है कि इंदिरा गांधी ने संसद की एनेक्सी और राजीव गांधी ने लाइब्रेरी का उदघाटन किया था तो बवाल नहीं मचा। इस पर कांग्रेस का कहना है कि पुरी साहब ब्यूरोक्रैट हैं, जानकारी नहीं है। ऑफिस के उदघाटन और संसद के उदघाटन में फर्क उन्हें पता नहीं है। माहौल संभालने के लिए अमित शाह ने खुद मोर्चा संभाला और प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए बैठ गए। उन्होंने सैंगोल का दहला फेंक दिया। कैसे 14 अगस्त 1947 की आधी रात ये सैंगोल अंग्रेजों की सत्ता जाने का प्रतीक बना जिसे नई संसद में रखा जाएगा। इसके बाद अब चर्चा हो रही है कि अगर कांग्रेस ने इस कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया तो ये नेहरू का अपमान होगा। मोदी सरकार ने तो मंत्रियों की फौज उतार दी है।

शिलान्यास नहीं उदघाटन भी
इन सब विवादों के बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू झारखंड हाई कोर्ट के नए भवन का उदघाटन कर रही हैं। मोदी राज में उदघाटन का स्तर बदला जरूर है। मैं ये नहीं कह रहा कि स्तर गिरा है। लेकिन वंदे भारत से लेकर यूपी के मेडिकल कॉलेज, एयरपोर्ट, और देश भर के नए रेलवे स्टेशनों का उदघाटन भी नरेंद्र मोदी खुद कर रहे हैं। मुझे पिछले साल हैरत तब हुई जब सीबीएसई बोर्ड के रिजल्ट भी केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने जारी किया। पहले सीबीएसई दफ्तर में चेयरमैन ये काम किया करते थे। इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री चुनी हुई सरकार के मुखिया हैं। सरकार की उपलब्धियों का श्रेय ले सकते हैं। हमारे टैक्स के पैसे से बनी इमारतों का भी उदघाटन कर सकते हैं। फीता काटने की परंपरा पुरानी रही है। इसके लिए तो बन कर तैयार सड़कें भी उपयुक्त उदघाटनकर्ता के इंतजार में पुरानी हो जाती है। हम ऐसी कार्य संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। हमें इससे हैरत नहीं होती। कैसे होगी। जब सरकार के मंत्री मन मसोस कर रह जाते होंगे तो हम क्या चीज हैं। और मोदी का मंत्र रहा है कि वो सिर्फ शिलान्यास नहीं करते उदघाटन भी करते हैं। सेंट्रल विस्टा का शिलान्यास भी उन्होंने ही किया था और तय समय पर बन भी गया। इस नाते उदघाटन पर उनका दावा बनता तो है।

​विपक्ष का लिटमस टेस्ट​
रही बात इसकी कि उदघाटन राष्ट्रपति करें या प्रधानमंत्री तो मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि अगर द्रौपदी मुर्मू हाई कोर्ट का उदघाटन कर सकती हैं तो संसद का भी कर सकती हैं। लेकिन अपने देश में राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करता है। रबर स्टांप कहलाता है। लेकिन संविधान का संरक्षक कहलाता है। तो क्या माना जाए कांग्रेस और समर्थन में खड़ी 19 विपक्षी पार्टियों को संविधान के संरक्षक की मर्यादा का ख्याल है। नहीं। ये राजनीति के दुष्चक्र का हिस्सा है। कांग्रेस के साथ नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ रहे जहां मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता का लिटमस टेस्ट हो जाए। ताजा मुहिम केजरीवाल की है। मोदी सरकार ने अध्यादेश जारी कर सर्विसेज पर कंट्रोल का अंतिम अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया है। अब इस अध्यादेश को कानून बनाने के लिए संसद में पेश किया जाएगा। नंबर गेम में राज्यसभा में सरकार की हार हो सकती है। इसलिए केजरीवाल ये चेक कर रहे हैं कि सभी विपक्षी दल उनके सपोर्ट में अध्यादेश का विरोध करते हैं या नहीं। उससे पहले 28 मई की तारीख आ गई तो केजरीवाल ने भी कांग्रेस के बायकॉट पर मुहर लगा दी है। उधर शिव सेना तो भूलकर भी वीर सावरकर के नाम पर विरोध नहीं कर सकती। इसलिए संजय राउत ने पीएम से उदघाटन करने को ही मुद्दा बनाया है।

मुर्मू का समर्थन या मोदी का विरोध
अगर राष्ट्रपति पद की मर्यादा से इतना प्यार होता तो द्रौपदी मुर्मू के चुनाव के समय जो हुआ वो नहीं हुआ होता। कांग्रेस के नेताओं ने द्रौपदी मुर्मू को चमचा तक कह दिया। एक नेता ने बुरी फिलोसोफी का नेतृत्व करने वाला बता दिया। दूसरी ओर बीजेपी ने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इसे आदिवासी समाज के लिए नीची सोच का नतीजा बताया। अब अगर भाजपा पहली आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाकर गौरव हासिल कर रही थी तो संसद भवन का उदघाटन भी उन्हीं के कर कमलों से करा देती। इससे गौरव में चार चांद लग जाता। संविधान इसकी मनाही भी नहीं करता है। तो संविधान कहता क्या है? ये तो लिख कर ले लीजिए कि संविधान में संसद का उदघाटन कौन करेगा, इसका जिक्र नहीं है। बनाने वालों ने ये सोचा नहीं होगा कि गुलामी की सारी निशानियां तोड़कर मोदी नई संसद भी बना देंगे। फिर भी संविधान में कई प्रावधान हैं जिनसे पीएम और राष्ट्रपति की भूमिका का अंदाजा लगता है।

क्या कहता है संविधान
Article 79 – देश के लिए एक संसद होगी जिसका हिस्सा राष्ट्रपति और दोनों सदन होंगे यानी लोकसभा और राज्यसभा। ध्यान रहे कि इस अनुच्छेद में प्रधानमंत्री का उल्लेख नहीं है।
Article 74 (1)- प्रधानमंत्री की अगुआई में मंत्रिपरिषद का गठन होगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह और सहयोग के मुताबिक अपने कामों का निपटारा करेंगे।
Article 87- संसद के नए सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होगी जिसमें सत्र आहूत करने के एजेंडा को बताया जाएगा।

​मोदी के खिलाफ तर्क​
विपक्ष का पहला तर्क है कि संसद की परिभाषा में कहीं भी प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है। इसलिए पीएम को उदघाटन नहीं करना चाहिए।
दूसरा, प्रधानमंत्री सिर्फ लोकसभा के नेता हैं और संसद दोनों सदनों को मिलाकर बनती है। इसलिए, राष्ट्रपति को ही इसका उदघाटन करना चाहिए।
तीसरा, राज्यसभा कभी भंग नहीं होती। इसे काउंसिल ऑफ स्टेट्स भी कहा जाता है। और इसके अध्यक्ष उपराष्ट्रपति होते हैं। इसलिए राष्ट्रपति के बाद उदघाटन का नैतिक दायित्व उपराष्ट्रपति का है।

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