चेन्नई के वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स को भी 2018 में पता चला है कि उनके पूर्वजों ने नेहरू के लिए सेंगोल बनाया था

नई दिल्ली

साल 2018 तक सेंगोल बनाने वाले मद्रास (अब चेन्नई) के ज्वैलरी स्टोर वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स की वर्तमान पीढ़ी को भी नहीं पता था कि उनके पूर्वजों ने कोई राजदंड बनाया था, जिसका इस्तेमाल कथित रूप से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर किया गया था।28 मई को प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। बुधवार को किए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रेस कॉन्फ्रेंस के मुताबिक, पीएम मोदी तमिलनाडु के अधीनम (मठ) से सेंगोल स्वीकार करेंगे और उसे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित करेंगे।

शाह का दावा है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आज़ादी मिलने की तारीख से एक दिन पहले 14 अगस्त, 1947 को तमिल पुजारियों द्वारा लाए सेंगोल को स्वीकार किया था। इसके बाद सेंगोल को नेहरू ने एक म्यूजियम में रख दिया था। तब से वह वहीं था।

हालांकि बीबीसी की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि इतिहासकारों में इस बात को लेकर मतभेद है। ‘सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरू’ के संपादक प्रोफेसर माधवन पलट ने बीबीसी संवादाता को बताया है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि माउंटबेटेन ने प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल दिया और उन्होंने ने उसे स्वीकार किया।

सेंगोल बनाने वाले परिवार को सरकार करेगी सम्मानित
रविवार को नई संसद के उद्घाटन के अवसर पर 97 वर्षीय वुम्मिदी एथिराज सहित वुम्मिदी परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को सम्मानित किया जाएगा। एथिराज के 63 वर्षीय बेटे वुम्मिदी उदयकुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उनके पिता इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए शनिवार को दिल्ली पहुंच जाएंगे।

2018 तक वुम्मिदी परिवार भी अपने योगदान से अनजान था
2018 में एक तमिल पत्रिका में सेंगोल के बारे में एक लेख प्रकाशित होने तक, वुम्मिदी परिवार की वर्तमान पीढ़ी को इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

उदयकुमार बताते हैं, “लेख के साथ सेंगोल की एक तस्वीर भी छपी थी और उसके निर्माण का श्रेय हमारे परिवार को दिया गया था। लेख में मेरे दादाजी वुम्मिदी अंजलेलु चेट्टी का जिक्र था, जिनका 1960 के दशक में निधन हो गया था। पत्रिका ने मेरे परिवार को सुनारों का एक पारंपरिक परिवार बताया था।”

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अरुण जनार्दन की रिपोर्ट के मुताबिक, लेख पढ़ने के बाद उदयकुमार ने अपने पिता से सेंगोल के बारे में पूछा। उदयकुमार के पिता वुम्मिदी एथिराज 1947 में 22 वर्ष के थे और परिवार के बिजनेस में सक्रिय थे। हालांकि, पिता को तब का कोई विवरण याद नहीं था।

उन्होंने उदयकुमार से कहा कि “उन्हें याद नहीं है कि उन्होंने उस समय क्या किया था, लेकिन कुछ इसी तरह काम करने की एक धुंधली याददाश्त थी। हालांकि, हमारे एक रिश्तेदार ने सेंगोल की तलाश शुरू कर दी और विभिन्न एजेंसियों से संपर्क साधा। उन्हें पता चला कि सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में है।”संग्रहालय में सेंगोल को नेहरू की ‘सोने की छड़ी’ के रूप में लेबल किया गया था, जिसके सहारे प्रधानमंत्री चलते थे।

उदयकुमार आगे बताते हैं, “परिवार की मार्केटिंग टीम के सदस्य अरुण कुमार को इलाहाबाद संग्रहालय भेजा गया। संग्रहालय में, उन्हें सेंगोल की बारीकी से जांच करने की अनुमति मिल गई। पत्रिका में प्रकाशित तस्वीर के आधार पर कुमार इस बात की पुष्टि करने में सक्षम थे कि सेंगोल पर तमिल के कुछ अक्षर थे। हमने सत्यापित किया कि यह वही है जो मेरे पिता और दादा ने भारत को आजादी मिलने पर बनाया था।”

कहानी में RSS विचारक की एंट्री
बकौल उदयकुमार, वुम्मिदी परिवार के लिए इस पूरे खोज का उद्देश्य सेंगोल की तरह एक और राजदंड बनाने का था ताकि वह उसे अपने घर में रख सकें। लगभग उसी समय आरएसएस के एक विचारक और वुम्मिदी परिवार के फैमिली फ्रेंड सेंगोल में दिलचस्पी लेने लगे।

उदयकुमार बताते हैं कि “लगभग उसी समय एस गुरुमूर्ति की तुगलक (एक तमिल पत्रिका) ने सेंगोल पर एक लेख प्रकाशित किया था। उन्होंने सेंगोल के अतीत के बारे में और जानने के लिए एक समानांतर जांच शुरू की। उन्होंने ही थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया था”

दिसंबर 2016 में प्रसिद्ध व्यंग्यकार और राजनीतिक टिप्पणीकार चो रामास्वामी की मृत्यु के बाद तुगलक पत्रिका की कमान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक एस गुरुमूर्ति के हाथों में चली गई थी। वह पत्रिका के संपादक बन गए थे। गुरुमूर्ति आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक भी रहे हैं।

14 जनवरी 2020 को ‘तुगलक’ की 50वीं वर्षगांठ के समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए शामिल हुए थे। इसी समारोह में गुरुमूर्ति ने कहा था कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को बंद कर देना चाहिए क्योंकि जेएनयू के डीएनए में देशद्रोह है।

 

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