‘ये बिल्कुल स्वीकार्य नहीं, भारत को समझाए जापान’, किसने दी ये नसीहत

नई दिल्ली,

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से ही भारत रूस की निंदा करने से परहेज करता रहा है. भारत सरकार के इस कदम पर ह्यूमन राइट्स ने मोदी सरकार को नसीहत दी है. ह्यूमन राइट्स वॉच की कार्यकारी निदेशक तिराना हसन ने सोमवार को एक इंटरव्यू में कहा है कि यूक्रेन में जारी रूसी आक्रमण पर भारत को आंखें नहीं मूंदनी चाहिए. उन्होंने आगे कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत को रूस की निंदा करनी चाहिए.

जापान में संपन्न हुए G-7 समिट में भी भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने रूस की निंदा करने के बजाय कहा था कि बातचीत और कूटनीति ही समाधान का एकमात्र उपाय है. उन्होंने कहा था कि इस युद्ध को रोकने के लिए भारत जो कर सकता है, वह करेगा. इससे पहले शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन के दौरान भी पीएम मोदी ने कहा था कि यह युद्ध करने का समय नहीं है.

ह्यूमन राइट्स ने दी नसीहत
ह्यूमन राइट्स वॉच की कार्यकारी निदेशक तिराना हसन ने भारत को नसीहत देते हुए सोमवार को कहा, “अगर भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है और पड़ोसी देश म्यांमार में जारी सैन्य शासन को खत्म करना चाहता है, तो उसे यूक्रेन में जारी रूसी आक्रमण पर आंखें बंद नहीं करनी चाहिए.”

हसन ने जापानी अखबार ‘निक्केई एशिया” (Nikkei Asia) को दिए एक साक्षात्कार में भारत पर निशाना साधते हुए कहा, ‘भारत दुनिया के सामने खुद को सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत करता है. साथ ही मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून के सबसे गंभीर उल्लंघनों पर आंखे मूंदे हुए है. यह बहुत ही निराशजनक है.”

यूक्रेन में रूसी आक्रमण की शुरुआत से ही ह्यूमन राइट्स वॉच अस्पतालों और स्कूलों से लेकर रिहायशी अपार्टमेंट पर हमलों की निगरानी कर रहा है. ह्यूमन राइट्स ने रूसी और यूक्रेनी सेनाओं की ओर से किए जा रहे प्रतिबंधित हथियारों के इस्तेमाल पर भी चिंता जताई है.

मार्च में कार्यकारी निदेशक बनाए जाने के बाद पहली बार जापान यात्रा पर गईं तिराना हसन ने आगे कहा कि यूक्रेन युद्ध को ग्लोबल नार्थ और साउथ के विभाजन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता के साथ वैश्विक मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए.

जापान के रुख पर सवाल
उन्होंने यह भी कहा कि जापान के भारत के साथ अच्छे संबंध हैं. ऐसे में जापान एक महत्वपूर्ण भूमिका में है. जापान को यूक्रेन में जारी रूसी आक्रमण की निंदा करने के साथ-साथ भारत समेत एशिया के महत्वपूर्ण सहयोगियों को ये समझाने की जरूरत है कि रूस की कार्रवाई बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है.

ग्लोबल साउथ में शामिल देशों को भी चेतावनी
हसन ने ग्लोबल साउथ के देशों को चेतावनी देते हुए कहा, “यह मुद्दा सिर्फ यूक्रेन का नहीं है. ग्लोबल साउथ के देश यहां चुप रहकर अन्य देशों में भी मानवाधिकारों के हनन का संदेश दे रहे हैं. एक तरह से मानवाधिकारों के हनन के लिए फ्री पास दिया जा रहा है. आप समझ ही रहे हैं कि यह संदेश एशिया रीजन के किन देशों के लिए है. यह म्यांमार में जारी सैन्य शासन को लेकर भी है.”

भारत ग्लोबल साउथ के उन देशों में शामिल है, जो यूक्रेन युद्ध पर गुटनिरपेक्ष रुख अपनाए हुए है. यूक्रेन पर कार्रवाई के कारण अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं. इस आर्थिक प्रतिबंध का मकसद रूसी अर्थव्यवस्था को कमजोर करना है, ताकि यूक्रेन में जारी कार्रवाई के लिए रूस जरूरी संसाधन नहीं जुटा सके. लेकिन भारत, चीन और तुर्की जैसे देशों ने इन प्रतिबंधों को मानने से इनकार कर दिया. रूस ने इन देशों के साथ व्यापार बढ़ाकर अपनी अर्थव्यवस्था की भरपाई करने की कोशिश कर रहा है.

पश्चिमी देशों की ओर से लगातार दबाव बनाए जाने के बाद भी भारत ने अभी तक यूक्रेन में रूसी हमले की निंदा नहीं की है. भारत ने अभी तक एक बार भी रूस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाए गए किसी प्रस्ताव में भी भाग नहीं लिया है. शुरुआत से ही इस मुद्दे पर भारत का न्यूट्रल स्टैंड रहा है.

भारत ने सीधे तौर पर रूस की निंदा करने के बजाय इस युद्ध को कूटनीति और बातचीत से सुलझाने का आह्वान किया है. भारत के इस कदम पर पश्चिमी देश कई बार सवाल उठा चुके हैं. भारत इन चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए रियायती कीमतों पर रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है.

म्यांमार में जारी सैन्य शासन
तिराना हसन का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब एक सप्ताह पहले ही इंडोनेशिया में आसियान (ASEAN) समूह के नेताओं ने म्यांमार में जारी मानवीय संकट को हल करने की दिशा में मीटिंग की थी. हालांकि, इस बैठक के बाद भी इसे हल करने को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है. म्यांमार में लोकतांत्रिक रूप से निवार्चित सरकार को 2021 में सेना ने सत्ता से बेदखल कर दिया था. उसके बाद से ही म्यांमार में सैन्य शासन जारी है.

दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के 10 सदस्यों के साथ जापान के घनिष्ठ संबंध हैं. लेकिन ये देश भी रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने को लेकर जापान से अलग रुख अपनाए हुए हैं. साल की शुरुआत में भी जापान ने इन देशों से यूएन में समर्थन की अपील की थी. इसके बावजूद लाओस और वियतनाम जैसे देश फरवरी में संयुक्त राष्ट्र के मतदान में भाग नहीं लिया था.

ASEAN का फुल फॉर्म एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस है. यह 10 दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संगठन है. इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता है. इसकी स्थापना साल 1967 में थाईलैंड की राजधानी जकार्ता में की गई थी. भारत इसका सदस्य देश नहीं है.

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