100 फीट नीचे अटकी है ‘सृष्टि’ की जान, सेना ने संभाली कमान, नहीं रुक रहे मां के आंसू

सीहोर

सृष्टि को बोरवेल में गिर 36 घंटे से अधिक का वक्त बीत गया है। 300 फीट गहरे बोरवेल में वह 100-150 फीट की गहराई पर फंसी है। अभी भी मौके पर रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। सेना और एनडीआरएफ की टीम ने मौके पर कमाल संभाल रखी है। रेस्क्यू में जुटी टीम को अभी कामयाबी नहीं मिली है। एक समय में सृष्टि ने सेना की रस्सी को पकड़ ली थी। इसके बाद उसे ऊपर खींचा जा रहा था। थोड़ी ऊंचाई पर आने के बाद हाथ से रस्सी छूट गई और सृष्टि फिर से अंदर गिर गई है। बताया जा रहा है कि वह 100-150 फीट की गहराई में फंसी है। अभी उसे निकालने में और वक्त लग सकता है। वहीं, उसकी मां का रो-रोकर बुरा हाल है।

सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद पूरे ऑपरेशन पर नजर बनाए हुए हैं। वहीं, भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा भी मौके पर पहुंची हैं। वहां सृष्टि के माता-पिता से उन्होंने मुलाकात की है। सांसद ने उन्हें पहुंचकर फ्रूट जूस पिलाया है। मां की आंखों में आंसुओं का सैलाब है। वह लगातार रेस्क्यू स्थल पर बैठकर रो रही हैं।

दरअसल, मंगलवार की दोपहर मुंगावली गांव के एक खेत में स्थित 300 फुट गहरे बोरवेल में बच्ची गिर गई थी। वह मंगलवार दोपहर करीब एक बजे सृष्टि नाम की बच्ची बोरवेल में गिर गई थी और तभी से उसे बचाने के प्रयास चल रहे हैं। शुरुआत में वह बोरवेल में करीब 40 फीट की गहराई में फंसी थी लेकिन उसके बचाव अभियान में लगी मशीनों के कंपन के कारण, वह लगभग 100 फीट और नीचे खिसक गई, जिससे कार्य और कठिन हो गया है।

सीएम ने कहा है कि हमने बचाव अभियान के लिए सेना की एक टीम को बुलाया है, जबकि एनडीआरएफ और एसडीईआरएफ की टीमें पहले से ही बच्ची को बचाने के लिए काम कर रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्ची को सुरक्षित बाहर निकालने के प्रयास जारी हैं।

इस बीच, जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि बोरवेल में एक पाइप के जरिये लड़की को ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि फिलहाल करीब 12 जेसीबी और पोकलेन मशीनें बचाव अभियान में लगी हुई हैं। सेना की एक टीम भी मौके पर पहुंच गई है और बचाव अभियान में शामिल हो गई है।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान और अधिकारियों की एक टीम बचाव अभियान की निगरानी के लिए जिला अधिकारियों के संपर्क में है। राज्य के गृह मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि कठोर चट्टानों की मौजूदगी बचाव अभियान में बाधा उत्पन्न कर रही है।

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