चीतों की मौत: नाक का सवाल क्यों? जज ने पूछा, केंद्र का जवाब- इतनी मौत तो आम बात है

नई दिल्ली

मध्य प्रदेश का कूनो नेशनल पार्क अफ्रीका से लाए गए चीतों के लिए कब्रगाह बन गया है। 7 महीने के अंदर 8 चीतों की मौत हो चुकी है। अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा है कि आखिर इस मामले को नाक का सवाल क्यों बना लिया है? चीतों को अलग-अलग जगह न रखकर एक ही जगह पर क्यों रखा गया है? 20 जुलाई को जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि साल भर से भी कम समय में 40% चीतों की मौत हो गई, यह कोई अच्छा संकेत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने पूछा कि अब तक कितने चीतों की मौत हो चुकी है? इस पर एक्सपर्ट कमेटी की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट प्रशांतो चंद्र सेन ने जवाब दिया- आठ। जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले हफ्ते दो और चीतों की मौत हो गई। आखिर यह नाक का सवाल क्यों बनता जा रहा है? इस पर केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सरकार हर तरह के कदम उठा रही है। इस बात की पहले से उम्मीद थी। चीतों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में 50% तक मौतें सामान्य हैं।

इस पर जस्टिस पारदीवाला ने सवाल किया- तो मुद्दा क्या है? क्या उन्हें (चीतों को) हमारा क्लाइमेट सूट नहीं कर रहा है? किडनी या सांस से जुड़ी समस्या हो रही है? इस पर ASG भाटी ने मौत की वजह बताई। बहस के दौरान एक्सपर्ट कमेटी के एडवोकेट ने साउथ अफ्रीका के एक्सपर्ट्स का जिक्र किया तो जस्टिस गवई ने मुस्कुराते हुए कहा कि हमारे पास भारतीय एक्सपर्ट्स भी होने चाहिए। एएसजी भाटी ने कि मेरे सहयोगी इस पर अपना सुझाव दे सकते हैं।

इस पर एक्सपर्ट कमेटी के एडवोकेट ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि चीतों को राजस्थान शिफ्ट किया जाना चाहिए… मेरी सहयोगी (एएसजी भाटी) भी वहीं से ताल्लुक रखती हैं। ASG भाटी ने कहा कि यदि चीतों को राजस्थान शिफ्ट कर भी दिया जाए तो भी वहां भी पहले टाइगर की मौत हो चुकी है। जस्टिस गवई ने कहा कि आपके राज्य में एक सेंचुरी तेंदुओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है… शायद उदयपुर से 200 किमी दूर है। वहां एक और अभयारण्य है….। ऐश्वर्या भाटी ने कहा… हां जवई में।

चीतों की मौत की वजह रेडियो कॉलर?
कूनो नेशनल पार्क में पिछले हफ्ते जिन 2 चीतों की मौत हुई उनकी वजह से सेप्टीसीमिया है, जो उनकी गर्दन में लगे रेडियो कॉलर (Radio collars) की वजह से हुआ था। ठीक इसी तरह के घाव पहले मृत पाए गए 3 चीतों में थे। तमाम एक्सपर्ट्स लंबे वक्त से रेडियो कॉलर को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड डायग्नोस्टिक रिसर्च में प्रकाशित एक एक स्टडी में कहा गया है कि इस तरह के रिस्ट वॉच के इर्द-गिर्द Staphylococcus aureus बैक्टीरिया पाया जाता है, और यदि यह बैक्टीरिया खून में घुल जाए तो इससे सेप्टीसीमिया या मौत का खतरा रहता है।

बारिश भी बनी काल
कूनो नेशनल पार्क में लाए गए चीतों की निगरानी कर रहे एक्सपर्ट्स में से एक साउथ अफ्रीका के डॉक्टर एडरियन टोरडिफ ने पिछले हफ्ते पहली बार रेडियो कॉलर की वजह से घाव को देखा था। वह कहते हैं कि चीतों को कई महीने से रेडियो कॉलर पहनाया गया था। चूंकि पहले ड्राई मौसम था, इसलिये कोइई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बरसात आने के साथ ही समस्या शुरू हो गई।

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
डॉक्टर टोरडिफ कहते हैं कि अफ्रीका में इतनी बारिश नहीं होती है। होती भी है तो मौसम ऐसा होता है कि बारिश के बाद रेडियो कॉलर के नीचे की नमी आसानी से सूख जाती है। लेकिन भारत में स्थिति इससे अलग है। अगर मानसून के दौरान चीतों को कॉलर नहीं पहनाया जाता तो शायद वह ठीक होते।

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