पटना
देश के उच्च सदन यानी राज्यसभा में दिल्ली अध्यादेश पर चर्चा होनी है। सियासी हलकों में चर्चा है कि नीतीश की पार्टी यानी जेडीयू इसका सदन में विरोध करेगी। सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या इस पर राज्यसभा के उपसभापति का स्टैंड पार्टी लाइन के हिसाब से होगा। सवाल ये भी उठ रहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल और एनडीए से अलग हो जाने के बाद जेडीयू के नक्शे कदम पर हरिवंश ने चलने से मना कर दिया था। क्या वे इस अध्यादेश के दौरान नीतीश कुमार के साथ रहेंगे या फिर खिलाफ जाएंगे। इन्हीं चर्चाओं के बीच ये भी चर्चा हो रही है कि जेडीयू के एक्शन पर हरिवंश का रिएक्शन क्या होगा?
हरिवंश के सामने विकट स्थिति
सियासी जानकार मानते हैं कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के सामने अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई है। हरिवंश नारायण सिंह ने हाल में बिहार पहुंचकर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। संसद के मॉनसून सत्र के बीच जेडीयू की ओर से व्हिप जारी कर पार्टी सदस्यों को निर्देश दे दिया गया है कि वे राज्यसभा में पार्टी के स्टैंड का समर्थन करें। जेडीयू की ओर से जारी इस व्हिप के दायरे में नियमानुसार हरिवंश नारायण सिंह भी आते हैं। सियासी जानकार कहते हैं कि नियम के अनुसार आप चलेंगे तो फिर हरिवंश नारायण सिंह के लिए बड़ी धर्मसंकट की स्थिति पैदा होगी।
केंद्र सरकार ला रही अध्यादेश
ध्यान रहे कि जेडीयू ने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली अध्यादेश का विरोध करने का आश्वासन दिया है। जेडीयू ने अपने सदस्यों को साफ कहा है कि वे अध्यादेश का विरोध करेंगे। अब सवाल उठ रहा है कि जेडीयू के सदस्य तो नीतीश कुमार और राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के फैसले को मान जाएंगे। सवाल सबसे बड़ा ये है कि क्या हरिवंश नारायण सिंह नीतीश कुमार के फैसले के विरोध जाएंगे। जानकार मानते हैं कि हाल में नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर हरिवंश पार्टी स्टैंड के खिलाफ जाते हुए उद्घाटन समारोह में शामिल हो चुके हैं। दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने नया अध्यादेश लाया है। इस अध्यादेश को राज्यसभा में पेश किया जाएगा। लोकसभा में ये पास हो चुका है। राज्यसभा में पेश किया जाना है।
दिल्ली अध्यादेश मामला
ध्यान रहे कि इसी अध्यादेश के विरोध को लेकर केजरीवाल पटना में विपक्षी दलों की बैठक में नाराज हो गए थे। जब सभी दलों की ओर से आश्वासन मिला कि वे इस अध्यादेश का विरोध करेंगे तब जाकर केजरीवाल ने नीतीश की अगुवाई वाले गठबंधन में शामिल होने पर अपनी हामी भरी थी। अब मौका आ गया है कि राज्यसभा में ये ‘इंडिया’ वाले गठबंधन केजरीवाल से किया गया अपना वादा निभाएं। जेडीयू की ओर से गुरुवार को व्हिप जारी किया गया है। सवाल ये है कि इस दौरान हरिवंश नारायण सिंह का स्टैंड क्या होगा?
सियासी जानकारों की राय
सियासी जानकार मानते हैं कि यदि नीतीश कुमार के खिलाफ हरिवंश जाते हैं तो उनके सामने दो स्थिति होगी। यदि सदन में चर्चा के दौरान हरिवंश नारायण सिंह स्वयं आसन पर होते हैं और इस मामले पर वोटिंग होती है। मामला बराबर का हो जाता है तब उपसभापति यानी हरिवंश नारायण सिंह को वोटिंग करनी होगी। दोनों तरफ से वोटिंग बराबर हो जाने के बाद स्थिति टाई हो जाएगी। ऐसी स्थिति में हरिवंश नारायण सिंह को वोट देना ही होगा। इस दौरान यदि वे अध्यादेश के पक्ष में मतदान करते हैं तो इतना तय है कि वे जेडीयू से पूरी तरह अलग हो चुके हैं। साथ ही हरिवंश का नीतीश कुमार और उनकी पार्टी से कुछ भी लेना देना नहीं है।
धर्मसंकट की स्थिति
ये भी संभावना है कि यदि आसन पर पदेन सभापति यानी उपराष्ट्रपति विराजते हैं और हरिवंश अन्य सदस्यों के साथ सदन में बैठे होते हैं। तब उनके सामने जेडीयू के व्हिप के पक्ष में जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होगा। ऐसी स्थिति में भी यदि वे नीतीश कुमार के खिलाफ जाते हैं तो जेडीयू उन पर कार्रवाई कर सकती है। जेडीयू हरिवंश पर पार्टी विरोधी गतिविधि का आरोप लगा सकती है। ध्यान रहे कि इससे पहले कई मौके पर नीतीश कुमार के विरोध के बावजूद भी केंद्र सरकार के पक्ष में खड़ा दिखने की कोशिश की है। हरिवंश पहले भी पार्टी लाइन से इतर जा चुके हैं। फिलहाल उनके सामने धर्मसंकट वाली स्थिति है। सदन के अंदर वे इस स्थिति का सामना कैसे करते हैं ये देखने वाली बात होगी?