नई दिल्ली
कुछ दिन पहले तक चीन (China) अमेरिका (America) को पीछे छोड़कर वर्ल्ड पावर बनने के फिराक में था। वैश्विक स्तर पर चीन अपनी पकड़ को मजबूत करने में लगा था, लेकिन कुछ ही महीनों में बाजी पलट गई। आज चीन की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं । चीन की जीडीपी (China GDP) सुस्त पड़ी है, रियल एस्टेट ध्वस्त होते जा रहे हैं। कंपनियों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। बेरोजगारी चरम पर पहुंच रही है, विदेशी कंपनियां चीन से अपना बोरिया बिस्तर समेट रही है। दुनिया की फैक्ट्री कहलाने वाला चीन बूढ़ा होता जा रहा है। चीन का अटूट इंजन खराब हो रहा है, जिससे चीन में अर्थव्यवस्थाओं के लिए खतरनाक जोखिम पैदा हो रहा है। चीन और अमेरिका की दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। चीन में गिरती अर्थव्यवस्था ने अमेरिका की टेंशन बढ़ा दी है।
अमेरिका और चीन का ये कैसे रिश्ता?
अमेरिका और चीन के बीच का तनाव किसी से छिपा नहीं है। हर बीतते दिन के साथ दोनों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। ट्रेड पॉलिसी से लेकर टेक्नोलॉजी को लेकर चीन और अमेरिका अक्सर आमने-सामने आते रहते हैं। दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ती, लेकिन अब चीन की डूबती इकॉनमी ने अमेरिका के माथे पर सिनक ला दिया है। चीन की इकॉनमी में बज रही खतरे की इस घंटी से अमेरिका में खलबली है। आप सोच रहे होंगे कि चीन में अर्थव्यवस्था में आए इस भूचाल से अमेरिका को खुश होना चाहिए, लेकिन ऐस नहीं है। चीन की गिरती हालात अमेरिका के लिए भी खतरे की घंटी है।
चीन की हालत देख क्यों बढ़ी अमेरिका की टेंशन ?
चीन अमेरिका सहित दुनियाभर के देशों के लिए फैक्ट्री के तौर पर काम करता है। बीते दो दशक से चीन सबसे बड़ा सप्लायर बना हुआ है। अमेरिका समेत दुनियाभर के देश चीन से सस्ता सामान खरीदकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। अमेरिकी कंपनियां चीन में अपना प्लांट लगाकर वहां से सस्ता प्रोडक्ट तैयार कर पूरी दुनियाभर में बेच रही है और मोटा मुनाफा कमा रही है। अब ऐसे में चीन की इकॉनमी में आए स्लोडाउन ने अमेरिका की टेंशन बढ़ा दी है। अगर चीन की इकॉनमी में सुस्ती आती है तो इसका असर पूरी दुनिया पर होना तय है। अगर चीन की अर्थव्यवस्था चरमराई तो इसका असर अमेरिकी कंपनियों, अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर होना तय है। अमेरिका पहले से ही महंगाई से जूझ रहा है, ऐसे में चीन की ओर से बढ़ रहे खतरे ने उनकी परेशानियों को और बढ़ा दिया है। चीन की अर्थव्यवस्था और गिरी तो अमेरिकी कंपनियों के शेयरों पर भी इसका पड़ेगा।
चीन बड़ा मार्केट
दरअसल अमेरिका की कई कंपनियों ने चीन में जमकर निवेश किया हुआ है। कई कंपनियों के लिए चीन सबसे बड़ा मार्केट है। चीन की इकॉनमी लड़खड़ाने पर जाहिर है कि इन कंपनियों पर असर पड़ेगा। यहां तक कि जिन कंपनियों का चीन में ज्यादा बिजनस नहीं है वे भी चीन की स्थिति से चिंता में हैं। ऐपल, इंटेल, फोर्ड और टेस्ला जैसी अमेरिकी कंपनियों ने चीन में बड़ी-बड़ी यूनिट लगा रखी हैं। चीन के बिगड़ते आर्थिक हालात ने इन कंपनियों के मुनाफे, काम और अमेरिका पर असर पड़ेगा। इसी तरह स्टारबक्स और नाइकी जैसी कंपनियां चीन के ग्राहकों पर टिकी हैं। जिसपर भी इस इकॉनमी स्लोडाउन का असर होगा। बैंक ऑफ अमेरिका ने ऐसी टॉप कंपनियों की एक लिस्ट बनाई थी जिनका चीन में सबसे ज्यादा एक्सपोजर है। इस लिस्ट में लास वेगास सैंड्स पहले नंबर पर है। इस कंपनी का 68 परसेंट रेवेन्यू चीन से आता है। इसी तरह सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी क्वालकॉम का 67 परसेंट एक्सपोजर चीन में है। एनवीडिया, विन रेजॉर्ट्स और एमजीएम रेजॉर्ट्स का भी चीन में बहुत एक्सपोजर है।
अमेरिका ही नहीं दुनिया के अधिकांश देशों पर होगा असर
चीन की इस हालात से अमेरिका ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों पर असर होगा। चीन का व्यापार 70 से अधिक देशों के साथ है। इन देशों के साथ आयात-निर्यात है, अगर चीन में मंदी आती है तो ये सभी देश भी इसकी चपेट में आएंगे। चीन पर निर्भर देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला है। चीन वैश्विक आर्थिक विकास का अकेले 40 फीसदी हिस्सेदार है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चीन की मंदी का दुनिया पर क्या असर होने वाला है।