लखनऊ
कांग्रेस पिछले 34 साल से यूपी में अपने खराब दौर से गुजर रही है। इस दौरान कई प्रयोग किए। अकेले चुनाव लड़ी और गठबंधन के साथ भी लेकिन कोई बड़ा कारनामा नहीं कर सकी। अब लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने नए अध्यक्ष अजय राय के हाथ में कमान सौंपी है। जल्द ही वे अपनी नई टीम भी बनाएंगे। आक्रामक अंदाज के लिए पहचान रखने वाले अजय राय ने अपने इरादे भी साफ कर दिए हैं। कहा है कि जुल्म और ज्यादती के खिलाफ कांग्रेस 2024 तक सड़कों पर दिखेगी। अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या प्रदेश की नई लीडरशिप कांग्रेस के लिए कोई करिश्मा कर पाएगी? खासतौर से ऐसे समय जब प्रदेश और देश, दोनों ही परिदृश्य में कांग्रेस की स्थिति अभी बहुत मजबूत नहीं है।
यूपी में कांग्रेस का खराब दौर 1989 से ही चल रहा है। एक बार तो 1998 में उसे यूपी से एक भी सीट नहीं मिली। इस दौरान वह सिर्फ एक बार 2009 के लोकसभा चुनाव में अधिकतम 21 सीटें जीत सकी थी। इसके बाद से फिर 2014 में दो सीट पर आ गई और 2019 में सिर्फ रायबरेली की एक सीट जीत सकी। यहां तक के उनके सबसे बड़े नेता राहुल गांधी अपनी अमेठी सीट भी हार गए। इस दौरान कांग्रेस ने प्रदेश की लीडरशिप में कई बदलाव भी किए। इन 34 साल में 17 प्रदेश अध्यक्ष बनाए। ये हर क्षेत्र, जाति, वर्ग और संप्रदाय के साथ ही प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से रहे। वरिष्ठ नेताओं से लेकर जमीनी कार्यकर्ता स्तर तक के नेता को ये जिम्मेदारी दी गई। प्रियंका गांधी को भी बतौर प्रभारी उतरना पड़ा। इसके बावजूद अभी तक तो कोई चमत्कार नहीं दिखा।
कांग्रेस की उम्मीद
लोकसभा चुनाव से पहले आखिर, नई लीडरशिप के पीछे कांग्रेस की क्या मंशा और उम्मीदें हैं? इस बारे में पार्टी के लोगों कहना है कि वरिष्ठ नेताओं को उम्मीद है कि इतने साल सत्ता में रहने के बाद देश में भाजपा के खिलाफ जो माहौल बन रहा है, उसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। राहुल गांधी लगातार जनता के बीच रहकर देश में माहौल बना रहे हैं। अब जरूरत है सबसे बड़े राज्य में सुस्त पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने की। यह काम यहां आक्रामक तेवरों के साथ ही हो सकता है। राष्ट्रीय और प्रदेश दोनों स्तर पर काम होगा तभी यहां से कुछ हासिल हो सकता है।
आसान नहीं राह
कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है। यह देखा गया है कि जब तक वह केंद्र में अच्छी स्थिति में नहीं आ जाती, तब तक प्रदेश के बदलावों से कुछ बहुत फर्क नहीं पड़ा है। यदि 2009 का ही उदाहरण लें तो उससे पहले 2004 में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आई। इसके अगले लोकसभा चुनाव 2009 में यूपी में 21 सीटों पर पहुंच गई। एक और उपचुनाव जीतकर सीटों की संख्या 22 हो गई थी। केंद्र की सत्ता के जाते ही यह फिर ढलान की ओर बढ़ती गई। इसलिए, यूपी में इस बार भी राह आसान नहीं है।
1989 से अब तक कांग्रेस अध्यक्ष
अध्यक्ष | कार्यकाल |
बलराम सिंह यादव (ओबीसी) | 1988-1990 |
राजेंद्र कुमारी बाजपेई (सवर्ण) | 1990-1991 |
महावीर प्रसाद (एससी) | 1991-1994 |
नारायण दत्त तिवारी (सवर्ण) | 1994-1995 |
जितेंद्र प्रसाद (सवर्ण) | 1995-1997 |
नारायण दत्त तिवारी (सवर्ण) | 1997-1998 |
सलमान खुर्शीद (मुस्लिम) | 1998-2000 |
श्रीप्रकाश जायसवाल (ओबीसी) | 2000-2002 |
अरुण कुमार सिंह मुन्ना (सवर्ण) | 2002-2003 |
जगदम्बिका पाल (सवर्ण) | 2003-2004 |
सलमान खुर्शीद (मुस्लिम) | 2004-2007 |
रीता बहुगुणा जोशी (सवर्ण) | 2007-2012 |
निर्मल खत्री (सवर्ण) | 2012-2016 |
राज बब्बर (ओबीसी) | 2016-2019 |
अजय कुमार लल्लू (ओबीसी) | 2019-2022 |
बृजलाल खाबरी (एससी) | 2022-2023 |
अजय राय (सवर्ण) | वर्तमान |
1989 से यूपी में लोकसभा चुनाव प्रदर्शन
चुनाव | सीटें जीतीं |
1989 | 17 |
1991 | 05 |
1996 | 04 |
1998 | 00 |
1999 | 10 |
2004 | 09 |
2009 | 21 |
2014 | 02 |
2019 | 01 |