मध्य प्रदेश चुनाव में ओवैसी कितना बड़ा फैक्टर, कांग्रेस के हाथ से छिटकेगा मुस्लिम वोट?

नई दिल्ली

मध्य प्रदेश का चुनावी रण हर बीतते दिन के साथ और ज्यादा दिलचस्प बनता जा रहा है। जानकार मानते हैं कि 2018 की तरह इस बार भी काटे की टक्कर रहने वाली है, हार-जीत का अंतर काफी कम होगा, ऐसे में कौन बाजी मार जाए, ये अभी नहीं कहा जा सकता। मध्य प्रदेश की जैसी राजनीति रही है, यहां पर मुकाबला हमेशा से ही कांग्रेस बनाम बीजेपी का ही रहा है, यानी कि बाइपोलर फाइट। अब इस लड़ाई में कांग्रेस एक मामले में लगातार बीजेपी से आगे रही है, उसने हमेशा उस डिपार्टमेंट में देश की सबसे बड़ी पार्टी को पछाड़ा है। वो फैक्टर है मध्य प्रदेश का मुस्लिम वोटर। एमपी में मुस्लिम वोटबैंक हमेशा से ही कांग्रेस के लिए एक मजबूती रहा है। लेकिन इस बार असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री ने जमीन पर कई समीकरणों को बदलने का काम कर दिया है।

मुस्लिमों को मिलेगा एक और विकल्प
मध्य प्रदेश में मु्सलमान 7 फीसदी के करीब हैं और दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर उनकी निर्णायक भूमिका रहती है। यहां भी 51 जिलों की 19 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिमों की आबादी एक लाख से ज्यादा है, यानी कि उनका वोट जिस तरफ, उस प्रत्याशी की जीत लगभत तय मानी जा सकती है। अब अभी तक मुस्लिमों का ये वोट एकमुश्त रूप से कांग्रेस को मिल रहा था। बीजेपी के पास जाना नहीं, ऐसे में कांग्रेस ही एक विकल्प के तौर पर रही है। लेकिन पिछले साल हुए एमपी के निकाय चुनाव ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ाने का काम कर दिया है। उस निकाय चुनाव में ओवैसी की AIMIM ने जैसा प्रदर्शन किया, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्य के 7 फीसदी मुसलमानों को कांग्रेस से इतर एक और विकल्प मिल गया।

जहां हार-जीत का अंतर कम, ओवैसी बिगाड़ेंगे खेल
असल में पिछले साल हुए निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए 7 सीटें अपने नाम की। इसमें तीन सीटें खरगोन से निकाली गईं, दो जबलपुर से और एक-एक खंडवा और बुरहानपुर में मिली। बड़ी बात ये भी रही कि बुरहानपुर मेयर सीट पर बीजेपी की जीत में AIMIM का बड़ा योगदान रहा। उस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी बीजेपी से मात्र 542 वोटों से हार गईं। उस सीट पर AIMIM उम्मीदवार को 10274 वोट मिले, यानी कि मुस्लिम वोटों में सीधी सेंधमारी की गई। कहने को वो एक निकाय चुनाव था, लेकिन संदेश स्पष्ट मिला- मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी फैक्टर ने पूरी तरह अपना असर दिखाया।

किन सीटों पर ओवैसी की नजर, कितनी मुस्लिम आबादी?
अब उसी कड़ी में AIMIM चीफ आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भी बड़े स्तर पर तैयारी कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि वे सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारने पर जोर नहीं दे रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन चुनिंदा सीटों पर लड़ने की तैयारी है जहां पर मुस्लिम वोट को पार्टी अपने पाले में ला सकती है। अब ओवैसी की ये रणनीति ही कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता बन गई है क्योंकि वोटों का बिखराव बीजेपी को सीधा फायदा देगा और कई सीटों पर पार्टी को बड़ा झटका मिल सकता है। वर्तमान में भोपाल, बुरहानपुर, उज्जैन, जबलपुर, खंडवा, रतलाम, जावरा, ग्वालियर, शाजापुर, मंडला, नीमच, इछावर ऐसी सीटें हैं जहां पर मुस्लिम वोटर किसी भी प्रत्याशी की हार-जीत तय कर सकता है। इस समय ओवैसी जिस प्लान पर काम कर रहे हैं, उसमें भी 15 उन सीटों पर खास जोर दिया जा रहा है जहां पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है।

बताया जा रहा है कि AIMIM इस बार ग्वालियर साउथ, जबलपुर पूर्व, छिंदवाड़ा, परासिया, भोपाल उत्तर, शाजापुर, कालापीपल, राऊ, खरगोन, राजपुर, जेतपुर, सिवनी, सिरोंज, देवास, धार, इंदौर 4, सांवेर, जावरा, मंदसौर जैसी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है। यहां पर उसे मजबूत प्रत्याशियों की तलाश है जो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम करें, यानी कि मुकाबला किसी तरह से बीजेपी बनाम AIMIM कर दिया जाए।

मुस्लिमों का कम होता प्रतिनिधित्व ओवैसी के लिए मौका कैसे?
यहां भी 10 सीटें ऐसी हैं जहां पर पिछली बार हार-जीत का अंतर काफी कम रहा और उन्हीं सीटों से इस बार ओवैसी को खासा उम्मीद है। उदाहरण के लिए 33 हजार से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली राऊ सीट से पिछली बार जीतू पटवारी ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को 5,703 मतों से हराया था। इस बार AIMIM इस सीट पर बड़ा खेल करना चाहती है। इसी तरह इंदौर 1 सीट पर भी 50 हजार के करीब मुस्लिम आबादी है, वहां पर पिछली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। लेकिन हार-जीत वाला अंतर 8000 से सिर्फ कुछ ज्यादा रहा, ऐसे में वहां भी AIMIM को मौका दिख रहा है।

अब ओवैसी को खुद के लिए मध्य प्रदेश में एक बड़ा मौका इस वजह से भी दिख रहा है क्योंकि इस राज्य में मुस्लिम राजनीति कभी भी ज्यादा जोर नहीं पकड़ी है। सात फीसदी के करीब चल रहा ये समुदाय ना विधानसभा और ना ही लोकसभा में ज्यादा प्रतिनिधित्व ला पाया है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मध्य प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सिर्फ दो मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर आ पाए थे। इससे पहले 2013 वाले चुनाव में एक विधायक, 2008 में एक, 2003 में एक विधायक चुन कर आया था। इस मामले में सिर्फ मध्य प्रदेश का 1962 वाला चुनाव अलग रहा जब सर्वधिक 7 मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा आए थे। उसके बाद से ये आंकड़ा बस गिरता चला गया।

कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व पार्टी को पहुंचाएगा नुकसान?
जानकार मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में जब से कांग्रेस ने भी सॉफ्ट हिंदुत्व पर ज्यादा खेलना शुरू कर दिया है, राज्य की राजनीति में मुस्लिमों की भागीदारी घटती चली गई है। बीजेपी जिस तरह से कांग्रेस पर तुष्टीकरण के आरोप लगाती है, उस वजह से देश की सबसे पुरानी पार्टी भी बैकफुट पर नजर आती है। यहीं कारण है कि 2013 के चुनाव में पांच मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने वाली कांग्रेस ने अगले ही चुनाव में वो संख्या तीन कर दी। अब इस बार कितनों को मौका मिलता है, ये देखना दिलचस्प रहेगा। लेकिन कांग्रेस की जो बेरुखी दिखी है, इसका पूरा फायदा AIMIM उठाना चाहती है। वो मुस्लिमों की राजनीति करती है, सारा फोकस उस समुदाय को देती है, ऐसे में नेरेटिव सेट करने की पूरी कोशिश रहेगी कि वोटबैंक से आगे बढ़कर भी एक पार्टी मु्स्लिमों की आवाज बनने का काम कर रही है। अगर ओवैसी किसी तरह राज्य में कांग्रेस का विकल्प बन जाते हैं तो ये सात फीसदी वोट AIMIM को किंगमेकर तो नहीं बना सकते, लेकिन कांग्रेस का खेल जरूर बिगड़ सकता है।

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