चंद्रमा पर काला दाग क्यों दिखता है? तुलसीदास ने रामायण में दिए अद्भुत सूत्र

सुभाष सक्सेना ज्योतिष आचार्य
जैसा हम सभी को ज्ञात है कि रामचरितमानस अवधी भाषा में 16वी सदी में लिखी गोस्वामी तुलसीदास की महान कृति हैं जिसका हिंदी साहित्य में विशेष स्थान हैं। उत्तर भारत में यह रामायण के रूप में बहुत से लोगो द्वारा प्रतिदिन पूजी और पढ़ी जाती हैं। इस ग्रन्थ में महाकवि तुलसीदास ने भाव भक्ति तथा मानवता, कर्म, त्याग तो बताया ही हैं पर इस ग्रन्थ में कई दोहे और चौपाई ऐसे दी हैं जिससे ज्योतिष के कई अचूक व प्रमुख सूत्रों को आसानी से समझने में मदत मिलती है। लेख में लंका कांड की कुछ चौपाइयों के माध्यम से जो सूत्र ज्योतिष गृह दृष्टि या युति समझने के लिए बहुत आवश्यक हैं उन्हें अनावृत्त करने का प्रयास करूँगा। भगवान राम का प्रश्न हैं की चन्द्रमा पर काला दाग क्यों दिखता हैं इस पर क्रमश: सुग्रीव , विभीषण ,लक्ष्मण, हनुमान जी ने इस प्रश्न को कैसे समझा और क्या बताया उसे समझते हैं। सुग्रीव के प्रान्शोत्तर की चौपाई लंका कांड से
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। ससि महुँ प्रगट भूमि कै झाँई॥
सुग्रीव जो बाली से प्रताडि़त थे और डरे हुए थे तथा कुछ विपरीत घटनाओं से अपनी भूमि भी खो चुके थे उनको काला दाग चन्द्रमा पर पृथ्वी की परछाई लगता हैं। इसका ज्योतिष सूत्र हैं कि जब भी मंगल चंद्र को चौथी दृष्टि से देखता हैं तब सजीव से वियोग होगा पर निर्जीव से लाभ प्राप्ति ज्ञात रहे कि बाली का वध भगवान राम के द्वारा होने के बाद सुग्रीव को खोया हुआ साम्राज्य फिर मिला। अर्थात जो भी खोया हैं उससे ज्यादा मिलेगा मान सम्मान की प्राप्ति होगी, और ईश्वर की कृपा जरूर बनी रहेगी।
विभीषण के प्रान्शोत्तर की चौपाई
मारेउ राहु ससिहि कह कोई। उर महँ परी स्यामता सोई।
अर्थात राहु ने चंद्र को मारा इसलिए चंद्र पर नीला दाग हैं।।
रावण ने विभीषण को बेइज्जत और मार कर लंका से निकला अर्थात भूतकाल में जो कुछ हुआ उसकी मन बुद्धि पर छप हैं और व्यक्ति बहुत दुखित हैं।
इसका ज्योतिष सूत्र हैं की जब भी चंद्र पर राहु की दृष्टि होगी तब तब पहले व्यक्ति को बहुत प्रताडऩा का सामना करेगा पर भगवत कृपा के द्वारा सम्मान और प्रतिष्ठा वापस मिलेगी। रावण वध के बाद विभिषण का राज्याभिषेक राम ने किया।
लक्ष्मण का प्रश्नोत्तर
कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा। सार भाग ससि कर हरि लीन्हा॥
छिद्र सो प्रगट इंदु उर माहीं। तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं।।
अर्थात जब ब्रह्मा जी ने चंद्र का पूर्ण सार त्वत निकाल कर रति ( सुन्दर स्त्री ) के मुख को बनाना चाहा तो चंद्र में छिद्र हो गया और इस छिद्र द्वारा पूरा ब्रह्माण्ड देखा जा सकता हैं।
ज्योतिष सूत्र हैं की जब भी चंद्र की युति शुक्र के साथ होती हैं तब व्यक्ति लगातार ऊंचाईओं की प्राप्ति करता रहता नए नए सोपान बनता हैं परन्तु स्वजन से वियोग होगा यह वियोग भावनात्मक हो सकता हैं अथवा शारीरक या मानसिक रुप से पर वियोग होगा ही। ज्ञात रहे की लक्ष्मण जी अपनी स्वेक्षा से उर्मिला के बिना राम के साथ पूरे वनवास में रहे और उनको भगवान राम और माता सीता की पूरी कृपा मिली।
अब अंत में देखते हैं की हनुमान जी ने चंद्र के काले दाग को कैसे देखा और बताया।
कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हार प्रिय दास , तब मूरत विधु ऊर बसति सोइ साम्यता आभास।
बहुत ही अद्भुत, हनुमान जी कहते हैं कि चंद्र आपका दास हैं अत: उसने आपकी मूरत हृदय हैं रखी हुई हैं और यह नीला रंग आपकी ही निशानी हैं।
ज्योतिष अर्थ, जब भी शनि (दास ) कि युति चंद्र से हो और यह युति अगर गुरु से दृष्ट हो तब व्यक्ति के पास अपर संभावनाए रहती हैं और वह नई ऊंचाइओ कि और बढ़ता रहता है और ईश्वर की कृपा इस व्यक्ति पर विशेष रूप से रहती है। गुरु अगर कुंडली में उच्च का भी हो फिर भी यह योग बन जाता है।
इसके आलावा भी रामायण में ज्योतिष के कई अन्य सूत्र मिलते हैं जैसे की भगवन राम रामायण में चंद्र को हमेशा गरल द्वारा सम्बोधित करते हैं। गरल का अर्थ होता हैं विष और यह विष चंद्रमा का बहुत प्यारा भाई है,इसी से उसने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है और वह अपनी किरणों से नर-नारियों को जलाता रहता है ।
चंद्र ज्योतिष में मन का कारक गृह हैं और मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण होता हैं यह गीता में भी भगवान कृष्ण ने भी व्यक्त किया हैं,, अर्थात मन रूपी चंद्र गरल होता हैं और यही गृह व्यक्ति को सांसारिक भोग विलास की और ले जाता हैं या फिर ईश्वर और मोक्ष की प्राप्ति के लिए।
ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या जीवोब्रमैहव नापरह

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