तीन राज्य, तीन पूर्व CM… जानिए बीजेपी के लिए कैसे बन गए हैं चुनौती

नई दिल्ली,

अगले दो-तीन महीने में पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल माने जा रहे इन चुनावों में जीत के लिए हर दल जोर आजमाइश कर रहा है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) मध्य प्रदेश में जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है तो राजस्थान में परिवर्तन यात्रा निकल रही है. वहीं छत्तीसगढ़ में भी पार्टी यात्रा के जरिए सियासत साधने की कोशिश में है. बीजेपी के तमाम बड़े नेता लगातार चुनावी राज्यों के दौरे कर रहे हैं, संगठन के पेच कस रहे हैं, कांग्रेस को घेर रहे हैं और चुनाव से पहले पार्टी के लिए सियासी जमीन उर्वरा बनाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों की चुनावी जमीन पर बीजेपी के लिए वोटों की फसल कितना लहलहाती है, ये तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा लेकिन इन तीन राज्यों में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को कैसे मैनेज किया जाए? पार्टी के लिए ये फिलहाल बड़ी चुनौती बना हुआ है. मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने खुलकर नाराजगी जाहिर कर दी है, छत्तीसगढ़ में डॉक्टर रमन सिंह निष्क्रिय चल रहे हैं. राजस्थान में वसुंधरा राजे को लेकर भी पार्टी पसोपेश में नजर आ रही है. बीजेपी वसुंधरा को न तो आगे कर पा रही है और ना ही पीछे.

उमा भारती के तेवर से बढ़ेंगी दिक्कतें
मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत के मौके पर निमंत्रण नहीं दिए जाने पर अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने कहा कि निमंत्रण की औपचारिकता तो निभा देते, भले ही धीरे से आने के लिए मना कर देते. मैं नहीं आती. उमा भारती ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सरकार बनवाई तो हमने भी बीजेपी को एक पूरी सरकार बनाकर दी थी. निमंत्रण की औपचारिकता तो पूरी कर देते. उन्होंने उस वाकये का भी जिक्र किया जब कोरोना पॉजिटिव होने के 11 दिन बाद ही उनको उपचुनाव में प्रचार के लिए बुला लिया गया जबकि उनकी रिपोर्ट तब तक निगेटिव भी नहीं आई थी. उमा ने साथ ही 2024 का चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया और ये भी कहा कि शिवराज अगर कहेंगे तो प्रचार करूंगी.

उमा भारती एक तरफ नाराजगी व्यक्त कर रही हैं, स्थानीय नेतृत्व के रवैये पर सवाल उठा रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ ये भी कह रही हैं कि पार्टी का प्रचार करूंगी. इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि उमा का दर्द ये नहीं है कि उनको जन आशीर्वाद यात्रा के लिए निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया? उनका असली दर्द ये है कि उनको अभी से ही एक्टिव पॉलिटिक्स से एक तरह से रिटायर क्यों कर दिया गया?

बीजेपी में 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट नहीं दिए जाने की बात होती रहती है. उमा भारती की उम्र अभी 64 साल है. राम मंदिर आंदोलन से उभरी उमा को बीजेपी ने 2003 के मध्य प्रदेश चुनाव में सीएम कैंडिडेट घोषित किया. उमा के नेतृत्व में बीजेपी ने तब 10 साल पुरानी कांग्रेस सरकार उखाड़ फेंकी थी. बीजेपी ने उमा भारती के नेतृत्व में सरकार बनाई लेकिन कर्नाटक की एक अदालत से गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.

उमा भारती इसके बाद बीजेपी में हाशिए पर चली गईं. बीजेपी छोड़कर अपनी पार्टी भी बनाई और बाद में अपनी पार्टी का पुरानी पार्टी में विलय कर दिया. 2012 के यूपी चुनाव में महोबा की चरखारी सीट से विधायक चुनी गईं और 2014 में सांसद भी. उमा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी रहीं. हालांकि यहां भी उनको बीच में ही मंत्री पद से हटा दिया गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उमा को टिकट नहीं दिया था. अब उमा ने मध्य प्रदेश चुनाव से पहले ये ऐलान कर दिया है कि 2019 में पांच साल का ब्रेक लिया था, 2024 का चुनाव लड़ूंगी. जानकार इसे मध्य प्रदेश चुनाव से पहले ही 2024 चुनाव के लिए अपना टिकट पक्का कराने के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स बता रहे हैं.

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह दरकिनार
छत्तीसगढ़ चुनाव को लेकर भी बीजेपी नेतृत्व एक्टिव मोड में है. पार्टी के कई बड़े नेता सूबे में डेरा डाले हुए हैं तो वहीं अमित शाह भी पिछले कुछ महीनों के भीतर कई बार राज्य का दौरा कर चुके हैं. बीजेपी तो एक्टिव है लेकिन तीन बार के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह उतने सक्रिय नजर नहीं आ रहे. इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.

रमन की निष्क्रियता के सवाल पर छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा कि पूर्व सीएम की पकड़ अब न जनता पर उतनी मजबूत रही और ना ही पार्टी पर ही. तीसरे कार्यकाल के दौरान उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के भी कई आरोप लगे. ऐसी इमेज बन गई कि सरकार अफसरशाही चला रही है, बीजेपी को चुनाव में इसका नुकसान भी उठाना पड़ा और पार्टी 15 सीटों पर सिमट गई. रमन सिंह के एक्टिव होने से बीजेपी को कोई लाभ नहीं होना और नेतृत्व ये समझ रहा है. रमन के पास अपना कोई खास वोट बैंक नहीं है.

छत्तीसगढ़ चुनाव में बीजेपी सीएम पद के लिए कोई चेहरा आगे किए बिना सामूहिक नेतृत्व में जाने की बात कर रही है. एक पहलू ये भी है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने जब पहली बार सरकार बनाई थी, तब भी पार्टी ने सीएम फेस के रूप में किसी चेहरे को आगे नहीं किया था. 2003 चुनाव के समय डॉक्टर रमन सिंह छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष थे. बीजेपी की जीत के बाद श्रेय उनके नेतृत्व को गया और प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सीएम पद पर पार्टी ने उनकी ताजपोशी कर दी.

रमन के नेतृत्व में बीजेपी 2008 और 2013 के चुनाव जीतकर हैट्रिक लगाने में सफल रही लेकिन 2018 में कांग्रेस ने सामूहिक नेतृ्त्व का फॉर्मूला अपनाया और बीजेपी का विजय रथ रोक दिया. बीजेपी पांच साल बाद सत्ता में वापसी के लिए फिर से सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले पर ही लौटती नजर आ रही है लेकिन पार्टी रमन सिंह को कैसे मैनेज करती है? ये देखने वाली बात होगी.

खोई जगह पाने की जद्दोजहद में वसुंधरा
राजस्थान की राजनीति में कभी बीजेपी का पर्याय रही वसुंधरा राजे अपनी खोई जगह पाने की जद्दोजहद में जुटी हैं. बीजेपी सरकार की विदाई के बाद से वसुंधरा पोस्टर से गायब हो गई थीं. वसुंधरा और राजस्थान बीजेपी में चली लंबी खींचतान भी जगजाहिर रही. वसुंधरा का चेहरा प्रोटोकॉल के नाम पर बीजेपी के पोस्टर्स से भी गायब हो गया था. उन्होंने सलासर में जन्मदिन के बहाने बड़ी रैली कर अपनी ताकत दिखाई और उसके बाद पार्टी में वसुंधरा को तरजीह मिलनी शुरू भी हुई लेकिन हालात अब भी कंफ्यूजन वाले ही हैं.

बीजेपी मुख्यमंत्री के लिए चेहरा घोषित करने में हिचक रही है. सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले, पीएम मोदी के नाम और काम पर वोट मांगे जा रहे हैं. परिवर्तन यात्रा के संयोजक राजस्थान बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने ये कहा भी कि यात्रा का चेहरा संगठन है. वसुंधरा राजे ने 2003 के चुनाव से पहले मंदिर में दर्शन पूजन कर परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी. 2013 चुनाव में भी वसुंधरा ने दर्शन-पूजन के बाद सुराज संकल्प यात्रा निकाली. अबकी वसुंधरा को चेहरा घोषित करने में बीजेपी भले ही हिचक रही है लेकिन उन्होंने परिवर्तन यात्रा की शुरुआत से पहले फिर से पूजा-अर्चना की परंपरा का निर्वाह कर एक तरह से ये संदेश देने की कोशिश जरूर की है कि मुख्यमंत्री के लिए चेहरा वही हैं.

वसुंधरा की नाराजगी पड़ सकती है भारी?
राजस्थान के पिछले चुनाव के बाद से करीब साढ़े चार साल तक हाशिए पर रही वसुंधरा राजे की अचानक बीजेपी के सियासी फ्रेम में वापसी हुई. पार्टी के पोस्टर्स पर उनका चेहरा नजर आने लगा, विरोधी माने जाने वाले सतीश पुनिया की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई हो गई और प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रमों में वसुंधरा मंच पर भी नजर आने लगीं. प्रधानमंत्री मोदी ने जब राजस्थान के सांसदों के साथ बैठक की, तब भी वसुंधरा को बुलाया गया. वसुंधरा को पार्टी चेहरा भी घोषित नहीं कर रही और दूसरी तरफ मैनेज भी कर रही है.

सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा क्यों है? बीजेपी वसुंधरा को न तो पूरी तरह दरकिनार कर पा रही है और ना ही आगे. पार्टी के भीतर ये पशोपेश क्यों? राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने इसे लेकर कहा कि 200 विधानसभा सीटों वाले राजस्थान में वसुंधरा करीब 60 सीटों पर सीधा प्रभाव रखती हैं. वसुंधरा का राजपूत और जाट वोटर्स पर तो अच्छा प्रभाव है ही, जाति-समुदाय की भावना से ऊपर उठकर हर जाति-वर्ग की महिलाओं में भी वो बहुत लोकप्रिय हैं. एक फैक्ट ये भी है कि राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा के कद का कोई दूसरा नेता नहीं है. पार्टी इन सभी तथ्यों को समझ रही है और चुनाव से पहले वसुंधरा की नाराजगी का खतरा मोल लेना नहीं चाहेगी.

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