नई दिल्ली,
लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल बढ़ गई है. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. वहीं, विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन में भी सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा तेज हो गई है. मुंबई में हुई इंडिया गठबंधन की तीसरी बैठक में सीट शेयरिंग का मुद्दा जल्द सुलझाने पर सहमति बनी.
सीट शेयरिंग को लेकर अभी बात होनी है लेकिन उससे पहले ही इस मसले पर गठबंधन के घटक दलों में सिरफुटौव्वल शुरू हो गई है. पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग नासूर बनती नजर आ रही है. दोनों ही पार्टियों के नेता स्थानीय स्तर पर गठबंधन का विरोध कर रहे हैं, एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर बयानबाजियां कर रहे हैं. सीटों की कौन कहे, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन में ही पेच ही पेच नजर आ रहे हैं.
विपक्षी गठबंधन में आम आदमी पार्टी की मौजूदगी का पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा विरोध करते रहे हैं. अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने उम्मीद जताई है कि पार्टी नेतृत्व स्टेट यूनिट की राय लिए बिना कोई फैसला नहीं लेगा. प्रताप सिंह बाजवा ने कहा है कि पंजाब कांग्रेस का पूरा कैडर आम आदमी पार्टी से गठबंधन के खिलाफ है.
ऐसा नहीं है कि बयानबाजियां बस एक तरफ से हो रही हों. पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सवाल पर संतुलित जवाब देते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी अकेले लड़ना और जीतना, अकेले सरकार बनाना और चलाना जानती है. वहीं, उनकी ही सरकार के मंत्री अनमोल गगन मान ने साफ कहा कि पंजाब में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. आम आदमी पार्टी पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी, दोनों ही दलों के स्थानीय नेताओं की बयानबाजियों को लेकर अब ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या पंजाब इंडिया गठबंधन के लिए पहला कुरुक्षेत्र बनेगा? क्या पंजाब में इंडिया गठबंधन का पहला महाभारत होगा? पहला महाभारत इसलिए, क्योंकि पश्चिम बंगाल में भी गठबंधन का भविष्य सवालों के घेरे में है. लेफ्ट पार्टियां पहले ही साफ कर चुकी हैं कि टीएमसी से गठबंधन संभव नहीं है. इसका ट्रेलर धूपगुड़ी विधानसभा सीट के उपचुनाव में देखने को भी मिला जहां टीएमसी के खिलाफ लेफ्ट ने उम्मीदवार उतारा और कांग्रेस ने लेफ्ट का समर्थन किया.
गठबंधन में क्यों फंस रहा पेच
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन में पेच क्यों फंस रहा है? इसके पीछे दोनों दलों की स्थानीय प्रतिद्वंदिता तो है ही, सीट शेयरिंग का फॉर्मूला और प्रेशर पॉलिटिक्स को भी वजह बताया जा रहा है. पंजाब चुनाव और सत्ता में आने के बाद, इंडिया गठबंधन के मंच पर पहुंचने तक आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर हमलावर रही. कांग्रेस के कई नेताओं पर एक्शन हुए, जेल भी भेजा गया.
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि किसी भी राज्य में नंबर एक और नंबर तीन या नंबर दो और नंबर तीन की पार्टी के बीच गठबंधन संभव है लेकिन नंबर एक और दो के बीच नहीं. पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन का सबसे बड़ा पेच भी यही है कि दोनों ही पार्टियां विधानसभा में नंबर एक और नंबर दो हैं. लोकसभा के लिहाज से देखें तो 2019 में दोनों पार्टियों का नंबर पहला और चौथा रहा था. पंजाब में एक-दूसरे की प्रमुख प्रतिद्वंदी दोनों पार्टियों के साथ रहने की संभावनाएं अगर कहीं हैं तो इसी वजह से.
पंजाब के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 42.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 92 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, कांग्रेस 23.1 फीसदी वोट शेयर के साथ 18 सीटें जीत सकी थी. वोट शेयर में 19 फीसदी से अधिक और सीटों के बीच 74 का बड़ा अंतर जरूर है लेकिन दोनों पार्टियां पहले और दूसरे नंबर पर रही थीं. आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को आधार बनाकर कांग्रेस को अधिक सीटें नहीं देना चाहती और कांग्रेस कम सीटों पर मानेगी? इसके भी आसार नहीं.
2019 चुनाव के आधार पर अधिक सीटें चाहती है कांग्रेस
पंजाब में कांग्रेस 2019 चुनाव को आधार बनाकर अधिक सीटों पर दावा कर रही है. 2019 के चुनाव में कांग्रेस 40.6 फीसदी वोट शेयर के साथ आठ सीटें जीतने में सफल रही थी. आम आदमी पार्टी को तब 7.5 फीसदी वोट शेयर के साथ केवल एक सीट मिली थी और पार्टी चौथे स्थान पर रही थी. तब से अब तक हालात बदल चुके हैं. कांग्रेस सूबे की सत्ताधारी से विपक्षी पार्टी बन चुकी है. आम आदमी पार्टी सरकार बना चुकी है.
आम आदमी पार्टी को सत्ता में होने और विधानसभा चुनाव के दमदार प्रदर्शन का लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिलने की उम्मीद नजर आ रही है. पंजाब के कांग्रेस नेताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि जनता के बीच इस तरह का संदेश न जाए कि पार्टी कमजोर पड़ गई है या आम आदमी पार्टी के सामने हथियार डाल दिए हैं. ऐसे में जानकार भी न तुम हारे न हम जीते वाली राह निकल पाना मुश्किल मान रहे हैं. क्योंकि दोनों ही दलों में सीट शेयरिंग पर बात भले 2024 के लिए हो रही हो, संदेश 2027 तक जाएगा.