नई दिल्ली,
संसद का विशेष सत्र शुरू होने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य तौर पर दो बातें कही. एक तो ये बताया कि संसद सत्र में ऐतिहासिक फैसला होने जा रहा है. दूसरी बात विपक्ष को लेकर रही, रोने-धोने के लिए बहुत समय है. मतलब, ये ऐतिहासिक फैसला ऐसा भी हो सकता है जिसे लेकर विपक्ष मुद्दा बना सकता है. यह बात तो तय है कि नई संसद में जो भी होगा वो आगामी चुनाव की दृष्टि से खास होगा.
महिला आरक्षण बिल लाए जाने की थी सबसे अधिक संभावना
संसद सत्र में लाये जाने लायक मुद्दे तो कई हैं. वन नेशन, वन इलेक्शन या देश का नाम भारत रखे जाने को लेकर भी कोई प्रस्ताव हो सकता है. मगर, जोर तो इस बात पर होना चाहिये कि जो 2024 के चुनाव में काम आये. यानी मुद्दा जनभावनाओं से जुड़ा होना चाहिये.
महिला आरक्षण बिल को लेकर अब तक सरकार के एजेंडे में तो किसी तरह का इशारा नहीं किया गया है, लेकिन एक संकेत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बयान में जरूर देखा जा सकता है. पिछले हफ्ते ही गुजरात विधानसभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा था, ‘जब महिलाएं हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं… चाहे वो विज्ञान और प्रौद्योगिकी हो… रक्षा या खेल हो… तो राजनीति में भी उनका प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिये.’ ऐसी बातें पहले भी होती रही हैं, लेकिन संसद के विशेष सत्र से पहले ये बात काफी मायने रखती है.
विशेष सत्र के पहले दिन लोक सभा में अपने भाषण के दौरान जब विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी थोड़ा भटकने लगे, तो सोनिया गांधी ने उनको महिला आरक्षण बिल की याद दिलायी. ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस को भी अंदेशा है कि संसद में महिला आरक्षण विधेयक लाया जा सकता है. और हुआ भी ऐसा ही. संसद के विशेष सत्र के बीच महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी.
महिला आरक्षण: विरोध का रिस्क कोई नहीं लेगा
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने सोनिया गांधी का नाम लेते हुए मांग की कि सरकार अगर इस बार ही संसद में महिला आरक्षण बिल लेकर आये, तो बहुत अच्छा रहेगा. सर्वदलीय बैठक के बाद भी अधीर रंजन चौधरी ने कहा था, ‘सभी विपक्षी दलों ने इस सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की मांग की.’
महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ आ चुके NCP नेता प्रफुल्ल पटेल का भी कहना रहा, ‘हम सरकार से इस सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की अपील करते हैं… हमें उम्मीद है कि महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश होने पर आम सहमति से पारित हो जाएगा.’
जब कांग्रेस ही महिला आरक्षण बिल लाये जाने की मांग कर रही है, फिर तो इस मुद्दे पर विरोध का लेवल वैसे ही कम हो जाता है. और कांग्रेस की मानें तो सर्वदलीय बैठक में भी कई राजनीतिक दलों की तरफ से ऐसी मांग रखी जा चुकी है.
13 साल पहले राज्य सभा से पास हो चुका है महिला बिल
एक बार मार्च, 2010 के संसद सत्र की घटनाओं को भी देखना होगा. 9 मार्च को तो महिला आरक्षण बिल राज्य सभा में बहुमत से पारित हो गया, लेकिन ठीक एक दिन पहले लोक सभा में आम सहमति नहीं बन सकी – ध्यान रहे हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.
वैसे तो तब राज्य सभा में भी दो दिनों तक विरोध, शोर शराबा और हंगामा होता रहा, लेकिन आखिर में भारी बहुमत से महिला आरक्षण बिल पारित हो गया था.सबसे दिलचस्प बात ये रही कि महिला बिल के पक्ष में 186 सदस्यों ने वोट दिये थे – और विरोध में सिर्फ एक ही वोट पड़ा था. तब बीएसपी ने भी महिला बिल के तात्कालिक स्वरूप पर ऐतराज जताया था, और उसके सांसद सदन से बाहर चले गये थे.
महिला आरक्षण के विरोध में कौन कौन और क्यों?
महिलाओं को आरक्षण देने की बात उठने पर कई राजनीतिक दल और नेता सवाल उठाते हैं कि इसका फायदा कुछ विशेष वर्ग तक सीमित रह जाएगा. देश की दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में कमी हो सकती है. इन नेताओं की मांग है कि महिला आरक्षण के भीतर ही दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जायें. हालांकि, इस बात के लिए अभी संविधान में कोई प्रावधान नहीं है.
लोकसभा में TMC सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा है, ‘चर्चा हो रही है लेकिन देर से हो रही है… ममता बनर्जी ने सबसे पहले अवाज उठाई थी… सबको पता है कि ये बिल किन कारणों और लोगों की वजह से सार्थक नहीं हुआ था… हम इसके समर्थक हैं.’जेडीयू नेता केसी त्यागी का ताजा बयान देखें तो साफ है कि गठबंधन बदलते रहने के बावजूद महिला आरक्षण पर नीतीश कुमार की पार्टी का स्टैंड नहीं बदला है.
केसी त्यागी का कहना है कि जेडीयू कमजोर महिलाओं को आरक्षण दिये जाने की पक्षधर रही है. मार्च, 2010 में बतौर जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी का कहना था कि वो चाहते हैं कि आरक्षण के बीच आरक्षण हो. शिवानंद तिवारी फिलहाल लालू यादव की पार्टी आरजेडी के नेता हैं. आरजेडी ने भी तब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ महिला आरक्षण बिल का विरोध किया था. किसी का भी विरोध महिला आरक्षण को लेकर नहीं रहा है, बल्कि विरोध करने वालों ने मसौदे के स्वरूप पर आपत्ति जतायी है.
तब बहस की शुरुआत करते हुए राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का कहना था कि भारतीय जनता पार्टी बिल का समर्थन करती है लेकिन सदन में जो हुआ उससे देश शर्म सार है. सीपीएम नेता वृंदा करात की राय रही कि बिल पास होने से देश का लोकतंत्र और मजबूत होगा.लेकिन महिला आरक्षण के मुद्दे पर ऐतिहासिक विरोध तो 1997 में संसद में दिया गया समाजवादी नेता शरद यादव का बयान ही रहा है, ‘बिल से सिर्फ पर-कटी औरतों को फायदा पहुंचेगा… परकटी शहरी महिलाएं हमारा प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी? शरद यादव का आशय गांव की महिलाओं से था.
बीजेपी की तो एक ही फिक्र है
महिला आरक्षण बिल को लेकर बीजेपी तो मन ही मन पहले से ही तैयार है. बस उसे एक ही बात की फिक्र होगी. जिस तरीके से कांग्रेस नेतृत्व संसद में बिल लाने की ताबड़तोड़ मांग कर रहा है, कहीं इसे लाने का क्रेडिट न शेयर करना पड़े.
असल में कांग्रेस अध्यक्ष रहते सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर संसद में महिला बिल लाने की सलाह दे चुके हैं. सोनिया गांधी ने लिखा था कि आप बिल लाइए… आप के पास बहुमत है… और कांग्रेस भी सपोर्ट करेगी. विशेष सत्र में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी भी तो यही समझाने की कोशिश कर रहे थे- और साथ में सोनिया गांधी की हिदायतें तो बता ही रही है कि कांग्रेस महिला आरक्षण के मुद्दे पर क्या सोच रही है.
महिला आरक्षण ऐसा मुद्दा है जो आधी आबादी के वोट से जुड़ा है. 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में लोगों से अपील की थी कि वो चाहते हैं, महिलाओं के वोट पुरुषों से ज्यादा पड़े और लोग उनको निराश भी नहीं करते. गुजरात में तो उनकी बात मान कर लोगों ने बीजेपी की जीत का रिकॉर्ड ही बनवा दिया. मुश्किल तो कांग्रेस के सामने नजर आ रही है. बाकी मोर्चों के साथ साथ महिला आरक्षण का क्रेडिट लेने के लिए भी बीजेपी से दो-दो हाथ करना पड़ेगा.