पहले जनगणना, फिर परिसीमन… तब जाकर मिलेगा महिला आरक्षण, लग जाएंगे इतने साल!

नई दिल्ली,

संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया है. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम से इस बिल को पेश किया. सरकार ने इसे ऐतिहासिक बताया है. बिल पेश होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक पावन शुरुआत हो रही है. अगर सर्वसम्मति से कानून बनेगा, तो इसकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी.

फिलहाल इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया है. बाद में इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा. उम्मीद है कि इस बार ये बिल पास हो जाएगा. लेकिन बिल पास होने के बाद ये लागू कब से होगा? इसे लेकर संशय बना हुआ है.विपक्षी पार्टियों ने इसे जुमला बताया है. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने दावा किया कि महिला आरक्षण बिल में साफ लिखा है कि ये बिल परिसीमन पूरा होने के बाद लागू होगा. लिहाजा किसी भी कीमत में 2029 से पहले ये महिला आरक्षण लागू नहीं हो सकता. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी यही कहा कि 2024 के चुनाव से पहले जनगणना और परिसीमन होने की उम्मीद नहीं है.

कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया साइट X पर लिखा, ‘जनगणना के बाद ही ये बिल लागू होगा. 2021 की जनगणना अब तक नहीं हुई है. 2027 या 2028 में जनगणना होगी. उसके बाद परिसीमन की प्रक्रिया होगी और तब जाकर महिला आरक्षण बिल लागू होगा.’फिलहाल इस बिल पर बुधवार को लोकसभा में चर्चा होगी. और उसके बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा. लेकिन ये बिल कब लागू होगा? इस पर सरकार की ओर से अब तक कुछ कहा नहीं गया है.

…अभी और इंतजार करना होगा?
महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में आने में लंबा वक्त लग गया. साल 1996 में इसे पहली बार पेश किया गया था. 2010 में यूपीए सरकार में ये बिल राज्यसभा से पास हो गया था, लेकिन लोकसभा में इसे पेश नहीं किया गया था. अब फिर इसे संसद में लाया गया है. लेकिन इस बिल, कानून बन भी जाता है तो भी इसे लागू होने में लंबा समय लग सकता है.

दरअसल, ये सारा खेल जनगणना और परिसीमन से जुड़ा हुआ है. किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या कितनी होगी? इसका काम परिसीमन आयोग करता है. 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. अनुच्छेद 82 में आयोग का काम भी तय किया गया है. पहले आम चुनाव के समय लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी. आखिरी बार 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ था, जिसके बाद सीटों की संख्या बढ़कर 543 हो गई.

1971 के बाद क्यों नहीं हुआ परिसीमन?
आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो उस समय देश की आबादी 36 करोड़ के आसपास थी. 1971 तक आबादी बढ़कर करीब 55 करोड़ हो गई. लिहाजा, 70 के दशक में सरकार ने फैमिली प्लानिंग पर जोर दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि दक्षिण के राज्यों ने तो इसे अपनाया और आबादी काबू में की. लेकिन उत्तर भारतीय राज्यों मं ऐसा नहीं हुआ और यहां आबादी तेजी से बढ़ती रही.

ऐसे में उस समय भी दक्षिणी राज्यों की ओर से सवाल उठाया गया कि उन्होंने तो फैमिली प्लानिंग लागू करके आबादी कंट्रोल की और उनके यहां ही सीटें कम हो जाएंगी. सीटें कम होने का मतलब संसद में प्रतिनिधित्व कम होना. इसलिए विवाद हुआ. इसके बाद 1976 में संविधान में संशोधन कर तय कर दिया कि 2001 तक 1971 की जनगणना के आधार पर ही लोकसभा सीटें होंगी. लेकिन 2002 में अटल सरकार ने दोबारा संशोधन कर इसकी सीमा 2026 तक बढ़ा दी.

क्या 2029 के चुनाव में लागू होगा आरक्षण?
कुछ कह नहीं सकते. अटल सरकार में जब संविधान संशोधन हुआ, तो प्रावधान किया गया कि 2026 के बाद जब पहली जनगणना होगी और उसके आंकड़े प्रकाशित हो जाएंगे, तभी लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाएगा.अभी तक तो 2021 की जनगणना ही नहीं हुई है और 2026 के बाद 2031 में जनगणना होगी. उसके बाद ही लोकसभा सीटों का परिसीमन होने की उम्मीद है. अगर ऐसा ही हुआ तो 2024 छोड़िए 2029 के लोकसभा चुनाव के वक्त भी महिला आरक्षण लागू करना मुश्किल होगा.

इसी तरह राज्यों की विधानसभा सीटों के लिए जुलाई 2002 में परिसीमन आयोग का गठन हुआ था. जुलाई 2007 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी. इस आधार पर कई राज्यों में परिसीमन हुआ. राज्यों की विधानसभा सीटों का परिसीमन भी जनगणना पर ही निर्भर है. अगर ऐसा हुआ तो राज्यों को भी पहले अगली जनगणना और फिर परिसीमन का इंतजार करना होगा. यानी महिला आरक्षण बिल के पास होने के बाद भी इसके लागू होने में सालों का वक्त लगना तय है.

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